मात्र प्रावधान नहीं, दर्शन है राष्ट्रीय शिक्षा नीति : प्रो. शर्मा
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नागपुर। राष्ट्रीय शिक्षा नीति कोई नीति या प्रावधान नहीं मात्र है, बल्कि दर्शन है। यह नए भारत के निर्माण का प्रारुप है। नई शिक्षा नीति में किसी भाषा या नीति का विरोध नहीं है बल्कि समग्र भारतीय समाज की एकता की संकल्पना निहित है। उक्त विचार शिक्षा विद्यापीठ, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, दिल्ली के निदेशक , राष्ट्रीय शिक्षा नीति निर्धारण के एक प्रमुख हस्ताक्षर प्रो. सी. वी. शर्मा ने व्यक्त किए।
वे महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी, मुंबई के सहयोग से हिन्दी विभाग, राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा शिक्षा, संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली एवं महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे विदर्भ -प्रांत के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि यह शिक्षा नीति भारतीय भाषाओं के माध्यम से भारतीय ज्ञान परम्परा को राष्ट्र की प्रगति का पाथेय बनाने पर बल देती है। भाषा ही संस्कृति का संवाहक है। यह केवल मौखिक या लिपि के रूप में अभिव्यक्त होनेवाला साधन नहीं है। हमारी भूषा, हमारे व्यवहार, हमारी सोच-विचार की भी एक भाषा होती है। यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति इन सभी को ज्ञान और विचार का विषय बनाने की बात करती है। भारतीय भाषाओं के माध्यम से राष्ट्र के नागरिक निर्माण का सपना इस नीति का मुख्य उद्देश्य है।
विश्वविद्यालय के मानविकी संकाय के अधिष्ठाता डॉ. शामराव कोरेटी ने कहा कि स्वतंत्र भारत में समय-समय पर शिक्षा नीति लाई गई और उसका कार्यान्वयन किया गया। पर उस नीति का परिणाम अपेक्षा के अनुरूप नहीं निकल सका। अब जो नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति आई है, उसे बड़ी गंभीरता से शिक्षा क्षेत्र में लागू करना होगा। शिक्षा नीति के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सामूहिक संकल्प की आवश्यकता है।
विभिन्न सत्रों में देश के अनेक राज्यों से आए विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किए। संत अलायसियस स्वशासी महविद्यालय, जबलपुर के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. रामेंद्र प्रसाद ओझा ने संविधान में भारतीय भाषाओं के महत्त्व पर प्रकाश डाला। जबकि पी.डबल्यू.एस. महाविद्यालय के हिन्दी विभाग अध्यक्ष डॉ.सुमेध नागदिवे ने कहा कि मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा होने से शिक्षा के प्रति बच्चों में रुचि बढ़ती है और उससे बालक की बौद्धिक क्षमता का विकास होता है। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ.संदीप सपकाले ने अपने वक्तव्य में गांधीजी और डॉ.आम्बेडकर के भाषा सम्बन्धी विचारों से अवगत कराते हुए कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति इन महापुरुषों के संकल्पों को रेखांकित करती है।
विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग अध्यक्ष डॉ. मनोज पाण्डेय ने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का संबंध केवल शिक्षार्थी या शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों से नहीं है, समाज के प्रत्येक नागरिक से है। समग्र समाज के विकास का सपना तभी पूरा होगा जबकि समाज के प्रत्येक व्यक्ति की इसमें सक्रिय भागीदारी होगी।
इटावा से पधारे डॉ. रमाकान्त राय ने भारत की शास्त्रीय भाषाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारे समाज में भारतीय भाषाओं के प्रति सम्यक दृष्टि होनी चाहिए। वहीं डॉ. श्याम प्रकाश पांडे ने रामचरितमानस के प्रसंगों का उल्लेख करते हुए भाषा के महत्त्व को समझाया।
वी.एम.वी. महाविद्यालय के हिन्दी विभाग की अध्यक्ष डॉ. आभा सिंह ने कहा कि पाठ्यक्रम में भारतीय ज्ञान परम्परा का समावेश होने से सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा मिलेगा। पब्लिक रीलेशंस सोसायटी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सत्येन्द्र प्रसाद सिंह ने कहा कि भाषा का आधार मनुष्य है। मनुष्य अपनी भाषा के प्रति जितना सजग होगा वह उतना ही उसके संवर्धन का भागीदार बनेगा।
परभणी से पधारे डॉ. सुजीत सिंह परिहार ने अकादमिक सत्र की अध्यक्षता करते हुए भाषा के विकास की संकल्पना को रेखांकित किया और शिक्षा संस्थानों की भूमिका पर प्रकाश डाला। समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए शोभा ताई पैठणकर, इंदौर ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक बड़ी चुनौती है, इसे साकार करने का प्रयत्न प्रत्येक नागरिक को करना चाहिए।
विभिन्न सत्रों का संचालन प्रा.सुषमा नरांजे, डॉ.नेहा कल्याणी, डॉ.लखेश्वर चन्द्रवंशी और डॉ. सुमित सिंह ने किया, जबकि प्रा.जागृति सिंह, डॉ.एकादशी जैतावर, डॉ. सपना तिवारी ने आभार व्यक्त किया।