कृत्रिम मेधा : भाषा में संभावनाएँ एवं चुनौतियाँ
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वैश्विक हिन्दी परिवार के 28 जनवरी 2024 के कार्यक्रम की रिपोर्ट
नागपुर/हैदराबाद। केंद्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, विश्व हिंदी सचिवालय और वातायन के तत्वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार द्वारा “कृत्रिम मेधा की संभावनाओं और चुनौतियों, पर रविवारीय व्याख्यान से आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए आई आई टी कानपुर के प्रो॰ डॉ॰अविनाश अग्रवाल ने कहा कि ए आई के माध्यम से साहित्य में भावना या संवेदना को पकड़ना मुश्किल है। बेशक भारतीय भाषाओं में असीमित ग्राह्यता है किन्तु मानवीय स्पर्श जरूरी है। उन्होंने साहित्य को सह और भाव का अनोखा मेल बताया तथा लेटर से बने लिटेरेचर से नितांत भिन्न कहा। उनका कहना था कि एलएलएम में लगातार सुधार कर गलतियाँ दुरुस्त हो रही हैं। ए.आई. के माध्यम से ए.आई. पर ही कविता रचकर उन्होने इसके विविध पहलुओं और बारीकियों को गहन रूप में बेबाक विशेषण सहित सुंदर चित्रात्मक पीपीटी के माध्यम से रोचक ढंग से समझाया। उन्होने नैतिक जांच सहित ए आई को खुले दिल दिमाग से अपनाने की सलाह दी।कार्यक्रम में देश विदेश के अनेक विद्वान विदुषी और शोध छात्र सहभागी और लाभान्वित हुए।
माइक्रोसॉफ्ट भारत में स्थानीयकरण के निदेशक एवं लब्धप्रतिष्ठित तकनीकीविद श्री बालेंदु शर्मा दाधीच ने कहा कि मशीनी अनुवाद भी अच्छे आने लगे हैं जो मनुष्य के अनुवाद के काफी निकट हैं। हिन्दी की दुनियाँ और दुनियाँ की हिन्दी में ए आई की गुणवत्तापूर्ण दखल बढ़ रह है। सीख पर तर्क वितर्क करना और बुद्धिमानी से अमल करने में ही समझदारी होती है जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता में भी द्रष्टव्य है। दरअसल यह आर्टिफिसियल शब्द नहीं बल्कि सिंथेटिक होना चाहिए। इससे हिन्दी के क्षेत्र में भाषाई दूरियाँ कम होंगी और अङ्ग्रेज़ी के दबदबे से मुक्ति मिलेगी और हम भाषा निरपेक्ष विश्व की ओर बढ़ पाएंगे। ए आई से अन्य भाषाओं का साहित्य सहज सुलभ होगा और हिन्दी समृद्ध होगी। इससे शिक्षण सामग्री आसान हो जाएगी और वाचिक परंपरा का दस्तावेजीकरण होगा। कम्प्यूटर की रचनात्मकता से हिन्दी समाज में कौतूहल और नवाचार होगा।
बीज वक्तव्य देते हुए गृह मंत्रालय के सहायक निदेशक डॉ मोहन बहुगुणा ने कहा कि जीवन के हर क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है। चिकित्सा से लेकर मनोरंजन और शिक्षण से लेकर अन्तरिक्ष तक चमत्कारिक प्रयोग हो रहे हैं। अब भाषा की रुकावटें और दीवारें ढहने लगी हैं।चैट जीपीटी और भारत जीपीटी से नए नए प्रयोग हो रहे हैं। कार्यक्रम में जापान से पद्मश्री प्रो॰ मिजोकामी,भाषाविद योगेन्द्रनाथ मिश्र द्वारा मानव मस्तिष्क और रोजगार से संबन्धित सवाल पूछे गए जिनका वक्ताओं ने बेबाक विश्लेषण सहित उत्तर दिये गए। भाषा विज्ञानी प्रो जगन्नाथन द्वारा भी रोजगार पर अपनी बात रखी गई।
आरंभ में केंद्रीय हिन्दी संस्थान के हैदराबाद केंद्र के प्रभारी श्री गंगाधर वानोडे ने प्रस्ताविकी प्रस्तुत की और अतिथियों का संक्षिप्त परिचय कराते हुए स्वागत किया। तत्पश्चात लेखक और तकनीकीविद डॉ सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त ,द्वारा समुचित भूमिका के साथ शालीनता, विद्वता और उदात्तता से सधा हुआ संचालन किया गया। उन्होने बारी- बारी वक्ताओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए बड़े प्रेम से आमंत्रित किया। कार्यक्रम में अमेरिका से नीलम जैन, यू॰ के॰ से डॉ पदमेश गुप्त, साहित्यकार अरुणा अजितसरिया, शैल अग्रवाल, रूस से प्रो॰ अल्पना दास, ,सिंगापुर से संध्या सिंह,कनाडा से शैलेजा सक्सेना, खाड़ी देश से आरती लोकेश, थाइलैंड से प्रो॰ प्रिया ,श्रीलंका से प्रो॰ अतिला कोतलावल तथा भारत से नारायण कुमार ,मुकुल जैन, प्रेम विरगो,बरुन कुमार ,प्रसून लतान्त, शशिकला त्रिपाठी,योगेश प्रताप, मालिक मोहम्मद ,रश्मि वार्ष्णेय,पी के शर्मा ,विजय नगरकर, राजेश गौतम,संध्या सिलावट,विवेकानन्द, हरी राम पंसारी, विश्वजीत मजूमदार ,सुकन्या शर्मा,आयुष प्रजापति, अंशिका वर्मा ,वीर बहादुर, शशिकांत पाटील ,अशोक कुमार सिंह,शुभम राय त्रिपाठी, संजय कुमार,अपेक्षा पाण्डेय ,अनिल साहू, सरिता,स्वयंवदा ,ऋषि कुमार ,कृष्ण कुमार एवं जितेंद्र चौधरी आदि सुधी श्रोताओं की गरिमामयी उपस्थिति रही । तकनीकी सहयोग का दायित्व श्री कृष्ण कुमार द्वारा बखूबी संभाला गया। इस अवसर पर अनेक शोधार्थी उपस्थित थे।समूचा कार्यक्रम वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल जोशी के अनूठे समन्वय में सम्पन्न हुआ।
अंत में डॉ. जयशंकर यादव द्वारा आत्मीय भाव से माननीय अध्यक्ष, सम्माननीय वक्ताओं, संयोजकों, समन्वयकों ,संचालकों, सहयोगियों, शोधार्थियों एवं सुधी श्रोताओं आदि को नामोल्लेख सहित धन्यवाद ज्ञापित किया गया। समूचा कार्यक्रम सौहार्द पूर्ण माहौल में गुणग्राह्यता और आपसदारी सहित सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम में युगानुरूप तकनीकी ज्ञान और कौशल की निहायत जरूरत की गहन अनुभूति परिलक्षित हुई।