मानव धर्म के प्रेरक कामठा के संत लहरी बाबा
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महाराष्ट्र संतों की भूमि है, लेकिन विदर्भ में संतों और संत कवियों की परंपरा अधिक प्रसिध्द नहीं है। विदर्भ संतों की एक विशेषता यह है कि वे व्यक्ति के आध्यात्मिक उत्थान पर जोर देते थे। वे व्यक्ति और समाज दोनों को अभिन्न मानते थे। वस्तुतः हम जिस समाज में रहते हैं उसके प्रति हमारा कुछ कर्तव्य है, यह शिक्षा बीसवीं सदी में विदर्भ के उन संतों ने दी थी संतों में से एक हैं परम पावन लहरी बाबा।
महाराष्ट्र व मध्यप्रदेश की सीमा पर गोंदिया जिले में एक छोटा सा ग्राम है कामठा जिसे ऐतिहासिक महत्व प्राप्त है। इसी ग्राम में स्व. धर्माजी खरकाटे के घर 7 दिसंबर 1922 के दिन एक तेजपुंज बालक ने जन्म लिया जो सोलह कलाओं से परिपूर्ण आज के संत लहरी बाबा के रूप में विख्यात है।
बाल्य अवस्था से ही उनकी ईश्वर पर अगाध निठा थी। उनके आचार-विचार से भारत प्रेम प्रकट होता था। दीन-दलितों, शोषित पीडितों के लिए उनके मन में बहुत दया थी। उन्हें कुछ लोग पागल कहते थे लेकिन यह पागल समाज, देश, धर्म कल्याण के लिए संत रूप धारण करेगा, इसका किसी को अंदाजा नही था। बाबा का एक ही अभियान था- जनसाधारण को दुर्व्यसनों से मुक्त करना इसीलिए वे लोगों से हमेशा अपील करते रहे कि तुम अपने दुर्व्यसन मुझे दो और बदले में जो चाहे वह ले लो । इस अभियान के तहत करीब 3 लाख से अधिक लोगों ने बाबा के सानिध्य में दुर्व्यसनों को त्याग दिया है। लहरी बाबा ने अपने भजनों और प्रवचनों से जनजागरण कार्यक्रम चलाया था। उनके भजनों और प्रवचनों की किताबों व कैसेट का भव्य संग्रह उपलब्ध है। इस संत के दरबार में सभी जाति-धर्म के लोग आते थे, गरीब-अमीर पर से एकसमान प्यार करते थे।
उनका कार्यक्षेत्र विशाल था जिसमें गोंदिया, बालाघाट, बिलासपुर, रायपुर, चंद्रपुर, गडचिरोली, भंडारा, नागपुर, वर्धा, यवतमाल, नांदेड आदि जिलों का नाम उल्लेखनीय है। बाबा के पास समस्याएं लेकर आने वालों मे अमीर-गरीब, अनपढ-पढे लिखे, डॉक्टर, पत्रकार, किसान, व्यापारी, मजदूर आदि का समावेश था। सभी का बाबा द्वारा दी गई भभूत पर विश्वास था। बाबा का धर्म मानव धर्म रहा है। जन्म से वे सभी जीवों के उध्दार के लिए प्रयत्नशील रहे। पैसा उनके लिए नगण्य रहा। 3 एकड में निर्मित बाबा के आश्रम का वातावरण मन को असीम शांति देता है। यहां अधिकतर लोग अवैतनिक कार्य करते है। प्रतिदिन सुबह भजन-कीर्तन होता है। सद्गुरू या परमात्मा की आरती होती है।
शिल्पकार रमनभाई पच्चीगर के मार्गदर्शन में आश्रम के प्रांगण में भव्य शिव मंदिर का निर्माण किया गया है। आकर्षक बगीचा भी है। काले पत्थर का विशाल आकर्षक नंदी है। मंदिर के नीचे गर्भगृह बनाया गया है जिसे ध्यान योग मंदिर (सिध्देश्वर मंदिर) कहा जाता है तथा यह मंदिर पानी में डूबा रहता है। प्रांगण में विठ्ठल मंदिर भी है। आश्रम के प्रवेश द्वार पर अस्थि विसर्जन कुंड बना है। जिसमें भारत कुंड का निर्माण किया गया है। इस कुंड में भारत की सभी पवित्र नदियों तथा तीनों समुद्रों का जल डाला गया है। सेवानिवृत्त लोगों के लिए आश्रम में 30 वानप्रस्थाश्रम कुटियाएं है। बाजू में ही अन्नपूर्णा गृह है। सामने गौशाला तथा शिव मंदिर के पास माता भागीरथी का स्मृति मंदिर है। बाबा हमेशा कहते थे कि मेरे गले में पुष्पहार पहनाने की बजाय स्वंय के गले में सुविचारों के हाल डालिये। रास्ता भूलने वाला पदनष्ट होता है।
बाबा ने अपना पूरा जीवन मानवता की सेवा में समर्पित कर दिया था। वे करते थे कि मनुष्य की सेवा ही ईश्वर की सेवा है। वे हमेशा इस बात पर जोर देते थे कि अमीर लोगों को पैसे के व्यर्थ प्रदर्शन के बजाय गरीबों और जरूरतमंद लोगों की मदत के लिए पैसे बचाना चाहिए। बाबा को पढ़ने और लिखने का बहुत शौक था इसलिए उन्होंने कई किताबों भी लिखीं। अंततः यह महान आत्मा 11 दिसंबर 1999 को अपने हजारों भक्तों को छोड़कर स्वर्गीय हो गये। हालाँकि, लहरी बाबा ने इस भौतिकवादी दुनिया को छोड़ दिया है। लेकिन उनकी आत्मा अभी भी उनके लाखों भक्तों का मार्गदर्शन करती है। वे उनका आशीर्वाद लेने के लिए कामठा स्थित आश्रम में आते रहते है। यह महान आत्मा भले ही इस दुनिया से चली गई हो। लेकिन अभी भी संकट में लोगों का मार्गदर्शन करती है।
- दिवाकर मोहोड
शिवाजी कॉलनी, नागपुर, महाराष्ट्र