देवनागरी लिपि सार्वकालिक, सुसंगत व तथ्यपरक है : एम. एल. नथ्थानी
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नागपुर/रायपुर। सर्वाधिक लोकप्रिय एवं स्वीकार्य लिपि देवनागरी वैज्ञानिकता के साथ वह सार्वकालिक, सुसंगत व तथ्यपरक एवं सहज है। इस आशय का प्रतिपादन एम. एल. नथ्थानी, अवकाश प्राप्त सहायक आयुक्त, जीएसटी एवं वर्तमान में प्राध्यापक (सिंधी भाषा) पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने किया। नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली की छत्तीसगढ़ इकाई की ओर से रविवार 15 अक्टूबर को श्रीमती अपराजित शर्मा के रायपुर स्थित निवास स्थान पर आयोजित भौतिक गोष्ठी में वक्ता के रूप में वह उद्बोधन दे रहे थे। नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के कार्याध्यक्ष डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने गोष्ठी की अध्यक्षता की।
प्राध्यापक नथ्थानी ने इस अवसर पर अपने मंतव्य में देवनागरी लिपि की अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद, अध्ययन, शोध के संबंध में तथ्यात्मक विवेचना के साथ प्राचीनतम भारतीय लिपि के मौर्य काल से सातवीं शताब्दी तक देवनागरी लिपि की विकास यात्रा का युक्ति संगत वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत किया। उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान में अन्य भारतीय भाषाओं को सरलता से जोड़ने वालों वाली लिपि देवनागरी ही है। पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर के हिंदी विभाग के प्राध्यापक डॉ. गिरिजा शंकर गौतम ने भी अपने अमूल्य विचार प्रस्तुत किए।
परिषद के कार्याध्यक्ष डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने अपने अध्यक्षीय समापन में कहा कि देवनागरी लिपि विश्व की सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि है। वर्तमान में विश्व स्तर पर प्रचलित रोमन, फारसी और चीन की चित्र लिपि की तुलना में देवनागरी सर्वाधिक सरल,सहज, सुगम व सुपाठ्य लिपि है।
देवनागरी लिपि के लेखन व उच्चारण में सामंजस्य है। इस लिपि में स्वरों एवं व्यंजनों का क्रम निश्चित है। देवनागरी के प्रत्येक अक्षर के लिए एक ही ध्वनि चिन्ह है। इसके पठन-पाठन में किसी भी प्रकार के भ्रम की गुंजाइश नहीं है। देवनागरी लिपि के माध्यम से भारत सहित विश्व की किसी भी भाषा को आसानी से सीखा जा सकता है।
प्रारंभ में गोष्ठी की आयोजक श्रीमती अपराजिता शर्मा, गोष्ठी की संयोजक डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक (सह प्राध्यापक, शिक्षा मनोविज्ञान) तथा डॉ. सरस्वती वर्मा, महासमुंद के हाथों शॉल व पुष्प गुच्छ से स्वागत किया गया। वक्ता डॉ. गिरिजा शंकर गौतम व प्रा. एम. एल. नथ्थानी का भी पुष्प गुच्छ देकर उन्हें सम्मानित किया।
डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक द्वारा अपने प्रास्तविक भाषण में लिपि के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए नागरी लिपि के महत्व एवं विशेषताओं को विशद किया गया। उन्होंने यह भी कहा कि ब्राह्मी से निर्मित देवनागरी लिपि भारतीय संविधान के अष्टम अनुसूची में निर्दिष्ट 22 भाषाओं में से लगभग 12 भाषाओं की प्रमुख लिपि है।
इस गोष्ठी में मैट्स विश्वविद्यालय, रायपुर की हिंदी विभाग की अध्यक्ष प्रो. डॉ. रेशमा अंसारी, प्रा. नम्रता ध्रुव, सीमा निगम, विनय शर्मा तथा शोधार्थी रतिराम गढेवाल की गरिमामय उपस्थिति रही।
गोष्ठी का सफल व सुंदर संचालन डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक ने तथा श्रीमती अपराजिता शर्मा ने आभार ज्ञापन किया।