सामाजिक परिवर्तन का आधार है साहित्य : लक्ष्मी शंकर वाजपेयी
https://www.zeromilepress.com/2024/05/blog-post_92.html
नागपुर। साहित्य क्रांति नहीं करता, किन्तु क्रांति की पृष्ठभूमि अवश्य तैयार करता है। अपने सामाजिक सरोकारों के नाते ही साहित्य समाज में जुड़ता है। यही उसका महत्व है और यही उसकी सामाजिक उपादेयता भी है। यह बात 'साहित्य अमृत' पत्रिका, दिल्ली के सम्पादक तथा आकाशवाणी के पूर्व उप महानिदेशक श्री लक्ष्मी शंकर वाजपेयी ने कही। वे हिन्दी विभाग, राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित एक परिचर्चा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि हमें अपने कार्य को 'मिशन' के रूप में करना चाहिए। जो कार्य, विचार सामाजिक परिवर्तन की बुनियाद तैयार करता है, वास्तव में वही श्रेष्ठ होता है। आज समाज में बढ़ते पाठ-कुपाठ के संकट पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि साहित्य की सामाजिक सम्बद्धता तथा अध्ययन के लिए उत्तम वातावरण का निर्माण करके इस संकट को दूर किया जा सकता है।
प्रास्ताविक रखते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज पाण्डेय ने कहा कि साहित्य के सरोकारों का आयतन बृहद होना चाहिए। आज बढ़ती पठनीयता के संकट का मूल कारण कहीं न कहीं रचनाकारों के सरोकारों का सिकुड़ना भी है। अनुभव और ऊर्जा की कमी के साथ हमारी मानवीय वृत्तियों में संकुचन इसकी बड़ी वजह है। रचनाधर्मिता के साथ मानवतावादी दृष्टि के विस्तार से इस अभाव को दूर किया जा सकता है।
कार्यक्रम का संचालन संयोजक डॉ. कुंजनलाल लिल्हारे ने किया तथा आभार डॉ. लखेश्वर चंद्रवंशी ने व्यक्त किया। परिचर्चा में संतोष बादल, डॉ. सुमित सिंह, नीरज श्रीवास्तव, डॉ. आभा सिंह, प्रा. दामोदर द्विवेदी, अनिल त्रिपाठी, मधू मिश्रा, मधुलता व्यास, टीकाराम साहू, ज्ञानेश्वर में लेकर, रीमा चड्ढा, मधु गुप्ता सहित अनेक शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।