बसंत ऋतु
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है मन भावन ये बासंती सुदूर धरा छायो।।
पीली सरसों पीताम्बर सी
फैली जग भायो ।
नीलाम्बुज में रूप किरण
छायो ।
रंग बिरंगे फूल खिले हैं,
भँवरे राग सुनाये।
कोयल गाये यमन राग भी
स्वर से राग मिलाये ।।
सुन्दर मोहक रूप निहारें,
राधा कृष्ण कन्हाई ।
अधर मुरल धर सुमधुर छेड़े
मधुर राग तनहाई ।।
स्वागत है अब बसंत तुम्हारा,आओ मनहारी।
सुकोमल उर में बसी हुई है
मोहन छवि न्यारी ।
आज बुलाता देश हमारा आओ त्रिपुरारी।
आयो बसंत ऋतु आयो
छायो बसंत रंग छायो ।।
- सरोज गर्ग ‘सरु’
नागपुर, महाराष्ट्र