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साड़ी - ‘जिंदगी के साथ भी, जिंदगी के बाद भी'

                                            

साड़ी, भारतीय नारी का पसंदीदा परिधान, जो सर्वगुण संपन्न होने के साथ- साथ, भारतीय महिलाओं के पास भावनाओं और यादों की धरोहर बनकर उम्र भर साथ निभाती है। माँ के साथ साथ अतीत के अनगिनत किस्मती पलों को यादों के रूप में ये अपने अंदर सजो कर रखती है यू ही नहीं ये इतनी खास लगती है।
इनकी सबसे बड़ी खासियत ये अन्य वस्त्रों की तरह कभी भी आपको छोटी नहीं होती। 

आप चाँद मामा की तरह जिंदगी के पूर्णिमा और अमावस्या के हिसाब से कम और ज्यादा हो सकती है शारिरीक बनावट के तौर पर, उसके अनुसार आपके अन्य वस्त्र बदल जाएंगे या यू कह लीजिए आप बदलने के लिए बेबस हो जाएंगे पर साड़ी का हाल कुछ ऐसा है' उम्र के साथ भी तथा उम्र के बाद भी'।

कभी कभी हम सुनते भी है कुछ साड़िया पीढ़ी दर पीढ़ी भी यादों की धरोहर बन कर साथ निभाती है। जिसमें हमारे पास अतिविशिष्ट उदाहरण के तौर पर है, देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिराजी की साड़ी, उनके विवाह की साड़ी जो नेहरू जी ने जेल के दिनों में अपने हाथों से बनाई थी और वहीं साड़ी सोनिया गांधी फिर प्रियंका गांधी ने भी ग्रहण की।

एक दिन ऐसा आता है जब माँ का साया हमारे सिर से उठ जाता है पर उनकी ऊपहार दी हुई साड़ियां उनके ममता भरे स्पर्श का सुखद एहसास दे जाती है।ये सदैव हमें हमारे जननी से जोड़े रखती है।बेहद खास एहसास बनकर। बेसकिमती आशीष बनकर।

- पूनम हिंदुस्तानी
   नागपुर, महाराष्ट्र 
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