हरिवंशराय बच्चन अस्थायी छायावादी है : डॉ. अविनाश महाजन
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नागपुर/पुणे। हालावादी कवि हरिवंशराय बच्चन वास्तव में अस्थायी छायावादी भी है। उन्होंने अपने काव्य में सहज, सरल व श्रृंगार परक भाषा का प्रयोग किया है। इस आशय का प्रतिपादन डॉ. अविनाश श्रावण महाजन, श्री जगदंबा प्रासादिक विद्यालय, भोकर, तहसील श्रीरामपुर, जिला अहमदनगर (महाराष्ट्र) ने किया। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के तत्वावधान में ‘हरिवंशराय बच्चन और उनकी रचनाएं’ विषय पर शनिवार दिनांक 30 दिसंबर,2023 को आयोजित राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी 184 वीं (35) में वक्ता के रूप में वे अपना उद्बोधन दे रहे थे। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने गोष्ठी की अध्यक्षता की।
डॉ. अविनाश महाजन ने कहा कि मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश बच्चन की सबसे प्रमुख रचनाएं हैं। बच्चन ने अपनी सहज, सरल भाषा के माध्यम से जीवन में होने वाले विभिन्न पीड़ा दायक कष्टों को अभिव्यक्ति के दृष्टि पटल पर उतारने की कोशिश की है। बच्चन की रचनाओं में प्रमुख रूप से मुक्त शैली का प्रयोग हुआ है। डॉ. नवनाथ रघुनाथ जगताप, अध्यक्ष, हिंदी विभाग, संत दामाजी महाविद्यालय, मंगलवेढा, जिला, सोलापुर, महाराष्ट्र ने कहा कि बच्चन जी का सारा काव्य ही उनका जीवन है। बच्चन उत्तर छायावादी काव्य के आस्थावादी कवि रहे हैं। सरलता, चित्रात्मकता, संगीतात्मकता, अखंड प्रवाह, मार्मिकता उनके काव्य की विशेषताएं रही हैं। बच्चन के काव्य में आत्मविश्वास, स्वाभिमान और आस्था का स्वर है, जो कल्पना से यथार्थ की और विकसित होता है।
प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख,पुणे,महाराष्ट्र, अध्यक्ष, विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश ने अध्यक्षीय समापन में कहा कि बच्चन की कविता उनके अपने जीवन में आए हुए अपने मोडों से होती हुई बहती रहती है। उनकी काव्य धारा का आरंभ गीतों से हुआ है। मधुशाला, मधुबाला, और मधुकलश यह तीनों काव्य ग्रंथ बच्चन को हालावादी घोषित करते हैं, जिन पर उमरखैयाम की रुबाइयों का प्रभाव परिलक्षित होता है। बच्चन मूलतः आत्मानुभूति के कवि है। इसलिए उत्तर छायाकाल की प्रगीत कविता के वे प्रमुख कवि हैं।
डॉ गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी, सचिव, विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश ने विषय की प्रस्तावना में कहा कि हिंदी में बच्चन जी की समानता बहुत कम कवि कर सकते हैं। बच्चन के ‘निशा निमंत्रण’ और ‘एकांत संगीत’ में प्रेम का अवसाद और घनत्व का चित्रण है। गोष्ठी का आरंभ रश्मि लहर, लखनऊ की सरस्वती वंदना से हुआ। प्रा. लक्ष्मीकांत वैष्णव,शक्ति, छत्तीसगढ़ ने स्वागत उद्बोधन दिया। गोष्ठी का संयोजन तथा आभार ज्ञापन श्रीमती पुष्पा श्रीवास्तव ,शैली’, रायबरेली ने किया। गोष्ठी का सफल संचालन डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश ने किया। इस गोष्ठी में पटल पर डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक, सुशीला सैनी, हिसार, जयवीर सिंह, पुणे, डॉ. राजेश्वर बुंदेले की गरिमामयी उपस्थिति रही।