गर्मी की छुट्टियां


कितने अच्छे होते थे वे दिन,
जब अपनी भी गर्मी की छुट्टियां होती थी।

छोटे–छोटे घर और दिल बड़े होते थे,
जहां खुशियां सारी इकठ्ठी होती थी।

दुलार होता था मैसी और मामा का,
और नानी की कहानियां हज़ार होती थी।

लू और गर्मी से हल्कान होकर,
कैरम और शतरंज में दोपहर की सारी मस्ती होती थी।

आंगन और छतों में पानी की बौछार का खेल,
मकान कच्चे पर नींद बड़ी पक्की होती थी।

सुर के कच्चे लेकिन अंताक्षरी के पक्के।
लंबी लंबी गप्पे और रातें छोटी होती थी।

तपती धूप और बगीचे के आम,
आंगन में बिछौना और मोगरे की महक होती थी।

कितने अच्छे होते थे वे दिन,
जब अपनी भी गर्मी की छुट्टियां होती थी।

- डॉ. तौक़ीर फातमा ‘अदा’

कटनी मध्य प्रदेश
काव्य 4440728760849032965
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