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राष्ट्रपिता गांधी हिंदी के हिमायती थे : डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक

नागपुर/रायपुर। हमारे राष्ट्र के महापुरुषों ने आजादी की लड़ाई हिंदी का झंडा हाथ में लेकर लड़ी। आज हिंदी को संवैधानिक दृष्टि से राष्ट्रभाषा के रूप में मान्यता भले ही ना हो, लेकिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इंदौर अधिवेशन में 1946 में ही हिंदी को राष्ट्रभाषा  घोषित किया था। अतः राष्ट्रपिता गांधी हिंदी के सच्चे हिमायती थे। 

इस आशय का प्रतिपादन विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश की छत्तीसगढ़ प्रभारी तथा ग्रेसियस शिक्षा महाविद्यालय की सह- प्राध्यापक डॉ.मुक्ता कान्हा कौशिक ने किया। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान,प्रयागराज के तत्वाधान में छत्तीसगढ़ इकाई की ओर से डॉ. मुक्ता कौशिक के रायपुर स्थित निवास स्थान पर आयोजित लघु विचार गोष्ठी में वह अपना उद्बोधन दे रही थी। 

इस अवसर पर विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज के अध्यक्ष डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख,पुणे,महाराष्ट्र मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। डॉ. मुक्ता कौशिक ने आगे कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने सुपुत्र देवदास गांधी को हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए दक्षिण भारत भेजा था।आजादी मिलते ही राष्ट्रपिता गांधी ने यह भी कहा था कि 'दुनिया से कह दो गांधी अंग्रेजी भूल गया। 

संस्थान के अध्यक्ष एवं अतिथि डॉ. शहाबुद्दीन शेख ने कहा कि राष्ट्रपिता गांधी ने जगत को सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने के साथ सर्व धर्म समभाव का पाठ पढ़ाया।इसलिए तो वैश्विक स्तर के नेता गांधी जी को अपना आदर्श मानते हैं। परिणामत: सत्तर से अधिक देशों में गांधी जी की प्रतिमायें स्थापित हो चुकी है। संपूर्ण विश्व भारत को गांधी का देश के रूप में मानता है।

इस अवसर पर मैट्स  विश्वविद्यालय, रायपुर की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ.रेशमा अंसारी तथा कवियत्री सीमा निगम ने अपनी कविताएं प्रस्तुत की।प्राध्यापिका नम्रता  ध्रुव ने गोष्ठी का संचालन किया तथा आकाशवाणी की पूर्व अधिकारी श्रीमती अपराजिता शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
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