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आरिणी चैरिटेबल फाउंडेशन का काव्यपाठ आयोजित


नागपुर/भोपाल। तालों के शहर भोपाल में प्रकृति की गोद में बड़े तालाब के किनारे स्थित शीतलदास की बगिया में आरिणी चैरिटेबल फाउंडेशन की सरस काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया। परिसर में स्थित मंदिर ने वातावरण को आध्यात्मिक बना दिया था और बहती हुई लहरों की कल कल ध्वनि ने कवि मन में भावनाओं का अंबार लगा दिया और हुआ यूं कि एक के बाद एक विभिन्न विषयों पर रचनाओं का रसास्वादन करने को मिला। 


गोष्ठी का आरंभ माँ सरस्वती की स्तुति से हुई, जिसे प्रस्तुत किया सेवानिवृत्त प्राचार्या मीनाक्षी गुरु ने। फिर सभी ने मिलकर शिव रुद्राष्टक का पाठ किया। उसके बाद डॉ रंजना शर्मा ने उपस्थित सभी सखियों का काव्यात्मक परिचय दिया। आरिणी की अध्यक्ष डॉ मीनू पांडेय ने बताया कि शिव मंदिर प्रांगण में आयोजित इस गोष्ठी में एक ओर जहाँ नववर्ष के स्वागत में गीतों की प्रस्तुति हुई तो दूसरी ओर बसंत, इश्क़, लहरों पर कविता विषय पर भी शानदार प्रस्तुतियां दी गयीं। 


संपूर्ण देश में आई राम लहर से भी ये गोष्ठी अछूती नहीं रही। साथ ही साथ देशभक्ति की भावपूर्ण रचनाओं का भी पाठ इसमें किया गया। आभार प्रदर्शन आरिणी की सचिव प्रेक्षा सक्सेना ने किया। संपूर्ण कार्यक्रम फेसबुक पर भी लाइव किया गया। रचनाओं की सार्थकता इस बात से सिद्ध होती है कि मंदिर प्रांगण में दर्शनार्थ आये युवा भी रचनाओं की नदी रुपी प्रवाह में स्वयं को बहने से न रोक सके और रुक रुक कर सुनते रहे और पंक्तियों को साथ-साथ दोहराते रहे। रचनाओं के पाठ के बाद शिव तांडव एवं कुछ भजनों की प्रस्तुति भी हुई और साथ ही साथ नृत्य कला का प्रदर्शन भी दर्शक दीर्घा में होता रहा। इस कार्यक्रम में प्रस्तुत रचनाएं हैं:

धरती प्यारी, अंबर प्यारा 
प्यारा हर इंसान रे 
सरगम चाहे अलग-अलग हो , 
सबके गीत समान रे । 

- शेफालिका श्रीवास्तव

दो हज़ार चौबीस का देखो आया अनुपम वर्ष है।
इसमें तो चौबीस घंटे ही हम सबका उत्कर्ष है।।

- लीना वाजपेई आनंदलीना 

देश भक्ति के रंग से चुनरी रंगने लगी
 मैं तो फौजी के संग चुनरी बुनने लगी

- सुनीता शर्मा सिद्धि 

आरंभ वही है वही अंत जो है अनादि जो है अनंत,
हर कण में है वह हर क्षण में,
हर ओर वही वह दिगदिगन्त।

- बर्षा श्रीवास्तव वर्षिता 

लहरों के किनारे
एक दिन यूं ही भटकते हुए 
पहुँच जाती हूं किसी समंदर के किनारे
दूर तक फैली अथाह जलराशि के बीच 
देखती हूं एक नाव मेरी ओर तैरती हुई आ रही है 
सोचने लगती हूं क्या इसे पता था मैं आऊँगी यहां ?

- शशि बंसल

बसंत ऋतु आयी, बसंत ऋतु आयी।

 - कल्पना विजयवर्गीय 

जागो गणतंत्र दिवस आया
सावधान फिर मत सोना
सदियों की कठिन कमाई को
आलस में पड़कर मत खोना।

- डॉ रंजना शर्मा

काम कोटि छबि स्याम मनोहर। 
नील कंज बारिद से सुंदर।
सर पर जिनके मुकुट है साजे।
अद्भुत अद्वितीय हैं मनहर।

- डॉ मीनू पांडेय नयन

राम नाम है अति सुखदायी ,महिमा जाकी पार न पाई ।
जन -जन को जो पालन हारी,अदभुत क्षमता लीला न्यारी ।।

- हंसा श्रीवास्तव

न दुआ लगे न दवा लगे, मेरे जख्म को क्यों हवा लगे। 
सुकूं की इल्तजा में हूँ, पर दर्द ही मेहरबां लगे।

- प्रेक्षा सक्सेना

खट्टी-मीठी यादों के संग बीता वर्ष पुराना।
अभिनंदन है नववर्ष का, लेकर आया नया जमाना।

- मृदुल त्यागी
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