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तुमको देखा तो




तुमको देखा तो हुई हतप्रद-
सालों से खोज रहे थे नयना 
इर्द-गिर्द ही रहते थे तुम मेरे                       
होते हर पल आभासित से यूं 

भीनी-भीनी आती महक तेरी- 
आखों से ओझल थे प्रिय तुम
धुंधली सी प्यारी आकृति तेरी 
आती जाती कर देती बावरी-  
छटपटाहट सी रहती हरदम-
पर कभी नहीं आए  सन्मुख              
आज  देखा जब तुम्हें सामने               
सुध-बुध खो बैठी मैं अपनी

तुमको देख रुक गई  धड़कने
तुमको छूं झूमी मलय पवन-  
बिखरी मस्त बहारे संग मेरे-
लगे कर्णप्रिय भौरों का गुंजन

अब तो चांद लगे भी -मोहक-
बिखरी चांदनी है अंग-भावन 
बियावान जीवन भी खिला यूं 
कदम थिरकते बिन सुर-ताल 

तुझे देख लगे आये ऋतुराज"
अधर गा रहे गीत" मधु-मास"
मन मेरा हुआ बसंत बावरा यूं
तेरा-मेरा जन्मों का नाता सच
        यूंही नहीं तुमको देखा
             तो हुई मै हतप्रद!!!

- रति चौबे, न्यूजीलैंड वैलिग्टन

काव्य 5728760207784272890
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