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नारी और पुरुष का परस्पर आकर्षण सहज, प्राकृतिक व नैसर्गिक है : डॉ. पद्मावती

नागपुर/पुणे। पुरुष और नारी की मित्रता कितनी जायज है, यह विषय बहुत ही विवादित है। जिसके दोनों ही पक्ष बलवान है। दोनों ही पक्षों पर तर्क वितर्क किया जा सकता है। अगर जैविक संरचना की बात की जाए तो नारी और पुरुष का परस्पर आकर्षण सहज, प्राकृतिक व नैसर्गिक है। यह कोई विकृति नहीं है। 

ये विचार डॉ. पद्मावती, सहायक आचार्य-हिंदी, आसन मेमोरियल कॉलेज, चेन्नई, तमिलनाडु ने व्यक्त किये। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज के तत्वावधान में मंगलवार 15 अगस्त को आयोजित 167 (23)वीं राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी में वे विशिष्ट वक्ता के रूप में अपना उद्बोधन दे रही थी। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने गोष्ठी की अध्यक्षता की। 

डॉ. पद्मावती ने आगे कहा कि, मित्रता बड़ा पावन शब्द है, पवित्र संबंध है। हर संबंध की नींव विश्वास और प्रेम पर ही टिकती है। समर्पण और प्रतिबद्धता हर संबंध की शर्त है। हर संबंध का अपना दायरा होता है। मित्रता स्त्री-स्त्री की हो या स्त्री-पुरुष की, तब तक भली रहती है, जब तक वह अपने दायरे में रहेगी। श्रीमती श्वेता मिश्रा, पुणे, महाराष्ट्र ने कहा कि पुरुष और नारी की मित्रता जायज है क्योंकि समय बदल चुका है। नारी पहले से ज्यादा मजबूत बन गई है। अतः पुरुष और नारी की मित्रता तो जायज है, पर वह एक दायरे के भीतर। 

दीनबंधु आर्य, अवकाश प्राप्त सहायक लेखाधिकारी, होमगार्ड, लखनऊ, उत्तर प्रदेश ने अपने मंतव्य में कहा कि मित्रता मानव जीवन का एक अपरिहार्य अंग है। बिना मित्र, साथी, सहचर के जीवन शून्य-सा हो जाता है। इसलिए मित्रता कभी नाजायज नहीं हो सकती। अब प्रश्न उठता है कि क्या पुरुष और नारी मित्र हो सकते हैं? इसका वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उत्तर हां में मिलता है। नारी ममता, स्नेह, प्रेम, करुणा, दया की प्रतिमूर्ति है तो पुरुष गंभीर उत्तरदायित्वों का उचित निर्वहन करने वाला संबल प्रदान करता है। अतः नारी एवं पुरुष का साहचर्य उचित ही है। इस मित्रता को नाजायज की संज्ञा नहीं दी जा सकती, ऐसा मेरा विश्वास है। सभी रिश्तों की एक मर्यादा होती हैं। उनके लांघने से ही परिणाम घातक होता है। 

यदि आज के वातावरण का सूक्ष्म अवलोकन करें तो कोई भी संबंध पवित्र नहीं रह गया है। परंतु समाज पूरी तरह से दूषित हो गया है, ऐसा नहीं है। अभी भी नैतिक मूल्यों की रक्षा करने वाले हैं। अतः नारी एवं पुरुष की मित्रता उचित है,जायज है। बिना मित्रता के अलग-अलग क्षेत्र में साथ-साथ काम करना संभव ही नहीं हो सकता है। पुरुष और नारी की मित्रता सदियों से चली आ रही है। भगवान कृष्ण ने भी द्रोपदी को अपनी सखी माना  था। 

श्रीमती अपराजिता शर्मा, पूर्व अधिकारी, आकाशवाणी, जगदलपुर, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने कहा कि जिंदगी में मित्रता जरूरी होती है। चाहे वह समान लिंग में हो या स्त्री-स्त्री में या पुरुष-पुरुष में या विपरीत लिंग में हो, जैसे नारी और पुरुष में। स्त्री और पुरुष की मित्रता बिल्कुल जायज है, होनी भी चाहिए। क्योंकि स्त्री, स्त्री को समझने में जितनी सक्षम होती है, उससे ज्यादा सक्षम होती है एक स्त्री पुरुष को समझने में और एक पुरुष स्त्री को समझने में। पर सीमा रेखा का पालन स्त्री और पुरुष दोनों को भी अपनी मित्रता में करना चाहिए। 

विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के सचिव डॉ.गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी ने अपने प्रास्तविक भाषण में कहा कि, स्त्री और पुरुष दोनों ही सभ्यता के आधारभूत पहलू है। मित्र बहुत ही प्रेममय शब्द है। परंतु मित्र को चुनने में बड़ी सावधानी बरतनी चाहिए। मित्र को परखने का मौका आपत्ति काल में होता है। 

स्त्रियों की स्वतंत्रता के बारे में शंख ने कहा कि पति, भाई या पिता की आज्ञा के बिना घर से बाहर न जाना, तेज न चलना, सन्यासी,वृद्ध तथा वैद्य को छोड़कर अन्य पुरुष से वार्तालाप ना करना, नाभि न दिखाना स्त्रियों का कर्तव्य है। इनका पालन न करने वाले अच्छे घर की स्त्री को दुष्चरित्र होने का भय रहता है। पर मेरी राय है कि वर्तमान समय की मांग के अनुसार पुरुष और नारी को मित्रता करनी चाहिए। क्योंकि आज पुरुष और नारी को कंधे से कंधा मिलाकर चलने का समय है। पर आजकल विपरीत लिंगी मित्रता के नाम पर जैसा घृणित खेल खेला जा रहा है। इससे बचना चाहिए। 

पटल पर श्रोता के रूप में जुड़े डॉ. रणजीत सिंह अरोरा, पुणे, महाराष्ट्र ने कहा कि, गुरु पंथ खालसा में स्त्री पुरुष को समान अधिकार प्रदान किए गए हैं। पुरुषों के जीवन में नैतिकता के दायरे में स्त्री मित्र जरूर होनी चाहिए। स्त्री मित्र से जीवन में आचार-विचार, रहन-सहन और भाषा शैली संतुलित एवं अनुशासित रहती है। निश्चित ही एक अच्छी स्त्री मित्र के जीवन के मानवीय मूल्यों को उत्तम आयाम प्रदान कर सकती है। 

अध्यक्षीय समापन करते हुए विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने कहा कि जरूरी नहीं की मित्रता केवल समलैंगिक ही हो, मित्रता उसी से होती है, जहां मन, विचार और साथ मिले। चाहे वह पुरुष हो या स्त्री। मित्रता में न उम्र मायने रखता है, न लिंग। इसमें कोई संदेह नहीं है कि एक पुरुष-पुरुष की मित्रता या एक नारी-नारी की मित्रता की अपेक्षा एक पुरुष-नारी की मित्रता अधिक मजबूत, विश्वासी, खुशहाल और संतोषजनक होती है। 

नारी और पुरुष का परस्पर आकर्षण उनके जीवन के उबाऊ पन से मुक्ति दिलाता है,जिससे रिश्ते में प्रगाढ़ता आती है। वैसे इन दिनों कोई भी रिश्ता विश्वास परक नहीं रहा। समझना और समझाना ये दो बातें किसी भी रिश्ते को मजबूत बनाते हैं। गोष्ठी का आरंभ प्रा.लक्ष्मीकांत वैष्णव, शक्ति, छत्तीसगढ़ की सरस्वती वंदना से हुआ। डॉ.सरस्वती वर्मा, महासमुंद, छत्तीसगढ़ ने स्वागत भाषण दिया। 

गोष्ठी का सुंदर व सफल संचालन प्रा.लक्ष्मीकांत वैष्णव ने किया तथा अनीता सक्सेना,अयोध्या, उत्तर प्रदेश ने आभार ज्ञापन किया। इस आभासी गोष्ठी में श्रीमती उपमा आर्य, लखनऊ, प्रा.मधु भंभानी, नागपुर, डॉ सुधा सिंह, पटना, रतिराम गढेवाल, रायपुर, जसवीर सिंह, पुणे, नम्रता ध्रुव, अर्चना चतुर्वेदी, इंदौर, फरहत उन्नीसा खान, विदिशा, मध्य प्रदेश की गरिमामयी उपस्थिति रही।
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