पिता होना आसान नहीं होता : निशा चावला
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मां ममता की छाव है, तो पिता अनुभव का दरिया है। जब एक अलबेला, जो जिद्दी , मनमानी करने वाला, खर्चीला, जिसने अभी अभी जिम्मेदारी संभालना शुरू की है, जिसने अभी शादी की , और पिता बनने के बाद वह जिम्मेदार , गंभीर बन जाता है।
क्योंकि मां बच्चे को पेट में पालती है, पर पिता उसे दिमाग में पालता है। आज बात उस इंसान की जो जीवन में सबसे अधिक कुर्बानी देता है, और सबसे कम क्रेडिट नसीब होता है। और वो है पिता।
जो नौकरी में जाता तो जवान है, पर लौटता बूढ़ा है।
जिसकी तमाम उम्र बच्चो को अच्छी जिंदगी देने और परिवार को ठीक ठाक चलाने ने चली जाती है। जो खुद के बारे में सोचना ही भूल जाता है। एक बच्चे को 16 फोटो दिखाए, और पूछा किसके जैसा बनना चाहते हो, उन फोटो में उसके पापा का भी फोटो था। सबसे पहले बच्चे ने अपने पापा का फोटो अलग कर दिया। हालांकि उसका पापा एक सफल व्यापारी था, लोग उससे अनुभव लेने आते थे, पर बच्चो की नजरो में कुछ खास नहीं था। कई शक्तिशाली राजाओं को पुत्र मोह में देखा है, जैसे धृतराष्ट्र, दुर्योधन को समझा पाता की पांच गांव पांडव को दे दे। तो उसके सौ पुत्र नष्ट नहीं होते। पिता जीवन भर निस्वार्थ जीवन जीता है ।वो खुद के ऊपर ध्यान ही नही देता , पत्नी , बच्चो की जिंदगी पर सब कुछ लुटा देता है। पिता का अनुशासन, जवान बच्चो को अच्छा नहीं लगता, लेकिन जब वही बच्चे जब बड़े होते है तो उन्हें अहसास होता है कि मेरे पापा बड़े सही थे।
आज के युग में कई घरों में मां बाप अकेले नजर आते है, क्योंकि उन्हें अपने घर से लगाव होता है वो बच्चों के साथ दूर शहरो विदेशों में नहीं जाना चाहते है, वो अपनी जमा पूंजी लूटा के अकेलापन खरीद लेते है।
बेटियों का पिता से एक अलग ही लगाव होता है, उसका पहला हीरो उसका पापा ही होता है।
पिता भी बेटो को भले न कर दे लेकिन बेटियों के लिए तो अलादीन का जीन होते है।
लेकिन एक दिन अपनी परी को विदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ते ।औरकितना भी मजबूत पिता हो बिना आंसू बहाए बेटी को विदा नहीं कर पाता।
मां तो फिर भी भावुक होके बोल देती है। पिता तो न शिकवा कर पाता है न शिकायत।वो तो बच्चो द्वारा दिए हुए दर्द को भुला कर आगे निकल जाता है।
विकास दिव्यकीर्ति जी का विडिओ सुना, वो एक ऐसे पिता की बात बता रहे थे कि उस पिता का बेटा परीक्षा में असफल हुआ तो उन्होंने एक पार्टी रखी और सबको बुला के कहा कि मेरा बेटा इस बार असफल जरूर हुआ है लेकिन ये पार्टी उसके मेहनत करने की है। मैने उसे मेहनत करते देखा है । मेरा बेटा को मेहनत करना आता है ये इस की पार्टी है। और जो पिता असफल बेटे के कंधे पर हाथ रख दे ,वो बच्चों की कामयाबी में बजने वाली तालियों से बेहतर होते है। ये साबित करती है।
पितृछाया मातृछाया घर के बाहर लिखने से बेहतर है, घर में रहने वाले माता पिता की छाया का अनुभव करे।
"मेरे स्वाभिमान, अभिमान हैं पापा,
मेरी जमीं, आसमां हैं पापा,
मैं भटक जाऊं तो रास्ता दिखाना पापा,
मेरे लिए हर पल साथ रहना पापा,"
- निशा चावला
मोटिवेशन स्पीकर
नागपुर, महाराष्ट्र