हिंदी और नागरी लिपि की शोध के माध्यम से महत्ती प्रतिपादित करनी होगी : डॉ. श्यामसुंदर कथूरिया
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नागपुर/पुणे। राजभाषा व राष्ट्रभाषा हिंदी तथा राष्ट्र लिपि देवनागरी की शोध के माध्यम से भारतीय जनमानस में महत्ती प्रतिपादित करनी होगी। इस आशय का प्रतिपादन डॉ.श्याम सुंदर कथूरिया, संयुक्त निदेशक (राजभाषा),कर्मचारी राज्य निगम,भारत सरकार,दिल्ली ने किया। श्री कृष्ण स्वामी महिला महाविद्यालय, चेन्नई, तमिलनाडु के हिंदी विभाग,आंतरिक गुणता आश्वासन प्रकोष्ठ तथा नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय आभासी संगोष्ठी (सोमवार, 5 मार्च, 2024) में वक्ता के रूप में वे अपना उद्बोधन दे रहे थे। प्रो. डॉ. राजलक्ष्मी कृष्णन्, नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली की तमिलनाडु प्रभारी ने गोष्ठी की अध्यक्षता की। डॉ. कथूरिया ने आगे कहा कि हिंदी अनुसंधान के स्तर से आगे बढ़ चुकी है, पर उच्च शिक्षा में हिंदी का रुझान कम हो रहा है। देश पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। हिंदी साहित्य के क्षेत्र में शोध बहुत मात्रा में हुआ है। हिंदी भाषा की संरचनात्मकता को लेकर शोध की आवश्यकता है। हिंदी की ख्याति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो चुकी है। तथ्य को प्रमाणित करने के लिए हिंदी भाषा में शोध जरूरी है। लिपि में भी शोध की बहुत संभावनाएं हैं। शोध में तर्क देने होंगेऔर उन्हें उजागर करना होगा। नागरी की वर्ण संख्याओं में भी विवाद है। देव नागरी के पास मानक वर्ण माला है।
डॉ जैनब बी, सहायक प्राध्यापिका-हिंदी, डी. आर. बी. सी. सी. हिंदू महाविद्यालय, पट्टाविराम, चेन्नई, तमिलनाडु ने कहा कि वैश्वीकरण के इस युग में 6114 भाषाएं बोली जाती हैं, जिसके अंतर्गत हिंदी भाषा तथा देवनागरी लिपि भारत भूमि पर पल्लवित होकर समस्त भाषाओं को जीवंत रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। अपनी वैज्ञानिकता के कारण देवनागरी लिपि आज राष्ट्रलिपि के पद पर आसीन हैं। सोशल मीडिया में भी देवनागरी लिपि का भरपूर मात्रा में प्रयोग हो रहा है। सत्य, अहिंसा और विश्व कल्याण की भावना हिंदी और नागरी लिपि में निहित हैं, जो ‘वसुधैव कुटुंबकम् को चरितार्थ करने की क्षमता रखती है। नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के कार्याध्यक्ष पूर्व प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने कहा कि डॉ. जयंती प्रसाद नौटियाल ने अपने भाषाई शोध अध्ययन से स्पष्ट किया है कि विश्व में हिंदी बोलने वालों की संख्या निसंदेह सर्वाधिक है। बोलचाल, लोक व्यवहार तथा संपर्क की दृष्टि से हिंदी विश्व में अग्रक्रम पर है। पर अध्ययन, अध्यापन व ज्ञान की दृष्टि से सीखी जाने वाली भाषाओं में हिंदी कहीं पर भी दिखाई नहीं देती। अंग्रेजी, स्पेनिश, फ्रेंच, जर्मन तथा जापानी भाषा सीखने में रुचि बढ़ती जा रही है। दूसरी तरफ हर 40 दिन में एक भाषा समाप्ति के कगार पर है। अतः हिंदी में शोध की अनेक सुविधाएं उपलब्ध हैं, जिससे युवा पीढ़ी को अवगत कराना होगा और उन्हें उजागर भी करना होगा। देवनागरी लिपि के संदर्भ में भी नागरी लिपि की ऐतिहासिकता, वैज्ञानिकता, वर्णनात्मकता, वैश्विक परिदृश्यता, सुधार की संभवनीयता आदि उपविषयों को लेकर अधिकांश मात्रा में शोध किया जा सकता है।
नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली की त्रमासिक ‘नागरी संगम’ पत्रिकाओं पर भी शोध किया जा सकता है। प्रसिद्ध लिपि शास्त्री श्रीधर लक्ष्मण वाकणकर आजीवन देवनागरी लिपि पर शोध करते रहे। फर्ग्यूसन महाविद्यालय, पुणे की पूर्व प्राध्यापिका डॉ. रजनी रणपिसे ने नागरी लिपि विषय पर अपना शोध प्रबंध प्रस्तुत कर पीएचडी की उपाधि पायी है। कुछ शोधार्थी इन्हीं विषयों को लेकर शोधरत भी हैं। नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के महामंत्री तथा भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के हिंदी सलाह समिति के सदस्य डॉ. हरि सिंह पाल ने अपने उद्बोधन में कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 1918 में इंदौर अधिवेशन में कहा था कि दक्षिण भारत में भी हिंदी का प्रचार-प्रसार हो। अत: उन्होंने अपने पुत्र देवदास गांधी को दक्षिण भारत भेज दिया था। नागरी लिपि की स्वीकार्यता पूरे राष्ट्र की है। हिंदी भाषा व देवनागरी किसी एक प्रदेश विशेष की नहीं है। तमिल सबसे सुंदर व सक्षम भाषा है। संविधान की अष्टम अनुसूची में निर्दिष्ट भाषाएं सभी राष्ट्रभाषाएं हैं। तमिलनाडु में भी तमिल भाषा संकट में है क्योंकि वहां अंग्रेजी माध्यम के स्कूल सर्वाधिक हैं। अन्य भारतीय भाषाएं भी संकटग्रस्त है। अतः हमारी अपनी भाषा पर पकड़ होनी चाहिए। फिर भले ही हम कितनी भी भाषाएं बोलते रहें। नागरी लिपि परिषद की तमिलनाडु प्रभारी प्रोफेसर डॉ राजलक्ष्मी कृष्णन् ने अध्यक्षीय समापन में कहा कि आज एक दर्जन से अधिक भाषाएं नागरी लिपि में लिखी जाती है। अलिखित बोलियों के लिए भी देवनागरी उत्तम है, जिसमें शोध की अपार संभावनाएं निहित हैं। संगोष्ठी का शुभारंभ महाविद्यालय की बीसीए तृतीय वर्ष की छात्रा वैष्णवी की मधुर सरस्वती वंदना से हुआ। महाविद्यालय की हिंदी विभाग अध्यक्ष डॉ. के आनंदी ने स्वागत भाषण प्रस्तुत किया। छात्रा लता एच, कविता टी. और नंदिनी आर ने अतिथियों का परिचय कराया। वैष्णवी आर. और रजनी वी. ने आभासी गोष्ठी का उत्कृष्ट संचालन किया। सुमित्रा देवासी ने आभार ज्ञापन किया। पटल पर 100 से अधिक प्रतिभागी जुड़े हुए थे।