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सभी मौखिक ध्वनियों को नागरी लिपि अपने में समाहित करने की क्षमता रखती है : डॉ. रामा तक्षक


नागपुर/पुणे। ‘दुर्भाग्य से मुट्ठी भर लोग ही नागरी लिपि में काम कर रहे हैं। अधिकतर अंग्रेजी की रोमन लिपि के गुलाम बने हुए हैं। पर मनुष्य के मुख से जितनी ध्वनियां निकलती हैं, उन सभी को अपने में समाहित करने की क्षमता एकमात्र नागरी लिपि में है।’ इस आशय का प्रतिपादन डॉ. रामा तक्षक, अध्यक्ष - सांझा संसार, नीदरलैंड ने किया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी के परम अनुयायी आचार्य विनोबा भावे जी की सद्प्रेरणा से स्थापित नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली की छत्तीसगढ़ इकाई के तत्वावधान में दिनांक 3 फरवरी, 2024 को 'नागरी लिपि: वैश्विक परिदृश्य' विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय आभासी गोष्ठी में डॉ तक्षक मुख्य वक्ता के रूप में अपना उद्बोधन दे रहे थे। 

नागरी लिपि परिषद्  के कार्याध्यक्ष एवं पूर्व प्राचार्य प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने गोष्ठी की अध्यक्षता की। डॉ. रामा तक्षक ने आगे कहा कि आज की संगोष्ठी का विषय रोचक व गहन विमर्श का है। पर नागरी लिपि में काम कम हो रहा है। संस्कृत तथा वैदिक साहित्य की लिपि नागरी है। वास्तव में कंप्यूटर की गणना ऋग्वेद से आयी है। कंप्यूटर का नाम गणेश रखा जाना चाहिए था, पर नहीं रखा गया है।दुर्भाग्य से हम विरासत को छोड़कर अंग्रेजी की रोमन लिपि के पीछे दौड़ रहे हैं। नीदरलैंड में भोजपुरी सहित कुछ भारतीय भाषाएं प्रयोग में है। नागरी लिपि अत्यंत सरल, सशक्त, स्पष्ट व सुदृढ़ लिपि है। 

नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के  महामंत्री तथा संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य डॉ. हरिसिंह पाल ने अपनी अभिव्यक्ति में कहा कि, मूल लिपि ब्राह्मी से भारतीय भाषाएं उद्भुत है। ब्राह्मी से ही नागरी लिपि का उद्भव हुआ है। फादर कामिल बुल्के ने राम कथा पर  पहला शोध प्रबंध नागरी  लिपि में लिखा  था। भारतीय संस्कृति के स्थाई संरक्षण  के लिए हमें लोक साहित्य को लिपिबद्ध कर, उसका प्रकाशन करना आवश्यक है, लिपि विहीन बोली - भाषाओं के लिए नागरी लिपि सबसे अधिक उपयुक्त सिद्ध हो सकती है। लिपिकरण के अभाव  में आज विश्व में पंद्रह दिन में एक भाषा समाप्त होती जा रही है। क्योंकि इन भाषाओं को लिखकर बोलने वाले बचे नहीं है। अतः विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकी भाषाओं को लिपिबद्ध  कर लिया  जाए तो उसका अस्तित्व  भविष्य के लिए सुरक्षित बना रहेगा।इस कार्य में नागरी सर्वाधिक सक्षम लिपि है। अलिखित मौखिक भारतीय ज्ञान परंपरा को नागरी लिपि में सदा सदा के लिए सुरक्षित किया जा सकता है। मुझे प्रसन्नता है कि आज की संगोष्ठी में देश के  पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक के सभी राज्यों के नागरी - प्रेमी अध्येता जुड़े हुए हैं। नागरी लिपि परिषद के कई आजीवन सदस्य विदेशों में नागरी लिपि के प्रचार, प्रसार व संरक्षण - संवर्धन में योगदान दे रहे हैं।

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय नई दिल्ली की प्राध्यापक डॉ. हर्षिता, सहायक प्राध्यापक  ने कहा कि भाषा के लिखित रूप के लिए लिपि की आवश्यकता महसूस हुई। विश्व भर में नागरी के साथ रोमन,फारसी, रूसी जैसी अनेक लिपियां प्रचलन में है। वैश्विक स्तर पर अनेक महानुभाव विदेश से भारत आकर हिंदी और नागरी लिपि को आत्मसात करने में रुचि ले रहे हैं।भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 (1) में नागरी लिपि का राज लिपि व राष्ट्र लिपि के रूप में उल्लेख है। 

नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के कार्याध्यक्ष प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, (पुणे,) महाराष्ट्र ने अध्यक्षीय समापन में कहा कि विश्व में  लेखन के लिए अनेक लिपियों का आविष्कार हुआ है, परंतु जितना वैज्ञानिक और तार्किक  चिंतन नागरी लिपि की योजना के पीछे है ,उतना अन्यत्र दुर्लभ है। अपनी वैज्ञानिकता को नागरी  लिपि ने अनेक संदर्भ में सिद्ध कर दिखाया है।आचार्य विनोबा भावे जी ने नागरी को भारत के लिए वरदान माना है।सन 1000 तक ब्राह्मी लिपि से उत्पन्न नागरी लिपि का प्रचार- प्रसार भारत में दूर-दूर तक हो चुका था। अपनी संरचनात्मक उदारता, तार्किकता,वैज्ञानिकता,ध्वनियों की परिपूर्णता तथा लचीलेपन के कारण नागरी का वैश्विक परिदृश्य विस्तार पा चुका है। विश्व मंच पर वेब की दुनिया में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नागरी प्रत्येक क्षेत्र में उड़ान भर रही है।

प्रारंभ में कर्नाटक  सरकार से 'राज्य शिक्षक पुरस्कार' प्राप्त प्राध्यापक डॉ. सुनील कुमार परीट,(बेलगांव,कर्नाटक ) ने अपनी प्रस्तावना में चारों ओर से लिखी जाने वाली नागरी लिपि को अत्यंत वैज्ञानिक लिपि बताया। डॉ.राजलक्ष्मी कृष्णन,परिषद् की तमिलनाडु प्रभारी(,चेन्नई )ने नागरी लिपि की महत्ता पर काव्य पाठ किया। गोष्ठी का शुभारंभ डॉ. संगीता पाल,(कच्छ, गुजरात) की सुरीली आवाज में प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ। डॉ. नूरजहां रहमातुल्लाह, (प्राध्यापक- हिन्दी,काटन विश्वविद्यालय, गुवाहाटी, असम )ने कराया। स्वागत उद्बोधन प्राध्यापक नम्रता ध्रुव, (रायपुर, छत्तीसगढ़ )ने दिया। छत्तीसगढ़ से नागरी लिपि की आजीवन सदस्य एवं प्रचारक व प्रसारक डॉ.मुक्ता कान्हा कौशिक, (प्राध्यापक-शिक्षा मनोविज्ञान, ग्रेसियस शिक्षा महाविद्यालय, रायपुर,छत्तीसगढ़) ने नागरी लिपि की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए अंतरराष्ट्रीय आभासी संगोष्ठी का सफल व सुंदर संचालन एवं नियंत्रण किया। 

नागरी लिपि परिषद, की छत्तीसगढ़ इकाई प्रभारी तथा राज्यपाल शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित डॉ. आशीष नायक, (धमतरी, छत्तीसगढ़) ने आभार ज्ञापन किया। इस संगोष्ठी में राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी, डॉ. रामहित यादव, डॉ.नजमा बानो मलेक, डॉ  अदिति सैकिया(डिब्रूगढ़), सपना मंडल (गुवाहाटी), एस अनंत कृष्णन (चेन्नई)एम सुब्रमण्यम (विशाखापट्टनम), डॉ ए के साहू (बेंगलुरु), डॉ सी जे प्रसन्नकुमारी (तिरुवनंतपुरम), डॉ पोपट कोटमे (नासिक), डूंगरी शांति (ईटानगर), ललित शर्मा (असम), नीतू बाला (पंजाब), डॉ ऋषि मणि त्रिपाठी (लखनऊ), डॉ शंकर सिंह परिहार (गुजरात), डॉ पुष्पा कुमारी (भागलपुर), हरीराम पंसारी (भुवनेश्वर), डॉ राहुल खटे, डॉ वेंकटेश्वर राव (हैदराबाद) दीपिका (कोयंबटूर), डॉ पल्लवी पाटिल (लातूर) सहित 100 से अधिक प्रतिभागी पटल पर जुड़े हुए थे।
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