आडंबर और झूठी शान दिखावे के पर्याय है : अरुण कुमार निगम
https://www.zeromilepress.com/2024/01/blog-post_49.html
नागपुर/पुणे। बदलते समाज में दिखावे की बढ़ती प्रवृत्ति वास्तव में आडंबर और झूठी शान के पर्याय है, जो अत्यंत घातक है। इस आशय का प्रतिपादन पूर्व प्रबंधक, भारतीय स्टेट बैंक, दुर्ग, छत्तीसगढ़ ने किया। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के तत्वावधान में 'बदलते समाज में दिखावे की प्रवृत्ति' विषय पर सोमवार दिनांक 15 जनवरी, 2024 को आयोजित 187 (27) वीं राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी में वे मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे।
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने गोष्ठी की अध्यक्षता की। अरुण कुमार निगम ने आगे कहा कि, आवश्यकता से संचय-संग्रह की प्रवृत्ति दिखावे की जन्मदात्री है। आज जीवन के अनेक क्षेत्रों में दिखावा हो रहा है। शादी-ब्याह, जन्मदिन जैसे पारिवारिक समारोह में दिखावा तो आम बात हो गई है। दूरदर्शन के कई धारावाहिक पारिवारिक संघर्ष को दिखाकर परिवारों को भ्रमित कर रहे हैं।
डॉ. राजश्री लक्ष्मण तावरे, हिंदी विभाग, शंकरराव पाटील महाविद्यालय, भूम, जिला- धाराशिव, महाराष्ट्र ने कहा कि जीवन में मीठास की कमी दिखावे की प्रवृत्ति को बढ़ाती है। समाज में अनेक विसंगतिया हैं । बड़े-बड़े पुरस्कार राशि देकर खरीदे जा रहे हैं। कुछ लोग राशि देकर पुस्तकें छपवाते हैं। अपने को अच्छे कहने की भावना दिखावे को जन्म देती है।आज दिखावा में राजनीति है और राजनीति में भी दिखावा है। दिखावे की प्रवृत्ति दिन-ब-दिन बलवती हो रही है। पर दिखावे का अस्तित्व क्षणिक होता है। डॉ. मीना कुमारी परिहार, पटना,बिहार ने प्रतिपादित किया कि दिखावा व्यक्ति को बर्बाद कर देता है। दूसरे से तुलना और लालच दिखावे की प्रवृत्ति को बढ़ाती है। दिखावा तो व्यक्ति के बुरे बनने से भी बुरा है। झूठ की बुनियाद पर टिके रिश्ते खोखले बन जाते हैं।
डॉ. रूपाली दिलीप चौधरी, हिंदी विभाग, अण्णासाहेब बेंडाले महाविद्यालय, जलगांव, महाराष्ट्र ने कहा कि दिखावे की प्रवृत्ति जन्मजात होती है। जो आनुवंशिक रूप में प्राप्त होती है। दिखावे में अनुकरण प्रवृत्ति भी होती है। आजकल रिश्ते में दिखावा पाया जाता है। हमारी कुछ फिल्में पारिवारिक संकट पैदा कर रही हैं। शिक्षा में सुधार व आध्यात्मिक चिंतन दिखावे की प्रवृत्ति को नियंत्रित कर सकता है। दया, शांति, क्षमा को अपनाने से काम, क्रोध, मद, मोह, मत्सर आदि को स्थान नहीं मिलेगा।
गोष्ठी की प्रस्तावना करते हुए डॉ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी,सचिव, विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश ने कहा कि आज मनुष्य नकली चेहरा व नकली आवरण लेकर घूम रहा है, पर असली चेहरा कभी ना कभी सामने आ ही जाता है। कुछ भी ना आते हुए सम्माननीय उपलब्धियां हासिल की जा रही है। दिखावा क्षणिक होता है। सादा जीवन व उच्च विचार को धारण करके हमारा काम दूर दृष्टि के परिप्रेक्ष्य में होना चाहिए। विकास के दौर में मानवता को हम भूल रहे हैं। सच्ची भावना में भी दिखावे की मिलावट होती है। अतः सचेत होकर दिखावे की प्रवृत्ति से बचे रहना चाहिए।
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने अध्यक्षीय समापन में संबोधित करते हुए कहा कि दिखावे की प्रवृत्ति व्यक्तित्व विकास में बाधक है। मनुष्य दिखावे की प्रवृत्ति का शिकार हो रहा है। बोलने,रहने में यहां तक की खान-पान और व्यवहार- आचरण में भी हर मनुष्य दिखावे की प्रवृत्ति से ग्रस्त है। क्योंकि हर व्यक्ति के मन के भीतर भी और एक मन होता है। हर व्यक्ति अपने आप को आदर्श रूप में प्रस्तुत करना चाहता है। जिसके लिए वह दिखावा वृत्ति को आधार मानता है, परंतु यह सरासर गलत है। भ्रमित अवस्था में मनुष्य बहुत कुछ कर बैठता है और अंत में वह कुछ भी हासिल नहीं कर पाता।
इस राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी की संयोजक व संस्थान की छत्तीसगढ़ प्रभारी डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक, सहायक प्राध्यापिका, शिक्षा मनोविज्ञान, ग्रेसियस कॉलेज ऑफ़ एज्युकेशन, अभनपुर, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने गोष्ठी का सफल, उत्तम व अत्यंत सुचारू रूप से संचालन करते हुए कहा कि दिखावे की वृत्ती वर्तमान समाज की कीड है, जिसे सकारात्मक भाव से प्रयत्न पूर्वक दरकिनार करें तब ही व्यक्ति, समाज व राष्ट्र का विकास होगा।
इस महत्वपूर्ण विषय पर आधारित गोष्ठी में महाराष्ट्र से संस्थान के महाराष्ट्र प्रभारी डॉ. भरत शेणकर, डॉ मधुकर देशमुख, सर्वेश पाटिल,प्रो. शहनाज शेख, जयदेव सिंह, प्रा.मधु भंभानी,नागपुर; डॉ. नवनाथ जगताप, छत्तीसगढ़ से रतिराम गढेवाल, डॉ आरती बोरकर, नम्रता ध्रुव, प्रतिमा चंद्राकर, उत्तर प्रदेश से श्रीमती पुष्पा श्रीवास्तव ‘शैली’, उपमा आर्य, दीनबंधु आर्य, रश्मि लहर, हिसार, हरियाणा से सुशीला सैनी, मैसूर से कृष्णमणि श्री तथा अन्य राज्यों से अंजना काले, रीता यादव, कृष्ण आर्य, सविता, डॉ.शोभना जैन, डॉ. नजमा बानू मलेक, संतोष मस्के, संतोष शर्मा, प्राची शर्मा, जयकला आदि की गरिमामयी उपस्थिति रही। गोष्ठी का शुभारंभ लक्ष्मीकांत वैष्णव, शक्ति, छतीसगढ़ द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ। डॉ. सीमा रानी प्रधान, महासमुंद, छतीसगढ़ ने स्वागत उधबोधन दिया तथा गोष्ठी की संयोजक डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक ने आभार ज्ञापन किया ।