भगवती चरण वर्मा के यश का आधार उनकी औपन्यासिक कृतियाँ है : डॉ.सूरज कुमार
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नागपुर/पुणे। ‘हम दीवानों की क्या हस्ती है, आज यहां, कल वहाँ चले।
मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले।।’
इन पंक्तियों के कवि भगवती चरण वर्मा के साहित्यिक जीवन की शुरुआत आशु कवि के रूप में होती है, लेकिन उनके यश का आधार उनकी औपन्यासिक कृतियाँ रही है, जिसमें उन्होंने सामाजिक यथार्थ को उकेरा है। इस आशय का प्रतिपादन डॉ. सूरज कुमार, सहायक आचार्य-हिंदी, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली ने किया। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के तत्वावधान में ‘भगवती चरण वर्मा, रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ और उनकी रचनाएं’ इस विषय पर मंगलवार 30 जनवरी,2024 को आयोजित राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी 188 वीं (36) में वे मुख्य वक्ता के रूप में अपना उद्बोधन दे रहे थे।
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने गोष्ठी की अध्यक्षता की। पाप-पुण्य की विवेचना पर आधारित उपन्यास ‘चित्रलेखा’ भगवती चरण वर्मा के यश का आधार बना। साथ ही टेढ़े-मेढ़े रास्ते, आखिरी दाँव, ‘अपने खिलौने’ और ‘भूले बिसरे चित्र’ के रूप में लिखे गए चार अन्य बृहद उपन्यासों का हिंदी उपन्यास परंपरा में विशिष्ट स्थान है। उन्होंने ‘वास्वदत्ता की चित्रलेखा’ नाम से फिल्मी पटकथा भी लिखी हैं। उनकी आत्मकथा ‘कही ना जाए कहिए’ भी पठनीय है। डॉ. ज्ञानदेव कोल्हे, सह आचार्य, न्यू आर्ट्स कॉमर्स व साइंस कॉलेज, अहमदनगर, महाराष्ट्र ने कहा कि रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। साहित्यिक सृजन की प्रेरणा उन्हें विरासत में मिली थी। 17 वर्ष की अवस्था से अंचल जी ने लेखन प्रारंभ किया था। कहानी की अपेक्षा अंचल जी को कविता के क्षेत्र में ख्याति मिली। सुश्री सुशीला सैनी, शोधार्थी, हिसार, हरियाणा ने कहा कि भगवती चरण वर्मा हिंदी जगत के प्रमुख हस्ताक्षर है। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी उन्होंने उल्लेखनीय कार्य किए हैं। भगवती चरण वर्मा की साहित्यिक कृतियों का उल्लेख करते हुए सुश्री सुशीला सैनी ने ‘चित्रलेखा’ पर बृहद टिप्पणी प्रस्तुत की।
डॉ. नीलू शर्मा, हापुड़, उत्तर प्रदेश ने भगवती चरण वर्मा और रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ को बहुमुखी प्रतिभा के धनी बताया। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने अध्यक्षीय समापन में कहा कि भगवती चरण वर्मा की कविताओं में मस्ती और फक्कड़ पन को अभिव्यक्ति मिली है। किंतु उन्होंने सामाजिक विषमताओं और संघर्ष का भी चित्रण किया है। वर्मा जी की काव्य रचनाओं में हृदय की मस्ती, अनुभूतियों की गहनता और उन्मुक्त कल्पना की उड़ान परिलक्षित होती है। रामेश्वर शुक्ल अंचल जी की कविताओं में प्रणय को आवेशमयी अभिव्यक्ति मिली है। अंचल के काव्य में श्रृंगार की प्रधानता भी है। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के सचिव डॉ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी ने अपने प्रास्तविक भाषण में संस्थान के उद्देश्यों और कार्यों पर विस्तार से प्रकाश डाला।
डॉ. कृष्णामणि श्री ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की तथा डॉ.पूर्णिमा मालवीय, प्रयागराज ने स्वागत भाषण दिया। गोष्ठी का संयोजन श्रीमती पुष्पा श्रीवास्तव शैली, रायबरेली ने किया। आभासी संगोष्ठी का संचालन डॉ. रश्मि चौबे ने तथा प्रा. मधु भंभाणी ने आभार ज्ञापन किया। इस आभासी संगोष्ठी में संस्थान की छत्तीसगढ़ प्रभारी डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर,छतीसगढ़; शोधार्थी जयवीर सिंह, श्रीमती जयकला, डॉ विजय भारती, डॉ. नजमा मलेक, सविता करकेरा, चेतनसिंह, रतिराम गढ़ेवाल, डॉ. अनीता सक्सेना, डॉ. जैनब, सोनू कुमार, डॉ. लता चौहान की गरिमामयी उपस्थिति रही।