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सामाजिक एकीकरण की धुरी हैं भाषाएं : डॉ. संजय दुधे


हिन्दी विभाग में मनाया गया भारतीय भाषा दिवस


नागपुर। भाषा केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं है वरन यह हमारी पहचान है। भाषाएं ज्ञान की संवाहक हैं। सभ्यता के विकास की प्रवक्ता हैं। सामाजिक एकीकरण की धुरी हैं। उक्त विचार राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय के प्र-कुलगुरु डॉ. संजय दुधे ने व्यक्त किए। वे विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग एवं  राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में ‘भारतीय भाषाएं : राष्ट्रीय अपेक्षाएं’ विषय पर आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हमारे देश में ज्ञान-विज्ञान की अखंडित परंपरा रही है। भारतीय संस्कृति के संवाहक के रूप में भारतीय भाषाओं ने भारत की पहचान बनाए रखने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई है। 


प्रमुख अतिथि आर्य शिक्षा संस्था के उपाध्यक्ष श्री घनश्याम दास कुकरेजा ने कहा कि अभावग्रस्त लोगों की सेवा करना ही मनुष्य का कर्तव्य है। मनुष्य के कर्तव्य का बोध भारतीय संस्कृति से होता है और यह सांस्कृतिक बोध हमें भाषा से प्राप्त होता है। भारतीय भाषाएं विभिन्न सांस्कृतिक धरोहरों को जीवंत बनाए हुए हैं। 
प्रास्ताविक रखते हुए कार्यशाला के संयोजक हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज पाण्डेय ने कहा कि भारतीय भाषाओं से जो राष्ट्रीय अपेक्षाएं हैं, उन पर व्यापक विमर्श की आवश्यकता है। आज अनेक भारतीय भाषाएं लुप्त होती जा रही हैं। भाषा के लुप्त होने का मतलब है ज्ञान, अनुभव और संवेदना का लोप होना। भारतीय भाषाओं के संरक्षण और उन्नयन से ही भारतीयता के भाव को पोषित किया जा सकता है।

कार्यक्रम का बीज वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद, नई दिल्ली की सदस्य डॉ. वंदना खुशालानी ने कहा कि भारतीय भाषाओं के बीच आपसी सौहार्द को बढ़ावा देने के लिए इस उत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इसके माध्यम से भारतीय भाषाओं की भूमिका को उद्घाटित करना और समय के अनुसार उसे परिभाषित करना मुख्य उद्देश्य है।
विषय विशेषज्ञ भारतीय विचार मंच नागपुर के संयोजक श्री सुनील किटकरु ने अपने भाषण में कहा कि भारत की पहचान एक ज्ञानी देश के रूप में रही है। उन्होंने पूर्वोत्तर भारत के अनेक प्रदेशों की भाषाओं का उदाहरण देते हुए बड़े ही रोचक ढंग से भाषा के महत्त्व को रेखांकित किया। दक्षिण भारतीय शिक्षण संस्था, नागपुर के संयोजक, सरस्वती विद्यालय के पूर्व प्राचार्य श्री एस. प्रभुरामन ने कहा कि भाषा मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति होती है। भाषा ही मनुष्य के विकास का आधार है। मनुष्य जब भाषा सीखता है तब ही उसे जीवन में विभिन्न अवसर मिलते हैं। 

  समापन सत्र के विशेष अतिथि सिंधी नवयुवक मंडल के अध्यक्ष डॉ. विजय केवलरमानी ने भारतीय भाषाओं के संरक्षण की अपेक्षा जताई। विषय विशेषज्ञ नूतन महाविद्यालय, उमरेड के प्राध्यापक डॉ. विनय कुमार उपाध्याय ने भाषाई अंतर्संबंधों को रेखांकित किया। भाषा तकनीकी विशेषज्ञ डॉ. भारत खुशालानी ने हिन्दी व सिंधी सहित अन्यान्य भारतीय भाषाओं की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए उनके राष्ट्रीय महत्व पर प्रकाश डाला। विश्वविद्यालय के मानविकी संकाय के अधिष्ठाता प्रो. शामराव कोरेटी ने समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारतीय भाषाओं के माध्यम से ज्ञान-विज्ञान की परंपरा को सुदृढ़ बनाने का उपक्रम है। हमारी भाषाओं को ज्ञान और रोजगार से जोड़ने की आवश्यकता है। कार्यक्रम का संचालन सहयोगी प्राध्यापक डॉ. संतोष गिरहे व डॉ. सुमित सिंह ने किया। आभार डॉ. लखेश्वर चंद्रवंशी ने व्यक्त किया। इस अवसर पर डॉ. एकादशी जैतवार, डॉ. कुंजन लिल्हारे, प्रा. जागृति सिंह, प्रा. दिशान्त पाटिल, प्रा. दामोदर द्विवेदी, प्रा. रूपाली हिवसे, डॉ.नीलम वीरानी, श्री किशोर लालवानी सहित बड़ी संख्या में विद्यार्थी और शोधार्थी उपस्थित थे।
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