आथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के स्व. राजेंद्र अवस्थी की 93वीं वर्षगांठ पर बहुत भाषीय काव्य गोष्ठी संपन्न
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नागपुर/दिल्ली। स्वर्गीय राजेंद्र अवस्थी की 93वीं वर्षगांठ पर आभासी काव्य गोष्ठी का आथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, संस्था अध्यक्ष पदम श्याम सिंह शशि की अध्यक्षता में संपन्न हुई । सर्वप्रथम आथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, संस्था के सदस्य के परिवार जन्य के आकस्मिक निधन पर 2 मिनट की मौन श्रद्धांजलि दी गई। इसके पश्चात हैदराबाद चैप्टर की संयोजीका और राजेंद्र अवस्थी जी के साथ जिन्होंने करीब से समझा देखा, डॉ. अहिल्या मिश्रा ने उनका व्यक्तित्व और मानवीय गुण का सविस्तार वर्णन किया, उन्होंने आगे कहा डॉ. अवस्थी दार्शनिक, सफल संपादक, विश्व के अच्छे पर्यटक होने के साथ अपनी मुस्कान से अनजान को भी अपना बनाने की क्षमता रखते थे। इसके साथ ही संस्था और अपने जीवन में उन्हें अनुशासन बहुत प्रिय था। उन्होंने उनकी पत्रकारिता और साहित्य की यात्रा का सविस्तार वर्णन किया। इसके साथ ही डॉ. शिव शंकर अवस्थी ने अपने पिताजी द्वारा लिखित रचना, ‘वो पावस के पहले बादल, तुम धोने आए अंबर का मट मैला आंचल।’ अपने स्वर में प्रस्तुत किया।
अपराजिता शर्मा ने छत्तीसगढ़ी बोली में, 'वह छत्तीसगढ़ी महतारी' के माध्यम से छत्तीसगढ़ी परिवेश को, उषा दुबे ने जबलपुर में डॉ राजेंद्र अवस्थी के साथ गुजरे वक्त को याद कर एक सुंदर दार्शनिक कविता प्रस्तुत की, तो डॉ. अहिल्या मिश्रा हैदराबाद के मुक्तक का स्वर था, ‘इनको ना राम चाहिए, ना रहीम चाहिए।’ इस भारतीय एकता के स्वरूप की प्रस्तुति के उपरांत डॉक्टर सरोजिनी प्रीतम की हंसिकाएं जो 30 वर्ष तक कदंबिनी में छपती रही कहा, ‘उन्हें खेद था जिनके तलवे चाटे, उनके तलवे में भी छेद था।’ तो राजलक्ष्मी कृष्णन चेन्नई ने श्रीराम पर भक्ति गीत प्रस्तुत किया। प्रदीप गौतम सुमन ने अपनी कविता से सबको गुदगुदाया। दीपक दीक्षित ने अपनी कविता 'वक्त ही बतलाएगा' प्रस्तुत की प्रभा मेहता ने गुजराती में स्त्री को नदी और पुरुष को बादल मिथक बताकर एक मुस्कान लाता हुआ गीत प्रस्तुत किया, तो संस्था के अध्यक्ष डॉ श्याम सिंह शशि ने अपने साथ डॉ. राजेंद्र अवस्थी के जीवन काल के कई रोचक प्रसंज्ञ का वर्णन कर अपने गीत को यूं प्रस्तुत किया, 'रोज-रोज आ जाती है, मेरे आंगन में सुबह उठते ही एक रात कहने को एक बात।'
तिरुवंतपुरम के डॉ. सी. जी. प्रसन्न कुमारी ने 'ऑक्सीजन पार्लर' की बात उठाई, तो अरुण पासवान ने सिक्कों का वृक्ष के माध्यम से गरीबी और मजदूरों की व्यथा को दार्शनिक ढंग से प्रस्तुत किया। कंचन बोरकर, कमाकोटी कृष्णा कुमारी, डॉ. रेखा कक्कड़ और सुदेश भाटिया के मधुर गीतों के उपरांत डॉ. यशो यश ने अपने गजल में कहा, ‘बढ़ता हूं तो बढ़ जाती है, मेरे पांव की सीढ़ी। सिलता हूं तो सिल जाती है भावना मेरी।’
राम आसरे गोयल ने अयोध्या महिमा के माध्यम से अपने गीत को प्रस्तुत किया, सत्यपाल चावला ने कुछ मेरी सुनो, कुछ अपनी कहो और उपमा आर्य की गजल का शेर था,' मां बहन की बेटी की आंखों में खुशी अच्छी लगती है।’ यशपाल सिंह की कविता के साथ डॉ. कृष्ण कुमार द्विवेदी ने गजल कही तो कुमारी किरण पासवान ने दिल्ली शहर की व्यथा प्रस्तुत की। कमल अग्रवाल आशिक का शेर था, 'चलो चलते हैं उसे घर में जहां कोई दूजा ना हो।’
डॉ. संदीप कुमार शर्मा की छणिका, नरेंद्र सिंह परिहार की गजल और डॉ. हरी सिंह पाल की कविता के साथ, राजेंद्र मिलन ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर गणतंत्र करें तेरा अभिनंदन, सांस सांस हर्षित है, पुलकित है मन तो अंत में डॉक्टर शिव शंकर अवस्थी ने अपोलो यान छूटने के वक्त लिखी अपनी कविता जो उनके पिताजी को काफी प्रिय थी प्रस्तुत किया, खर्च किए कितने लाख डॉलर, किस लिए किसके लिए, अम्मा अभी भी पूछती है, चूल्हा फूंकती है, पूछती है, निक्सन कौन है? अंत में काव्य गोष्ठी के अध्यक्ष पदम डॉ. श्याम सिंह शशि ने काव्य गोष्ठी को सफल निरूपित कहते हुए सभी कवियों का अभिनंदन किया और उनकी प्रशंसा की।
कार्यक्रम का सफल संचालन आथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, नागपुर चैप्टर के संयोजक नरेंद्र सिंह परिहार ने किया, तो आभार संस्था के महासचिव डॉ. शिव शंकर अवस्थी ने किया।