प्रज्ञाचक्षू श्रीसंत गुलाबराव महाराज का मनाया पुण्य स्मरण दिन
https://www.zeromilepress.com/2023/09/blog-post_70.html
नागपुर (दिवाकर मोहोड)। प्रज्ञाचक्षू श्रीसंत गुलाबराव महाराज चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा प्रज्ञाचक्षू श्रीसंत गुलाबराव महाराज की पुण्यतिथी समारोह बुधवार 20 सितम्बर को राष्ट्रीय कुणबी समाज कार्यालय, मोहोड ट्रेडिंग कंपनी, ऊदयनगर चौक, रिंग रोड नागपुर में आयोजित की गई। भक्तगनो ने सुबह 11 बजे से पुण्य स्मरण दिन समारोह में धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमो का भव्य आयोजन किया गया था।
इस अवसर पर प्रमुख उपस्थिती नितीन चौधरी, प्रज्ञाचक्षू श्रीसंत गुलाबराव महाराज चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष कृष्णकान्त मोहोड, सचिव प्रदिप अहिरे, कार्याध्यक्ष सुदाम शिंगणे, दिवाकर मोहोड सहित बड़ी संख्या में भक्तगणों की उपस्थिति रही।
प्रज्ञाचक्षु गुलाबराव महाराज का ननिहाल विदर्भ की पावनभूमि के अमरावती जिले के माधान नामक गांव में है जहां मोहोड कुल में 6 जुलाई 1881 को उनका जन्म हुआ. उनकी माता का नाम अलोकाबाई था तथा पिता गोंदजी मोहोड माधानग्राम के पाटिल थे।
गुलाबराव महाराज को उम्र के 8वें महीने में ही आंखों की बीमारी हुई और किसी ने भूल से गलत दवा उनकी आंखों में डाल दी जिससे हमेशा के लिए उनके चर्मचक्षु आहत हो गए परंतु उन्हें अंतःदृष्टि प्राप्त थी।
उनका मन सदैव प्रसन्न रहता था, नेत्रहीन होते हुए भी उन्हें विद्यार्जन का बहुत शौक था। वे ग्रंथों का श्रवण करते और चिंतन-मनन करते. अमरावती स्थित लाईबेरी (वाचनालय) में आज उनके द्वारा रचित करीब 4 हजार ग्रंथ मौजूद हैं। महाराजश्री ने कभी पाठशाला के दर्शन नहीं किये किंतु उन्हें अनेक भाषाओं का ज्ञान प्राप्त था। जीवन के मध्य में ही उनकी पत्नी मनकर्णी स्वर्गलोक सिधार गई।
गुलावराव महाराज ने बहुत ही कम उम्र में ही 134 ग्रंथों की निर्मिति की यह एक चमत्कार ही है. यह सारा साहित्य की रचना अपनी युवावस्था के 34वें वर्ष की में ही उन्होंने पूरा किया और अंत में ई.स. 1917 में पुणेनगर में भाद्रपद शुक्ल वामनद्वादशी, 20 सितंबर के दिन सूर्योदय के समय पर महाराज ने बहमस्थान के लिए महाप्रस्थान किया।
अनादिकाल से वैश्विक व्यवस्था में प्रमुख रहे भारत की आध्यात्मिक भूमिका को तथा ज्ञानदान की परंपरा को पुनःश्च दृढ बनाने में महाराज के कार्यो का बहुमोल सहयोग रहा है, यह विचार बार-बार मन में आता है।