इंतज़ार
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छा रही क्षितिज पे,
जुगनू निकल पड़े
तिमिर से जुझने,
अंधियारे महल में
दिप जलाने,
प्रियतमा
तुम आ जाना।
पियास मिलन की
बढ़ती जाये
आहट सुन मन मचले,
देर न कर,
सबर का बांध टुट न जाए,
प्रियतम, बेचैन मनवा तरसे
तुम आ जाना।।
दिन के उतार चढ़ाव में
अनदेखी रही तुम,
अब गोधुली बीती जाए,
प्रिये,
अब तो आ जाना।
- डॉ. शिवनारायण आचार्य ‘शिव’
नागपुर, महाराष्ट्र