एक दीवाली ऐसी मनाई जाए
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अमावस्या के गहन अंधकार को पराजित करता हुआ यह पर्व हमारी आस्था और श्रद्धा को परिभाषित करता है। देखा जाए तो भारतवर्ष में हर त्योहार हमारी आस्था से जुड़ा हुआ है चाहे फिर वो चैत्र मास में आने वाली होलिका दहन की होली हो या कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में आने वाला भगवान श्री राम के चौदह वर्ष वनवास की वापसी का आनंद पर्व दीवाली हो। यहाँ मनाए जाने वाले सभी पर्व हमारी आध्यात्मिक और दार्शनिक चेतना का ही संश्लिष्ट रूप है। आवश्यकता है उनके समुचित संज्ञान की।
दीवाली में तिल के तेल का दिया जलाना ही सनातनी परंपरा है मोमबत्तियां नहीं। दीवाली की रात में घर के हर कोने को दिए से रोशन किया जाता है। अब इस प्रक्रिया के पीछे का वैज्ञानिक दृष्टिकोण समझना भी जरूरी है। संज्ञान ले तो बोध होता है कि यह पर्व नवम्बर मास शरद् ऋतु में आता है जब सुबह धुंध और रात में हल्की ठंड पड़नी आरंभ हो जाती है।
माना जाता है कि वर्षा के तुरंत पश्चात आने वाले इस मास में श्वास संबंधी बीमारियाँ यानि अस्थमा रोग में यह ऋतु उत्प्रेरक का काम करती है। आयुर्वेद विज्ञान कहता है कि इस समय तिल के तेल का सेवन हमारे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होता है। और तिल के तेल से जले दीपक की लौ से उठता धुआं हमारे फेफडों के शुद्धिकरण में अहम भूमिका निभाता है । इतना ही नही, तिल के तेल का दिया घर में वास्तु दोष और अन्य दुष्प्रभावों को भी निरस्त कर आयु , आरोग्य ऋद्धि-सिद्धि का कारक माना जाता है।
इसीलिए दीप प्रज्वलन के पीछे का विज्ञान मास, ऋतु, काल के गणित को लेकर चला है जो हमारी प्राण तंतुओं में निहित चेतना शक्ति को ही नहीं बल्कि पंचभूतों से निर्मित इस पार्थिव शरीर के स्वास्थ्य का भी उपकारक माना जा सकता है।
दीवाली का यह पर्व संपूर्ण भारत में सांप्रदायिक दायरों को लांघ कर आनंद और उत्साह से मनाया जाता है क्योंकि यह त्योहार है मिष्ठानों का, पटाखों का, नए कपडे, नए आभूषण नई चीजें खरीदने का। नए जोश, नए उत्साह का । लेकिन क्या आज इस पर्व की यह परिभाषा तर्क संगत लगती है ?
सुविधाभोगी भौतिकवाद ने हमारे स्वास्थ्य पर धावा बोल दिया है,आज हर तीसरा या चौथा व्यक्ति मधुमेह से पीड़ित है तो ऐसे में मिठाइयाँ बांटे और खाएं तो कैसे? महानगरों के अनियंत्रित विस्तार, मशीनीकरण और आधुनिकीकरण ने जंगलों को लील लिया, जल, वायु, पर्यावरण प्रदूषित कर दिया और आज स्थिति यह है कि महानगरों में सांस लेना दूभर हो गया तो पटाखे फोडे तो कैसे? कैसे मनायी जाए दीवाली बिन मिठाइयों और पटाखों के?
तो आइए इस दीवाली नए कपडे और नए आभूषणों की खरीदारी के साथ-साथ कुछ नए अनूठे संकल्प लें.. -कृत्रिम रोशनी के बदले मिट्टी के दिए जलाएं, मिठाई न खा पाए तो क्या, किसी एक के जीवन में मिठास भर दे, फुलझड़ियाँ न जलाएं तो क्या, एक पौधा अवश्य लगा लें, और लक्ष्मी पूजन न करें तो क्या.. घर की लक्ष्मी को मान दे, अपनी संतति में ये संस्कार रोपें। तिमिर से आलोक की ओर प्रस्थान करता यह पर्व सार्थक हो जाएगा। आइए एक दीवाली ऐसी मनाई जाए..।
- डॉ पदमावती
आसन महाविद्यालय, चेन्नई, तमिलनाडु.