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विश्व में हिंदी बोलने वालों की संख्या सर्वाधिक : डॉ. शहाबुद्दीन शेख़

नागपुर/रायपुर। विश्व के सबसे बड़े दो आविष्कार हैं- भाषा और लिपि। भाषा अद्भुत है, जो आठ हज़ार वर्ष पूर्व अस्तित्व में आयी। हिंदी भारत की संपर्क भाषा है। भारतीय संविधान के अनुसार हिंदी राजभाषा के पद पर विराजित, पर दुर्भाग्य से सारी शक्तियाँ अंग्रेज़ी के पास हैं। वैसे देखा जाए तो हिंदी स्वयंसिद्ध व अघोषित राष्ट्रभाषा है।  

वर्तमान स्थिति में हिंदी हमारे ग्यारह राज्यों एवं तीन संघशासित क्षेत्रों की प्रमुख भाषा है। विश्व में हिंदी बोलनेवालों की संख्या भी सर्वाधिक है। ये विचार विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष तथा लोकसेवा महाविद्यालय, औरंगाबाद (छत्रपति संभाजी नगर), महाराष्ट्र के पूर्व प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज़ मुहम्मद शेख़, पुणे, महाराष्ट्र ने व्यक्त किए। 

केंद्रीय हिंदी निदेशालय, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली के तत्वावधान में आयोजित प्राध्यापक व्याख्यान यात्रा  योजनान्तर्गत गुरुवार 12 अक्टूबर को शहीद राजीव पांडेय शासकीय महाविद्यालय, भाठागाँव, रायपुर, छत्तीसगढ़ में ‘राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी‘ विषय पर वह अपना व्याख्यान दे रहे थे। डॉ. शेख़ ने कहा कि आज़ादी के पचहत्तर वर्ष के बाद भी राष्ट्रभाषा का प्रश्न पूर्ववत है। देश में अंग्रेज़ी के कारण हिंदी की उपेक्षा हो रही है। वास्तव में आज़ादी के आंदोलन की मुख्य हथियार हिंदी थी। 

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी फलती-फूलती जा रही है। भारत से बाहर चालीस से अधिक देशों के लगभग 650  विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में हिंदी के अध्ययन-अध्यापन की समुचित व्यवस्था उपलब्ध है। लगभग 180  देशों में प्रतिवर्ष 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है।  विश्व का हर छठा व्यक्ति हिंदी बोलता है। 

डॉ. जयंती प्रसाद नौटियाल, देहरादून ने 41 वर्ष भाषिक अध्ययन व सर्वेक्षण किया। उनके द्वारा प्राप्त आँकड़ों के अनुसार वर्तमान में विश्व में हिंदी बोलनेवालों की संख्या लगभग 156  करोड़ है, अंग्रेज़ी बोलनेवालों की संख्या 145 करोड़ तथा चीनी बोलनेवालों की संख्या 132  करोड़ है। इससे हिंदी के विस्तार का पता लगता है। अत: हिंदी के प्रति हमारे मन में सम्मान का भाव जागृत हो, यह आवश्यक है। 

शहीद राजीव पांडेय शासकीय महाविद्यालय, भाठागाँव के प्राचार्य डॉ. राजेश कुमार दुबे ने हिंदी भाषा की ताकत को बाज़ार से जोड़ते हुए बताया कि आम आदमी की भाषा हिंदी है और हिंदी भाषियों का फैलाव बाज़ार के आकर्षण का केंद्र है। इसी कारण हिंदी की लोकप्रियता और प्रयोगधर्मिता में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। 

प्रोफ़ेसर एल. एन. वर्मा ने कहा कि हम सपने भी हमारी अपनी भाषा में  देखते हैं और सपनों की भाषा अंतर्मन की भाषा होती है। हम सब अपने अंतस की उपेक्षा कर ही नहीं सकते और हिंदी वही सपनों की भाषा है। प्रोफ़ेसर निधि भट्ट ने हिंदी और अंग्रेज़ी के अंतर्संबंधों पर चर्चा करते हुए बताया कि भाषा को लेकर अलगाव की प्रवृत्ति का परित्याग करना चाहिए। 

प्रोफ़ेसर किशोर कुमार तिवारी ने विज्ञान की पढ़ाई के लिए हिंदी में पाठ्यपुस्तकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने पर जोर दिया। प्रोफ़ेसर कौशिल्या साहू ने फिल्मों के माध्यम से हिंदी के प्रसार की जानकारी दी। कार्यक्रम के आरंभ में प्रोफ़ेसर गौरी वर्मा ने डॉ. शहाबुद्दीन शेख़ जी का पुष्पगुच्छ भेंट कर स्वागत करते हुए उनका परिचय दिया एवं आभार प्रदर्शन किया।  

प्रोफ़ेसर सुनीता अग्रवाल द्वारा महाविद्यालय परिवार की ओर से डॉ. शहाबुद्दीन शेख़ को स्मृति चिह्न प्रदान किया गया। श्री शिवम सुखदेवे एवं श्री मुकेश चक्रधर ने कार्यक्रम संयोजक डॉ. सुलेखा अग्रवाल के साथ तीन दिनों तक व्याख्यान माला की सारी व्यवस्था संपादित की। विद्यार्थियों ने डॉ.  शेख़ के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में उनके योगदान को अतुलनीय और स्तुत्य बताया।
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