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भारतभक्ति ही भारतीयता है : अभय बापट

नागपुर। भारतीय समाज के अन्तिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति का दुःख-दर्द यदि हमें व्याकुल कर देता है, तब ही हम अपने आप को भारतभक्त कह सकते हैं। भारत का चिन्तन करना, भारत के उत्थान के लिए कार्य करना, प्रत्येक कार्य में भारत के हित का विचार करना, यही भारतभक्ति है। भारतभक्ति ही वास्तव में भारतीयता है। उक्त विचार व्यक्त करते हुए विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी, महाराष्ट्र प्रान्त के प्रान्त प्रमुख अभय बापट, मुंबई ने स्वामी विवेकानन्द के विचारों का मर्म समझाया। 

वे राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित शताब्दी महोत्सव व्याख्यान श्रृंखला के अन्तर्गत 'भारतीयता की अवधारणा और स्वामी विवेकानन्द' विषय पर बोल रहे थे।उन्होंने कहा कि हम निःस्वार्थ भाव से समाज के लिए काम करेंगे तभी समाज की सेवा होगी। स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि भारत का समाज मेरे बचपन का झूला, जवानी की फुलवारी और बुढ़ापे की काशी है। समाज के प्रति ऐसा उदात्त भाव हम सबके अंतःकरण में होना चाहिए। 

उन्होंने जोर देकर कहा कि हमें सफल नहीं, सार्थक जीवन जीना चाहिए। स्वामीजी का सन्देश है  बलशाली बनो, चरित्रवान बनो और अपने देश से प्रेम करो। राष्ट्र धर्म ही भारत का प्राण है। 
 अध्यक्षीय उद्बोधन में विश्वविद्यालय के प्र-कुलगुरु डॉ. संजय दुधे ने कहा कि मनुष्य जन्म से ही आनंद की खोज में रहता है। धर्म ही आनंद का स्रोत है। भारत का दुनिया को यही संदेश है कि सहिष्णुता, परोपकार और सेवा भाव से जीव मात्र के प्रति व्यवहार रखें। 

प्रास्ताविक रखते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज पाण्डेय ने कहा कि भारतीय जीवन-मूल्य ही भारतीयता के आधार स्तम्भ हैं। भारतीय संस्कृति, धर्म और परम्परा को समझे बगैर भारतीय जीवन- मूल्यों को नहीं समझा जा सकता। स्वामीजी ने विश्वपटल पर इन भारतीय मूल्यों को प्रतिष्ठित किया था। इस अवसर पर मानविकी संकाय के अधिष्ठाता डॉ. शामराव कोरोटी ने आभार ज्ञापित करते हुए कहा कि भारत ज्ञान- विज्ञान और अनुसंधान की भूमि है। भारत ही विश्व के कल्याण की कामना करता है। वैदिक काल से ही भारत ने ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ का सन्देश दिया है। 

कार्यक्रम का संचालन डॉ. संतोष गिरहे ने किया। इस अवसर पर प्रो. संजय पलवेकर, डॉ. वासनिक, नरेन्द्र परिहार, डॉ. लखेश्वर चन्द्रवंशी, डॉ. सुमित सिंह, डॉ. एकादशी जैतवार, डॉ. कुंजनलाल लिल्हारे, प्रा. जागृति सिंह, प्रा. दामोदर द्विवेदी, प्रा. निशान्त पाटिल, प्रा. रूपाली हिवसे तथा विवेकानन्द केन्द्र के अधिकारी डॉ. जगदीश हेडाउ, भरत जोशी, प्रो. विलास देशपांडे, अरुणाताई देशपांडे, विद्यापीठ के विभिन्न विभागों के अध्यक्ष, प्राध्यापक, विद्यार्थी एवं शोधार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
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