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पंत का पूरा जीवन प्रकृति के बीच बीता है : ज्योति बाला साहूsसमाचार

नागपुर/पुणे। उत्तर प्रदेश के जिला अल्मोड़ा के कौसानी ग्राम में जन्मे छायावाद के कवि सुमित्रानंदन पंत को बचपन से ही प्रकृति का सान्निध्य प्राप्त हुआ है। अल्मोड़ा के प्राकृतिक सौंदर्य ने बचपन से ही उन्हें आकर्षित किया था। पंत प्रकृति चित्रण के कवि हैं। क्योंकि पंत का पूरा जीवन प्रकृति के बीच बीता है। ये विचार ज्योति बाला साहू, शोधार्थी, पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने व्यक्त किया विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के तत्वावधान में ‘छायावाद के प्रमुख कवि सुमित्रानंदन पंत एवं उनकी रचनाएं’ विषय पर सोमवार 30 अक्टूबर 2023 को आयोजित 177 (33) वीं राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी में वह वक्ता के रूप में उद्बोधन दे रही थी। 

विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज,  उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने गोष्ठी की अध्यक्षता की। ज्योति बाला साहू ने कहा कि छायावाद में प्रकृति के सौंदर्य का वर्णन पंत से अधिक चित्रण किसी ने नहीं किया है। पंत को अपने भारतीय होने पर भी अतीव गर्व है। देशवासियों की भावना भी उनकी कुछ रचनाओं में परिलक्षित होती है। एम एल नत्थानी, अवकाश प्राप्त सहायक आयुक्त, जीएसटी तथा वर्तमान में सहायक प्राध्यापक, सिंधी विभाग पंडित रविशंकर विश्वविद्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने अपने मंतव्य में कहा कि हिंदी साहित्य के अग्रणी रचनाकार पंत प्रकृति और मानवीय संवेदनाओं के कुशल सृजनशील कवि थे। पंत की काव्य यात्रा में लगभग 60 वर्षों तक 28 पुस्तकें  प्रकाशित हुई हैं। 

उनकी भाषा शैली और काव्य शिल्प साहित्य जगत में अतुलनीय एवं अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य बोध के साथ मानवीय भावनाओं एवं कल्पनाओं का स्वर्णिम प्रसार ही प्रस्फुटित करता है। पंत की रचनाएं संपूर्ण लाक्षणिकता  के साथ नवीन अभिव्यंजना को रेखांकित करती हैं। उनके काव्य सृजन में भाव और कला पक्ष दोनों ही संतुलित रूप से प्रेम की स्वच्छंदता को प्रकृति की नैसर्गिक सौंदर्य दृष्टि के चरमोंत्कर्ष की ओर प्रवाहित करने की सामर्थ्य प्रस्तुत करती है। हिंदी साहित्य जगत में पंत का योगदान अद्भुत एवं अतुलनीय है। 

डॉ. इंदु कुमारी, सहायक प्राध्यापक-हिंदी, भू.ना. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा, बिहार ने अपनी अभिव्यक्ति में कहा कि, प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत छायावाद के कलाकारों में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। इस छायावादी कलाकार का जीवन दर्शन,प्रकृति सौंदर्य, भौतिकवाद, मार्क्सवाद, राष्ट्रवाद ,गांधीवाद, अद्वैत दर्शन और आध्यात्मिकता आदि की विचारधाराओं को स्वीकृति और विरोधी विचार दर्शन में समन्वय की योजना आदि की मात्रा मानवतावाद और मानव कल्याण की भावना को ही रेखांकित करते हैं। 

संस्थान के सचिव डॉ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी,प्रयागराज, उत्तर प्रदेश ने अपने प्रास्तविक में कहा कि सुमित्रानंदन पंत की रचनाओं में प्रकृति की नैसर्गिक सुंदरता का रमणीय चित्रण मिलता है। वह महान प्रकृति प्रेमी थे।प्रकृति के सान्निध्य में रहकर पंत ने कालजई कृतियों की रचना की। 

प्रकृति के विभिन्न रूपों का वर्णन उनकी रचनाओं में बहुत ही सहजता के साथ पाया जाता है। इसलिए पंत को प्रकृति का चतुर चितेरा भी कहा जाता है। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज,उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने अध्यक्षीय समापन में कहा कि छायावाद का आरंभ डॉ. नगेंद्र ने 1918 और अंत 1938 में माना है। 

निसंदेह इन 20 वर्षों की कालावधि में भरपूर मात्रा में काव्य रचना हुई है। भारतेंदु और महावीर प्रसाद द्विवेदी के बाद प्रसाद और निराला, पंत,महादेवी ने भारतीय जीवन दर्शन को अनेक रूपों में ग्रहण किया है। पंत के आरंभिक काव्य ग्रंथ है-उच्छवास (1920), ग्रंथि (1920), वीणा (1927), पल्लवन (1928) और गुंजन (1932) इसके उपरांत छायावाद से आगे पंत  प्रगतिवाद और अरविंद दर्शन से प्रभावित हुए। 'पर्वत प्रदेश में पावस' में प्रकृति का सौंदर्य है। किंतु 'बादल' जैसी कविताओं में विलक्षण कल्पना है। 

'परिवर्तन' कविता परिवर्तन के यथार्थ को अंकित करती है। 'नौका विहार'में प्रणय और सौंदर्य का अद्भुत समन्वय है। 'मौन निमंत्रण' में रहस्यवाद झलकता है। पंत ने मानवीकरण सहित अनेक अलंकारों का प्रयोग भी किया है। 'गुंजन' में कवि कई अधिक संयत है। 'युगवाणी' और 'ग्राम्या' में पंत  प्रगतिवाद की ओर मुड़े हैं। इस प्रकार कवि पंत छायावाद तक सीमित नहीं रहे। उनकी चेतना प्रगतिवाद से होती हुई अरविंद दर्शन तक गई है। 

गोष्ठी का आरंभ श्रीमती रश्मि लता श्रीवास्तव 'लहर', लखनऊ द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ। प्रा.रोहिणी डावरे, अकोले, अहमदनगर, महाराष्ट्र ने स्वागत भाषण दिया। गोष्ठी का संयोजन श्रीमती पुष्पा श्रीवास्तव ‘शैली’, रायबरेली, उत्तर प्रदेश ने किया। डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश ने गोष्ठी का सफल व सुंदर संचालन तथा श्रीमती श्वेता मिश्रा, पुणे, ने हार्दिक आभार व्यक्त किये।
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