ज्ञान, जागरूकता से ही काम सिद्ध होते हैं : पुलक बैनर्जी
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नागपुर। विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन के कार्यक्रम साहित्यकी के अंतर्गत अभिनव कार्यक्रम 'किताबें बोलतीं हैं' आयोजित किया गया। अध्यक्षता पुलक बैनर्जी ने की। अध्यक्षीय संबोधन में बैनर्जी ने कहा- साहित्य का आनंदरस पाकर मैं आत्ममुग्ध हूँ। साहित्य से श्रेष्ठ कोई रस नही होता। एक बार रसास्वादन करने के बाद साहित्यिक रुचि और जाग्रत होती है। ज्ञान मिलता है। ज्ञान, जागरूकता से ही काम सिद्ध होते हैं।
संचालन करते हुए संयोजक डॉ. विनोद नायक ने कहा- 'लमही गांव में जन्मे व उनके अभिन्न मित्र मुंशी दया नारायण निगम के दिए नाम से प्रसिद्ध हुए। आजीवन विपरीत परिस्थितियों से टकराने वाले महान लेखक प्रेमचंद ने सामाजिक विषमताओं पर करारा प्रहार किया है। गरीबों के प्रति उनके मन में विशेष सहानुभूति थी तभी तो कड़क सर्दी में गर्म सूट के लिए मिलने वाले पैसों को जो उन्हें दो बार मिले उन्होंने उन मजदूरों के बीच बांट दिये। जिनकी दो जून की रोटी पूरी नहीं हो पा रही थी।' प्रेमचंद का जीवन परिचय प्रस्तुत कर, उनकी कुछ कथाओं का विश्लेषण किया।
देवयानी बैनर्जी ने रवीन्द्रनाथ टैगोर का महाकाव्य गीतमितान से 'भारतगीत' का अंश, रुबीदास अरू ने बाधनदास तलरेजा के कहानी संग्रह 'जिन खोजा तिन पाइयां' से निगेटिव रिपोर्ट के अंश, शादाब अंजुम ने, अंजुमन आरजू के गज़ल संग्रह 'और तुम' से गज़ल के अंश, माधुरी राऊलकर ने डॉ. सागर खादीवाला के संग्रह 'हर सफ्ह, इक फलसफ़ा' के अंश, कृष्णा कपूर ने निर्मला धीर के संग्रह 'कन्या भ्रूण हत्या' के अंश, तन्हा नागपुरी ने साहिर लुधियानवी के संस्मरण के अंश, हेमलता मिश्र मानवी ने संग्रह किशोरों के विवेकानंद' व प्रेमचंद की कहानी के अंश, प्रा. आदेश जैन ने डॉ. शिवनारायण आचार्य की कहानी संग्रह से प्रार्थना कहानी के अंश व डॉ. विनोद नायक ने प्रेमचंद के कथा संग्रह से कहानी 'यही मेरा वतन है' के अंश प्रस्तुत किये। संयोजक प्रा. आदेश जैन ने आभार माना।