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विषय के सहज आकलन में मातृभाषा ही सर्वोत्तम : प्रो. निर्मला जाधव

नागपुर/पुणे। परिवार, परिवेश व शिक्षा में मातृभाषा माध्यम होने के कारण बालकों का अपने परिवार तथा परिवेश के साथ आत्मीयता का अनुबंध स्थापित होता है। परिणामत: मातृभाषा के कारण ही बालक सहजता से विषय का आकलन करने में समर्थ होता है। 

इस आशय का प्रतिपादन प्रो. निर्मला लक्ष्मणराव जाधव, अध्यक्ष, हिंदी विभाग, कै. सौ. कमलताई जामकर, महिला महाविद्यालय, परभणी, महाराष्ट्र ने किया। विश्व हिन्दी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के तत्वावधान में ‘बच्चों को उनकी मातृभाषा के माध्यम से सीखाना अधिक प्रभावी’ विषय पर शुक्रवार 15 सितंबर को  आयोजित राष्ट्रीय आभासी 171 वीं (24) गोष्ठी में वह अपना उद्बोधन दे रही थीं। 

विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान,  उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने गोष्ठी की अध्यक्षता की। प्रो.निर्मला जाधव ने आगे कहा कि बालकों के भविष्यकालीन बहुआयामी व्यक्तित्व के लिए उसकी शालेय शिक्षा में मातृभाषा का समावेश परम आवश्यक है। परिणामत: आत्मविश्वास व आत्मनिर्भरता की निर्मिती में वह सक्षम सिद्ध होगा। 

विशिष्ट वक्ता डॉ. प्रभा किरण जैन, संपादकीय सहयोगी, ‘नया ज्ञानोदय’ भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली ने अपने वक्तव्य में कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने ‘हरिजन’ पत्रिका में लिखा था कि मैं मातृभाषा की कतिपय कमियों के बावजूद उसके साथ ऐसे ही चिपटा रहूंगा, जैसा कि मां की छाती के साथ। ये उक्ति मातृभाषा का महत्व सिद्ध करने में सक्षम है।  

यदि विद्यालयों में मातृभाषा माध्यम में पढ़ाया जाए तब कहीं अंग्रेजी के थोपे गए बोझ से घबराकर पढ़ने से विमुख होते बच्चे और उनको स्कूल में धकियाते अभिभावकों की व्याकुलता खत्म हो जाएगी। मातृभाषा संबंधों को मजबूत बनाते हुए हीनता ग्रंथि को पनपने नहीं देती।  

हमें  फ्रांस, तुर्की, जापान जैसे देशों से सिख लेनी चाहिए कि, उन देशों ने अपनी मातृभाषा माध्यम से ही सर्वांगीण प्रगति साधी  है। प्रो. मंजू  पाटीदार, सहायक प्राध्यापक - हिंदी एवं प्रभारी प्राचार्य, शासकीय महाविद्यालय, कानवन,जिला धार  मध्य प्रदेश ने अपनी अभिव्यक्ति में कहा कि मातृभाषा में सीख कर बच्चे आसानी से सैद्धांतिक ज्ञान को व्यवहारिक ज्ञान से जोड़ सकते हैं। 

अन्य भाषा में शिक्षा देकर हम बच्चों को मातृभाषा ज्ञान तक सीमित कर देते हैं। मातृभाषा बच्चों में त्रुटि सुधार एवं सृजनात्मक की क्षमता का विकास करती है। मातृभाषा से वंचित बालक अपनी संस्कृति व सभ्यता से भी वंचित हो जाते हैं। मातृभाषा हमें आध्यात्मिकता  की ओर अग्रसर करती है, जबकि अन्य भाषा भौतिकता की ओर।  

हमारी वर्तमान सरकार ने चिकित्सा, इंजीनियरिंग तथा विधि की शिक्षा हिंदी में प्रदान करने की श्रेष्ठ पहल की है। प्रारंभ में विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के सचिव डॉ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी ने अपने प्रास्तविक उद्बोधन में संस्थान की गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए तथा  विषय की संकल्पना स्पष्ट करते हुए कहा कि, बालकों के व्यक्तित्व विकास में मातृभाषा की अहम भूमिका होती है। आज हमारी भाषाओं पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। कई बोलियां  समाप्ति के मार्ग पर हैं। 

अंग्रेजी का ज्ञान नौकरी के लिए सुविधाजनक  होने का भ्रम होने से अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में दिनों दिन वृद्धि हो रही हैं। अतः समय को देखते हुए हमें अपने बच्चों को मातृभाषा माध्यम से शिक्षा के लिए प्रेरित करना चाहिए। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने अध्यक्षीय समापन में कहा कि मातृभाषा बालक के लिए टॉनिक के समान होती है, जो उसमें आत्मविश्वास के साथ आत्म शक्ति और आत्म गौरव का भाव निर्माण करती है।  मातृभाषा मां और बच्चों के  बीच पुल का काम करती है। 

मातृभाषा से कट जाने का अर्थ है समाज से कट जाना। जो भाषा माँ की होती है वह मातृभाषा कहलाती है। मातृभाषा हमारी उन्नति एवं समृद्धि की आधारशिला होती है। अतः बच्चों को शिक्षा मातृभाषा में ही देनी चाहिए । गोष्ठी का अत्यंत सुंदर, सफल व प्रभावी ढंग से संचालन करते हुए डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक, संस्थान की छत्तीसगढ़ प्रभारी व हिंदी सांसद तथा सह प्राध्यापक-शिक्षा मनोविज्ञान, ग्रेसियस कॉलेज, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने कहा कि शिक्षा में मातृभाषा से अपने परिवेश व पर्यावरण का बोध होता है। अलगाव  से बचाव हो जाता है। 

अतः हमारी अस्मिता, साहित्य, सृजनात्मकता  का सर्वोत्तम वैभव मातृभाषा में ही संभव है। गोष्ठी का शुभारंभ श्रीमती रजनी प्रभा, शोध प्रज्ञ, मुजफ्फरपुर, बिहार द्वारा मधुर एवं सुरीली आवाज में प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ। डॉ. सोनाली रामदास हरदास, अध्यक्ष, हिंदी विभाग, श्री साईँ बाबा महाविद्यालय, शिरडी, अहमदनगर, महाराष्ट्र ने स्वागत भाषण दिया तथा सुश्री नमृता ध्रुव, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने आभार ज्ञापन किया। 

इस आभासी  राष्ट्रीय गोष्ठी  में उपमा दीनबंधु आर्य, लखनऊ; रतिराम गढ़ेवाल, रायपुर, डॉ. नजमा बानू मलेक, नवसारी, गुजरात; लक्ष्मीकांत वैष्णव, शक्ति,छत्तीसगढ़; शैलेंद्र जैन, शेटिया, प्रा. मधु भंभाणी, नागपुर; डॉ. सुरेखा मंत्री, यवतमाल, महाराष्ट्र; फरहत उन्नीसा खान, विदिशा, मध्य प्रदेश; डॉ. जया सिंह, रायपुर; विकास शर्मा, पुष्पलता श्रीवास्तव, रायबरेली की गरिमामयी उपस्थिति रही।
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