कुम्हला फूल
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तेरी ज़ुल्फें संवार दूं
हिम्मत न हुई।
तुझे लिक्खूं
एक खत
बयान कर दूं
मन में इठलाती
लहरें,
कलम न उठी।
नजरों से नजरें
मिला लूं ,
पलकों ने
कहा न माना।
सोचा कह दूं
दिल की बातें,
तुतलाती ज़ुबान
बेज़ुबां हो गई ।
जाती हुई डोली से
निराश नजरों से
देखा तूने मेरी ओर,
तब मालूम हुआ,
तूफान तो
उधर भी था।
- डॉ. शिवनारायण आचार्य ‘शिव’
नागपुर (महाराष्ट्र)