सच झूठ…
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एक पुरब है तो दुसरा पश्चिम है ।
निकलते तो हमारे ही मन से दोनो के गुण अलग होते है ।
सच का रास्ता सही होता है ।
झूठ का रास्ता गलत होता है॥१ ॥
दोनो ही अपने - अपने रास्ते ठिक तो है ।
दोनों के रास्ते अलग, तो दोनो एक कैसे हो सकते है ?
सच सही होता है इसलिये चौकन्ना नही होता है ।
झूठ गलत होता है इसलिये हरदम जागृत रहता है॥ २ ॥
सचको " सच" साबीत करने की जरूरत नही पडती है ।
झूठ को हरदम "सच" साबीत करने की जरूरत पडती है ।
झूठ अनगिनत तरकिबे लगाकर "सच" को पिछे ढकेलता है ।
"सच" तो साफ होता है, मगर "झूठ" के कारन सामने आने मे बहूत देर होती है॥३ ॥
इसलिये "सच" बहूत देर से पहुँचता है, वो भी कितना ?
आदमी बुढा हो जाता है ।
भलेही "झूठ" की हार हुयी हो, मगर इतनी देर में "झूठ" अपनी खुशहाली जिंदगी जीया हुवा होता है ।
"सच" को जित तो मिलती है, मगर उस खुशी को मना नही सकता ।
"झूठ" हार कर भी, अपनी खुशी पहलेही मना चुका होता है॥ ४ ॥
कैसी विडंबना है ? "सच" सही होकर भी, उसे सामने आनेमे बहूत वक्त लगता है ।
"झूठ" गलत होकर भी बार - बार सामने आकर वक्त - वक्त पर पुरस्कार पाता है ।
"सच" सही होकर भी, उसे साबीत करने मे वक्त लगता है । आखिर जीतता तो है, मगर वक्त से हार जाता है ।
"झूठ" की सच्चाई आखिर साबीत होकर, "सच" से हार जाता है, मगर वक्त - वक्त पर हमेशा जितता है॥ ५ ॥
सही क्या है ? और गलत क्या है ? ये तो समझने की बात है ।
संस्कारों से ही समझ, और उसपे निर्भर सही - गलत का रास्ता होता है ।
आदमी जब स्वार्थी होता है, तब "झूठ" पे सवार हो जाता है ।
आदमी जब निःस्वार्थी होता है । तब वो "सच" पे सवार होता है॥ ६ ॥
"सच" एक निःस्वार्थ ज्ञान के प्रकाश का दिया होता है ।
"झूठ" एक खुदगर्ज धुल की परत होती है ।
हमारा "मनवा" ही क्या सही ? क्या गलत ? सब जानता तो है।
मगर समय ने जो वक्त तय किया, उसपे बंधा रहता है॥ ७ ॥
- महामहोपाध्याय डॉ. मिलिंद इंदूरकर ‘मनवा’
गोटाळपांजरी, बेसा रोड, नागपुर