‘निराला’ हिंदी साहित्य के युगांतकारी कवि हैं : डॉ. गिरिजाशंकर गौतम
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नागपुर/रायपुर। भारतीय साहित्य में पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ निराले कवि हैं। विवेकानंद और कवि रवींद्रनाथ टैगोर की कर्मभूमि में जन्म लेने वाले, शिक्षा और सांस्कृतिक वातावरण में पले बढे , अवध के अन्न और नीर से पुष्ट ‘निराला’ अप्रतीम है। अत: ‘निराला’ हिन्दी साहित्य के युगांतकारी कवि है। इस आशय का प्रतिपादन डॉ. गिरिजा शंकर गौतम, सहायक प्राध्यापक-हिंदी, पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने किया। विश्व हिन्दी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तरप्रदेश के तत्वावधान में सोमवार 30 सितंबर को आयोजित राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी 173 (32) में वह मुख्य वक्ता के रूप में अपना उद्बोधन दे रहे थे।
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने गोष्ठी की अध्यक्षता की। डॉ. गौतम ने आगे कहा कि निराला की रचनाओं में तत्कालीन मानव की पीड़ा, परतंत्रता एवं परवशता के प्रति आक्रोश है। अन्याय एवं शोषण के प्रति प्रलयकारी विद्रोह की घोषणा उनकी कविता में सुनाई देती है। वह शोषितों के प्रति प्रतिबद्ध है। उनकी ओजस्वी कविता मानवतावाद की पक्षधर है। छायावाद कदाचित स्वच्छंदतावाद का भी युग है। निराला जी भर के प्रकृति को देखते हैं, अनुभव करते हैं। निराला में राग का जितना अमृत है, उतना ही विराग का विष। निराला हिंदी के उन विरले कवियों में हैं, जिन्होंने सुख और दुख को, अमृत और विष को एक-सा स्नेह दिया, तथापि सभी का उद्गम धरती से ही है।
सुश्री रेणुका प्रजापति, शोध छात्र, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश ने अपनी अभिव्यक्ति में कहा कि अभाव की तीव्र मर्मांतक व्यथा को झेलते हुए भी अपनी साधना में तल्लीन रहने वाले निराला मौलिक विचारक थे। निराला का गद्य साहित्य कई विधाओं में बिखरा हुआ है। निराला साहित्यकार को राजनीतिज्ञ, धर्मशास्त्री या समाज सुधारक से बहुत ऊंचा मानते थे। उनका गद्य साहित्य व्यक्तित्व की दोहरी चेतना का प्रतिनिधित्व करता है। उन्होंने साहित्य को मानवीय आधार पर प्रतिष्ठित करने पर बल दिया। निराला के अधिकांश उपन्यास स्त्री के नाम पर लिखे गए हैं। उनमें काव्य के मर्मों को परखने की अद्भुत क्षमता थी। निराला भाव, भाषा, छंद, लय, संगीत तथा उनके सामंजस्य से संगठित सौंदर्य सृष्टि के मूल्य और प्रभाव को लक्षित करने में प्रवीण थे।
डॉ. सुपर्णा मुखर्जी, सहायक प्राध्यापिका-हिंदी भवन्स विवेकानंद कॉलेज, हैदराबाद, तेलंगाना ने अपने मंतव्य में कहा कि साहित्यकार के रूप में मस्त मौला और फक्कड़ कवि निराला के लिए साहित्य साधना आजीविका का साधन थी, लेकिन उन्होंने साहित्य को अपने जीवन का उद्देश्य माना था, जीने का नहीं। मुक्त छंद को जन्म देने का श्रेय निराला को ही जाता है। काव्य सृजन के क्षणों में निराला जी की दृष्टि व्यक्ति केंद्रित न रहकर समष्टि गत रही है। उन्होंने कवि को भावनाओं का गायक और संस्कृति का अग्रदूत स्वीकार किया है। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने अध्यक्षीय समापन में कहा कि वास्तव में निराला का जीवन अनेक संघर्षों से भरा रहा है परंतु वह कभी विचलित नहीं हुए।
उनकी काव्य साधना ‘जूही की कली’ से आरंभित होती है। उनकी कविता में विविधता है, जो भाव, भाषा और विचार के साथ ही शिल्प में भी मिलती है। उनकी प्रमुख रचनाओं में अनामिका, परिमल, गीतिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, बेला, अपरा, नए पत्ते, अर्चना, आराधना, गीत गुंजन, सांध्य कली के नाम सम्मिलित हैं। निराला एक ही समय में अनेकरूपता के साथ कविताएं लिखते थे। उनकी कविताओं में दर्शन के साथ ही यथार्थवाद भी मिलता है। उनकी कविता सांस्कृतिक चिंतन और रहस्यवादी भावना से भरी है। निराला युगीन यथार्थ के प्रति सजग थे। ‘राम की शक्ति पूजा’ निराला की ही नहीं, अपितु संपूर्ण छायावादी काव्य की उत्कृष्ट उपलब्धि है। जीवन दृष्टि और भाषा प्रयोग के धरातल पर निराला अपने समकालीनों से निराले हैं। उनका व्यक्तित्व और काव्य दोनों अंतर्विरोधी प्रवृत्तियों से भरे हुए हैं।
निराला भारतीय परंपराओं की गत्यात्मकता के पोषक भी हैं और अत्यधिक आधुनिक भी। एक और उनमें विद्रोह का स्वर है तो दूसरी और मानवीय नियति और विवशताओं की रागिनी। प्रारंभ में संस्थान के सचिव डॉ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी, प्रयागराज ने अपने प्रास्ताविक भाषण में गोष्ठी के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। श्रीमती कृष्णा मणिश्री, मैसूर, कर्नाटक द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से गोष्ठी आरंभ हुई। डॉ पूर्णिमा मालवीय, प्रयागराज ने स्वागत भाषण दिया। गोष्ठी का संयोजन श्रीमती पुष्पा श्रीवास्तव, रायबरेली, उत्तर प्रदेश ने किया।
सफल व सुंदर संचालन डॉ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश ने किया तथा श्रीमती अनीता सक्सेना ने आभार ज्ञापन किया। इस गोष्ठी में संस्थान के उपाध्यक्ष डॉ ओमप्रकाश त्रिपाठी, सोनभद्र, उत्तर प्रदेश; उपमा दीनबंधु आर्य, लखनऊ; प्रा. मधु भंभानी, नागपुर; रतिराम गढ़ेवाल, रोहन पारधी, फरहत उन्नीसा खान, सुनंदा भागवत, श्वेता मिश्र, संतोष शर्मा, सीमा पासवान, सुमा टी आर, सीमा प्रधान, पूर्णिमा झेंडे, डॉ. भरत शेणकर; शोभना जैन की गरिमामयी उपस्थिति रही।