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भारतीय ज्ञान परंपरा से निर्मित भारतीय संस्कृति में वेद, तंत्र और योग का समावेश है : प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन शेख

नागपुर/पुणे। भारतीय ज्ञान परंपरा का मर्म स्थल वेद माना जाता है| संस्कृत, पालि और प्राकृत में भी भारतीय ज्ञान सर्वत्र पाया जाता है। ज्ञान का विस्तार और विकास संस्कृत साहित्य, श्रीमद् भागवत गीता, उपनिषदों और पुराणों में उपलब्ध हो सकता है। 

इस आशय का प्रतिपादन लोकसेवा एज्युकेशन सोसाइटी संलगनित कला व विज्ञान महाविद्यालय, औरंगाबाद, महाराष्ट्र के पूर्व प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख,पुणे, महाराष्ट्र ने किया। उच्च शिक्षा विभाग, मध्य प्रदेश शासन के निर्देशानुसार शासकीय महाविद्यालय, कानवन, जिला धार, मध्य प्रदेश के तत्वावधान में मंगलवार 29 अगस्त को ‘मूल्य आधारित शिक्षा के उद्देश्य और प्रभाव’ इस विषय पर आयोजित राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी में विषय विशेषज्ञ के रूप में वे अपना उद्बोधन दे रहे थे।

डॉ. शहाबुद्दीन शेख ने आगे कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा का सर्वाधिक बृहद् आधार वेद है, भारतीय ज्ञान परंपरा एक ऐसी परंपरा है, जिसमें धर्म व कर्म के मार्ग, ज्ञान और योग की साधना, लौकिक - अलौकिक उद्देश्य सभी सम्मिलित है। अतः भारतीय संस्कृति में वेद, तंत्र और योग का समावेश है। उन्होंने कहा कि मूल्य ऐसे तत्व है जो मनुष्य को सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करते हैं, जिससे मनुष्य स्वयं अपना भौतिक, सामाजिक एवं आत्मिक विकास करता हुआ उदात जीवन प्राप्त करता है। 

भारतीय संस्कृति में सत्य, अहिंसा, परोपकार, दया ,प्रेम, मानवता, सेवा, त्याग, राष्ट्रप्रेम आदि विविध जीवन मूल्यों का समावेश मिलता है | आज मूल्य आधारित शिक्षा की आवश्यकता है। शिक्षा के अभाव में व्यक्ति या समाज के विकास की संकल्पना मात्र कोरी कल्पना है। शिक्षा का प्रयोजन सूचनाओं का भंडार मात्रा नहीं है, अपितु व्यक्ति के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास है। शिक्षा प्राचीन भारतीय संस्कृति की  आधारशिला रही है। 

मूल्यहीन शिक्षा में तकनीकी जानकारी व ज्ञान होता है, परंतु शिक्षा का अभाव होता है। शिक्षा द्वारा ही संस्कारों का विकास किया जा सकता है। भारतीय ज्ञान परंपरा हजारों वर्ष पुरानी है, जिसमें आधुनिक विज्ञान, प्रबंधन सहित सभी क्षेत्र के लिए अद्भुत खजाना है| भारतीय शिक्षा मूल्य परक है। मूल्य शिक्षा का केंद्रीय  मर्म है। भारतीय शिक्षा संस्कार युक्त भी है। पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली संस्कारों पर आधारित नहीं है, बल्कि वह तटस्थ है। मूल्य आधारित शिक्षा से छात्रों का शारीरिक, मानसिक, भौतिक, व्यक्तिगत, सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक, चारित्रिक, व्यावसायिक और आध्यात्मिक विकास होता है। 

इसके साथ ही छात्रों में सहयोग, प्रेम, करुणा,शांति, अहिंसा, साहस, समानता, बंधुत्व, प्रेरणा, श्रमनिष्ठा, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, सकारात्मक विचार, पर्यावरण की रक्षा, सृजनात्मकता, कर्मठता, स्वच्छता, कर्तव्यों के प्रति सजगता आदि सभी गुणों का विकास होता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि मूल्य आधारित शिक्षा का प्रभाव छात्रों के व्यक्तित्व और उसके जीवन में निश्चित ही परिलक्षित होता है। 

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा आत्मनिर्भरता, शिक्षा में नवाचार, छात्र और अध्यापक के संबंधों में निकटता, आध्यात्मिक शिक्षा के साथ लौकिक शिक्षा, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों की स्थापना भारतीय विद्यार्थियों में विदेशी शिक्षा पाने के मोह की समाप्ति आदि बातें मूल्य आधारित शिक्षा के माध्यम से प्रभाव के रूप में सिद्ध हो सकती हैं। 

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र के हिंदी विभाग के प्रोफेसर डॉ. अवधेश कुमार शुक्ल ने कहा कि मनुष्य के जीवन में कोई मूल्य नहीं तो वह शिक्षा निरुपयोगी है। हमारे यहां शिक्षा तीन प्रकार की है - औपचारिक, अनौपचारिक और अनुषंगिक। ज्ञान कौशल और अभ्यास का शिक्षा में महत्व है। 

हमारे यहां शिक्षा से तात्पर्य विचार विमर्श है। जब तक हमारी शिक्षा के मूल्य आचरण में ना हो संस्कार क्षम  हो तो वह शिक्षा निरुपयोगी है। हमारी शिक्षा का मूल सत्य है। धर्म जीवन का पर्याय है। प्रेम एक उदात मूल्य है। प्रेम एक एहसास है, जिसे व्यक्त नहीं किया जा सकता। शिक्षा संप्रेषित करने की कला होनी चाहिए। हमारी शिक्षा भारतीय संस्कृति पर आधारित है। हमारे यहां 64 कलाएं हैं। 

गोष्ठी का आरंभ मेघा भाटी और सपना निनामा द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ। समन्वयक डॉ. ईश्वरलाल ओसारी ने स्वागत भाषण दिया। महाविद्यालय की प्रभारी प्राचार्या प्रोफेसर मंजू पाटीदार ने विषय की संकल्पना प्रस्तुत की। अतिथि परिचय प्राचार्या मंजू पाटीदार और डॉ. प्रीति जैन ने कराया। प्राचार्या डॉ.  वर्षा पटेल, बिडवाल; ज्योति बरपा, मनावर ; मनीषा राठौर, बिडवाल ; मंजुला भालसे, बिड़वाल ने अपने  शोध पत्रों का वाचन किया। 

इस राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी के पटल पर गोष्ठी की मुख्य संरक्षक डॉ. किरण बाला सलूजा, अतिरिक्त संचालक, उच्च शिक्षा विभाग, संभाग इंदौर, मध्य प्रदेश ; संरक्षक डॉ. सुभान सिंह बघेल, प्राचार्य, महाराजा भोज शासकीय अग्रणी स्नातकोत्तर महाविद्यालय, धार, मध्य प्रदेश; डॉ वंदना अग्निहोत्री, सवीजरलैंड;  

डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, सह प्राध्यापिका, ग्रेसियस शिक्षा महाविद्यालय, अभनपुर, रायपुर, छत्तीसगढ़ ; जयवीर सिंह, श्वेता मिश्रा, पुणे; रतिराम गढ़ेवाल, रायपुर, छत्तीसगढ़ ; श्रीमती जैबून्निसा, विशाखापट्टनम; उपमा और दीनबंधु आर्य, लखनऊ ; प्रो डॉ. प्रतिभा येरेकार, प्रोफेसर डॉ शहनाज शेख, नांदेड़ ,महाराष्ट्र ;प्रा. मधु भंभानी, 

डॉ अनीता वानखेडे, नागपुर,महाराष्ट्र; प्रो. चैतन्य कुमार शर्मा, प्रो. अंकित सक्सेना, कानवन, श्रीमती फरहत उन्नीसा खान, विदिशा, मध्य प्रदेश ; डॉ. अविनाश महाजन, श्रीरामपुर, महाराष्ट्र सहित अनेको की गरिमामयी उपस्थिति रही। गोष्ठी का सुंदर, सफल संचालन व नियंत्रण समन्वयक डॉ. ईश्वरलाल ओसारी ने किया तथा डॉ. बल्लूसिंह मुवेल  ने आभार ज्ञापन किया।
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