बडी सोच...
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गिलहरी की सी सोच ही रख लें।
अपनी तुलना वह राम सेना के
अतुलित बलशाली वानरों से करती,
सकल गुणनिधान हनुमान से करती,
अपने को कमजोर समझ,
कोने में दुबकी पडी रहती,
तो पडी ही रहती, पर,
समुद्र किनारे की रेत में,
अपने को लपेट, लपेट कर,
रामसेतु पर थोडी रेत छोड़ आती,
वह थोडी भी कितनी होगी ?
वानरों के बडे बडे पत्थरों पहाडों,
कई तुलना में बिल्कुल नगण्य,
पर आज भी महावीर हनुमान,
बलशाली वानरों के साथ छोटी सी
गिलहरी का योगदान यदि
गिनती में हे तो
अपनी बडी सोच के कारण।
जब जब रामसेतु के निर्माण की बात होगी,
गिलहरी के अपूर्व योगदान की
बात नहीं बिसरेगी, नही बिसरेगी।
- प्रभा मेहता
नागपुर