देवनागरी के वर्ण अक्षर हैं, जो क्षर नहीं होते : डॉ. रामा तक्षक
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नागपुर/पुणे। देवनागरी लिपि की जड़े अत्यंत गहरी हैं। अतः देवनागरी के वर्ण अक्षर हैं, जो क्षर नहीं होते इस आशय का प्रतिपादन डॉ. रामा तक्षक,अध्यक्ष, साझा संसार ,नीदरलैंड ने किया। आचार्य विनोबा भावे जी की सद्प्रेरणा से स्थापित नागरी लिपि परिषद, गांधी स्मारक निधि, राजघाट, नई दिल्ली की असम इकाई के तत्वावधान में 'वैश्विक परिदृश्य में नागरी लिपि: ध्वनि और लिप्यंकन' विषय पर रविवार 11 फरवरी, 2024 को आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में वे मुख्य अतिथि के रूप में उद्बोधन दे रहे थे। नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के कार्याध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने संगोष्ठी की अध्यक्षता की।
डॉ. रामा तक्षक ने कहा कि, देवतुल्य ऋषियों ने देवनागरी लिपि का सृजन किया है। ध्वनि उच्चारण की व्यवस्था मुख से कंठ तक है, यही ब्रह्म है। नागरी लिपि सामान्य न होते हुए गहन एवं शोध का विषय है। नागरी लिपि परिषद,नई दिल्ली के महामंत्री एवं भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के हिंदी सलाहकार समिति सदस्य डॉ. हरिसिंह पाल ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा की सरिता नागरी लिपि ही है। नागरी लिपि ने ही सर्वप्रथम शून्य का आविष्कार किया। नागरी लिपि विश्व के लिए अमूल्य देन है। विश्व की सभी भाषा ध्वनियों का उच्चारण मात्र नागरी में ही संभव है। बोडो भाषा के लिए नागरी लिपि को स्वीकार किया गया है।
प्रोफेसर डॉ. भरत प्रसाद, पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय, शिलांग,मेघालय ने कहा कि नागरी ध्वन्यात्मक लिपि है, जिसके साथ हजारों वर्षों की गौरवशाली परंपरा है। रोमन, चीनी तथा फारसी, लिपियों की तुलना में देवनागरी सर्वाधिक सरल लिपि है। बाएं से दांयी और लिखी जाने वाली देवनागरी सर्वाधिक वैज्ञानिक भी है। श्री रवि शंकर रवि, मुख्य संपादक, दैनिक पूर्वोदय, गुवाहाटी,असम ने कहा कि, पूर्वोत्तर की भाषाओं में लिपि का संकट है। फिर भी पूर्वोत्तर की भाषाओं और बोलियों के लिए सह लिपि के रूप में नागरी अत्यंत उपयुक्त है। राजनीतिक संघर्ष के बावजूद पूर्वोत्तर में नागरी लिपि का प्रचार- प्रसार जोरों पर है। रात 2 बजे जुड़े अखिल विश्व हिंदी समिति, टोरंटो, कनाडा के अध्यक्ष श्री गोपाल बघेल मधु ने कहा कि कनाडा में हिंदी और नागरी का प्रचार-प्रसार बहुल मात्रा में है।
डॉ. वरुण कुमार, निर्देशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय, भारत सरकार ने कहा कि देवनागरी लिपि की उपयुक्तता सर्वविदित है। दुर्भाग्य से दैनिक व्यवहार में देवनागरी का प्रयोग घटता जा रहा है। हिंदीतर भाषी प्रांतो तथा पूर्वोत्तर क्षेत्र के साथ हिंदी प्रदेशों में भी हिंदी नागरी का प्रचार- प्रसार अपेक्षित है। नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के कार्या ध्यक्ष प्राचार्य डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने अध्यक्षीय समापन में कहा कि, नागरी वर्णमाला स्वर और व्यंजन से मिलकर बनती है। ध्वनि उच्चारण की दृष्टि से देवनागरी अत्यंत,सरल, सुगम व वैज्ञानिक लिपि है। देवनागरी का प्रत्येक वर्ण एक शक्तिशाली मंत्र हैं। लिप्यंकन की दृष्टि से देवनागरी अत्यंत सबल व सुगम है। किसी भाषा की ध्वनि व्यवस्था के दृश्य प्रतीकों को अन्य दृश्य प्रतीकों द्वारा अभिव्यक्त करना लिप्यंकन कहलाएगा। देवनागरी लिपि लिप्यंकन के साथ लिप्यंतरण की दृष्टि से भी सरल है।
इस अवसर पर नागरी लिपि परिषद की तमिलनाडु प्रभारी डॉ. राजलक्ष्मी कृष्णन,चेन्नई, दिल्ली मेट्रो के हिंदी अधिकारी डॉक्टर राजाराम यादव,तमिलनाडु के हिंदी नागरी के प्रसारक श्री सेतुरमण अनंत कृष्णन,चेन्नई, डॉ.रणजीत सिंह अरोरा,पुणे,अंतरराष्ट्रीय हिंदी साहित्य प्रवाह फिलाडेल्फिया, अमेरिका की अध्यक्ष डॉ. मीरा सिंह ने गोष्ठी को संबोधित किया। साहित्यकार डॉ. सुनील परीट, बेलगांव,कर्नाटक ने अपने प्रास्ताविक उद्बोधन में कहा कि विश्व की बहुत सारी लिपियों के मध्य नागरी के टक्कर की कोई भी लिपि नहीं है। संगोष्ठी का शुभारंभ वर्णाली बोरा, डिगबोई ,असम की सरस्वती वंदना प्रस्तुति से हुआ। गोष्ठी की आयोजक - संयोजक डॉ. नूरजहां रहमतुल्लाह, असम प्रभारी एवं सहायक प्राध्यापक- हिंदी, काटन विश्वविद्यालय, गुवाहाटी, असम ने स्वागत भाषण देते हुए पूर्वोत्तर क्षेत्र में हिंदी-नागरी की वर्तमान स्थिति पर व्यापक रूप से प्रकाश डाला। छत्तीसगढ़ के नागरी - हिंदी की उत्तम प्रचारक व प्रसारक डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक, सहप्राध्यापक, शिक्षा मनोविज्ञान, ग्रेसियस शिक्षा महाविद्यालय, अभनपुर, रायपुर,छत्तीसगढ़ ने अपनी सुंदर व स्वतंत्र शैली में अतिथि परिचय कराया।
संगोष्ठी का उत्कृष्ट संचालन डॉक्टर नीतामणि बरदलै, डिगबोई महाविद्यालय, असम ने तथा कसीरा जहां, राधागोविंद बरुआ महाविद्यालय, गुवाहाटी, असम ने आभार ज्ञापन किया। संगोष्ठी में डॉ.सोनम वांग्मू, डॉ.डूरी शांति,ईटानगर, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड से पूर्व शिक्षा निदेशक डॉ.वी. पी. फिलिप,चेन्नई की डॉ.गंगा मीनाक्षी, राजकीय महाविद्यालय, हमीरपुर से हिंदी प्राध्यापक डॉ.बृजेश कुमार, गृह मंत्रालय, भारत सरकार के राजभाषा विभाग के डॉ. दिनेश सिंह,भारतीय जनसंचार संस्थान, जम्मू के प्रोफेसर डॉ. दिलीप कुमार,राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय संस्थान की पाठ्यक्रम निर्देशक रचना भाटिया, हरियाणा इकाई के प्रभारी डॉ.विजय वेदालंकर, यूनीवार्ता के उपमुख्य संपादक श्री सत्य प्रकाश पाल, गुजरात से डॉ. गुलाबचंद पटेल, राजस्थान से डॉ.लिच्छाराम,केरल से डॉ.प्रिया, छत्तीसगढ़ से एम.एल नथ्थानी,डॉ.चंद्रशेखर सिंह ,रतिराम गढ़ेवाल, गुरुग्राम से कृषि वैज्ञानिक सतीश चंद्र यादव, विशाखापटनम की हिंदी आचार्य डॉ. विजया भारती जेल्दी, रामपुर से डॉ.अब्दुल लतीफ, लखनऊ से डॉ. दीनबंधु आर्य, गोरखपुर से डॉ.अजय मौर्य, डॉ. सुजीत परिहार, पुणे से श्री जसवीर सिंह,छाया माली, टिहरी गढ़वाल से प्रोफेसर भद्री, पूर्वोत्तर हिंदी परिषद के डॉ.रघुनाथ पांडेय सहित गूगल मीट के इस पटल पर सौ से अधिक संख्या में प्रतिभागी जुड़े हुए थे।