आयो रे आयो, सोनारी दिन आयो!


रामभजन पंड्या इन दिनों बेहद खुश हैं. पूरा समाज धार्मिक प्रवृत्ति प्रदर्शित करने लगा है। समाज के सभी वर्गों से लोग मंदिरों में उमड़ रहे हैं। मंदिरों के बाहर लंबी कतारें लगी हुई हैं। जो लोग कभी मंदिर नहीं जाते थे, वे भी अब माथे पर चंदन का लेप लगाए भगवान से प्रार्थना करते नजर आ रहे। पंड्या गुजरात के जामनगर के पास एक गांव के मंदिर में पुजारी हैं। उन्हें उम्मीद है कि चुनाव ख़त्म होने के बाद भी यह धार्मिक भावना बनी रहेगी!

इमरान नकवी भी बहुत खुश, पिछले कुछ दिन बहुत व्यस्त थे; जितना अधिक काम, उतना अधिक पैसा। पिछले कुछ दिनों में उसने जितना कमाया, वो पूरे साल चलेगा। उसने अपने दो बीबी और आठ बच्चों के साथ पिछले एक महीने से प्रतिदिन अठारह घंटे की मेहनत की। काम इतना कि सांस लेने की फुरसत नहीं।उसका दिन सुबह 5 बजे शुरू होता था और देर रात तक चलता था। उसने चुनावी रैलियों के लिए प्लास्टिक की कुर्सियाँ, टोपियाँ, कटआउट, मास्क आदि की आपूर्ति की। चुनाव के कई महीने पहले से ही आर्डर मिलना चालू हो गया। जिस पार्टी ने पहले से आर्डर नहीं दी,  चुनाव के ठीक पहले ही उसके भाव आसमान छूने लगे।  आम के आम,  गुठली के दाम!

धन्नो पाटिल के तो पौ बारह हैं। उसे अपने परिवार के साथ अक्सर खाली पेट सोना पड़ता था। पिछले डेढ़ महीने से उसे परेशान नहीं होना पड़ा। वह एक रैली से दूसरी रैली में जाता रहा, चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी, शिवसेना हो या कम्युनिस्ट, उसने दिन में तीन बार अपनी टोपी बदली। प्रत्येक रैली में भाग लेने के लिए उसे मुफ्त सवारी के अलावा कुछ सौ रुपये और मुफ्त नाश्ता और दोपहर का भोजन मिलता रहा। पिछले कुछ दिनों से उनका व्यवहार राजा जैसा था। उसने तो मंदिर में सवा रुपए की प्रसाद चढ़ाई।  प्रभु,  ऐसा चुनाव बार बार आवे तो मजा आवै। उसने बार-बार चुनाव होते रहने की कामना की।

और गात्या बेवड़ा के क्या कहने। उसके तो पांचों ऊंगलियां घी में और सर कड़ाई में। गात्या को देशी शराब की लत के कारण बेवड़ा कहा जाता है। एक पार्टी को वोट देने के वादे के साथ उसे पिछले कुछ सप्ताह में कुछ पैग का दैनिक भत्ता निःशुल्क मिला। उसने कई पार्टियों को वादा किया और सभी से शराब का अपना कोटा प्राप्त कर लिया!   भला, मदिरा पीकर कोई झूठ बोलता है! नहीं ना,  उसने भी झूठ नहीं कहा,  जो भी आया,  कह दिया , "वोट तुमको ही देंगे बाबू लेकिन पहले.... बाटली। फिर चनाचूर  खाने को पईसा । आखर वोट है भाई, कोई ऐसी वैसी चीज़ नहीं।" फिर चुनाव के दिन इतनी चढ़ाई,  इतनी चढ़ाई कि चुनाव बीत गया और दूसरे दिन गंदे नाली में पड़ा मिला। हां,  झूठ उसने किसी से नहीं कहा था। बेचारा पोलिंग बुथ पहुंच पाता,  तो ना वोट देता! 
इन चुनाव के दिनों रिक्शा चालक, वैन मालिक, ड्राइवर, चाय विक्रेता, डेकोरेटर सभी अपनी मांगों में उछाल से खुश हैं।

पपराज़ो, पत्रकारों और अखबारों के संपादकों के पास कई हफ्तों तक फील्ड डे होता है; वे इन दिनों सबसे अधिक मांग वाले लोग हैं। अखबारों के कॉलम में भरने के लिए खबरों की कोई कमी नहीं। अखबारों के मालिकों की किस्मत चमक रही है और विभिन्न राजनीतिक दल मतदाताओं को लुभाने के लिए विज्ञापनों पर पैसा ही पैसा बरसा रहे हैं। कौन कहता है कि पैसा पेड़ पे नहीं उगता।

इसी तरह टेलीविजन चैनल, विशेषज्ञ पैनलिस्ट और समाचार एंकर का कहना ही क्या! सभी खुश हैं क्योंकि उन्हें अक्सर टीवी चैनलों की बहसों में टीआरपी की रेटिंग के लिए उत्सुकता से फुल वॉल्यूम पर शोर मचाते हुए देखा जा सकता है। आयकर अधिकारी यह देखकर खुश हैं कि उम्मीदवार पानी की तरह पैसा बहा रहे हैं, जबकि उनके आय के हिसाब से वे गरीबी रेखा से बहुत नीचे हैं। इन छिपे हुए करोड़पतियों पर छापा मारने के ख्याल से ही उनकी हथेलियों में खुजली होने लगी।

डॉक्टर भी खुश - रैलियों में तेज़ बहस और लाउडस्पीकरों ने लोगों के सुनने की क्षमता को बर्बाद कर दिया है। हप्तों चिल्लाते रहने से उम्मीदवारों की महीन कोयल सी आवाज ऐसी हो गई कि कौआ भी शरम करे।
ईएनटी विशेषज्ञ खुश हैं क्योंकि कई लोग बहरेपन और कर्कश आवाज के लिए उनसे सलाह ले रहे हैं।
हृदय रोग विशेषज्ञ खुश हैं क्योंकि चुनाव नतीजे आने के बाद उनके ग्राहकों की संख्या में सुधार होगा; हारे हुए प्रत्याशी को सीने में दर्द के लिए इनसे परामर्श लेना होगा।

मनोचिकित्सकों को आज कौन देखे,  उनका उत्साह बुलंदी पर है। ये सब पराजित उम्मीदवारों के नर्वस ब्रेकडाउन के इलाज के लिए अपनी सेवाओं के साथ तैयार हैं!  वे सभी चाहते हैं कि चुनाव बार-बार हों क्योंकि लोग लोकतंत्र के नृत्य का जश्न मना रहे हैं।

- डॉ. शिवनारायण आचार्य

   नागपुर (महाराष्ट्र)
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