मैं मां को बदलना चाहती हूं
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मां शब्द बोलते ही एक विशेष अनुभूति होती है जैसे संकटमोचक और विघ्नहर्ता शब्द अपने आप में पूर्ण हैं वैसे ही मां शब्द ना केवल पूर्ण है बल्कि पूर्णता को भी प्रदान करता है. आप सोच रहे होंगे कि मां के लिए इतना प्यार और सम्मान मेरे दिल में है तो फिर यह दिल दुखाने वाला शीर्षक क्यों?
आइए मैं आपको एक मां की जीवन यात्रा पर ले चलती हूं. मां के लिए जीवन भर किसने क्या-क्या किया इसकी एक लंबी चौड़ी लिस्ट थी, लेकिन माँ ने क्या किया इसका हिसाब कभी किसी ने नहीं रखा. पढ़ाई में टॉपर मां को उनके पापा ने बनाया, सफल बिजनेस वुमन मां को पति ने बनाया, किचन और ब्यूटी क्वीन उनको उनकी मम्मी और सास ने बनाया, पर इन सब में मां का क्या योगदान था उन्होंने क्या किया यह सब शायद हर इंसान भूल चुका था हाँ याद था उन लोगों को सिर्फ यही कि उन्होंने मां को क्या बनाया और
मां इस मुकाम तक पहुंची इसके लिए उन्हें गर्व नहीं था, माफ कीजिए ब्लकि यह सबका एहसान था माँ पर. जिससे हमे बहुत तकलीफ होती थी।
जहां हम भाई बहनों को उनके एक सफल व्यवसायिक होने पर गर्व था. वही जब उन्हें यह कहा जाता कि तुम अपना दिमाग मत लगाओ जितना कहा उतना करोतो हमें तकलीफ होती थी।
मम्मी खाना बनाने में अन्नपूर्णा थी अगर आधी रात को भी उन्हें कोई भोजन की डिमांड करें तो वह उठकर उतना ही स्वादिष्ट खाना बना देती, परंतु जब किसी दूसरी स्त्री के समाने यह कहा जाता की आप खाना बहुत अच्छा बनाती हैं थोड़ा इन्हें भी सिखा दीजिए. तो हमें तकलीफ होती थी।
समाज में लोग उनकी बातों को जितना मान देते थे, उससे ज्यादा कहीं अपमान वो घर में सहती. यहां तक कि कब क्यों और कहां यह शब्द उन्हें बोलने की मनाही थी. जितना कहा उतना करो, क्या खाना और क्या पहनना है यहां तक कि कई बार तो उन्हें किस से क्या बात करनी है यह शब्द भी उनके मुंह में ठूँस दिए जाते थे
तो हमें तकलीफ होती थी।
आज माँ इस दुनिया में नहीं है पर मैंने अपने विचारों और संस्कारों से उन्हें हमेशा जीवित रखा है
मां प्रकृति की तरह थी जो सिर्फ देना जानती थी और अंदर से मायूस और दुखी हो कर भी बाहर खुशियां बांटती थी
मैं यहां कुछ बदलना चाहती हूं।
प्रकृति का दुरुपयोग करने वाले लोगों को यह समझना चाहती हूं कि यदि तुम प्रकृति को नष्ट करोगे तो स्वयं भी नष्ट हो जाओगे
इस कहानी के पीछे छुपी भावना यही है कि मैं हर वह कार्य करना चाहती हूं जो माँ ने किया पर
अपने आत्मविश्वास और आत्मसमान के साथ खिलना चाहती हूं। हां मैं अपने भीतर जीवित अपनी मां को बदलना चाहती हूं हां मैं अपनी मां को बदलना चाहती हूं।
- डॉ. रूपिंदर छतवाल
नागपुर (महाराष्ट्र)