परसाई जी ने व्यंग्यों में मुद्दे की बात की : डॉ. उपाध्याय
लोहिया अध्ययन केंद्र, नागपुर में हरिशंकर परसाई जन्मशती समारोह-संस्मरण और व्यंग्यपाठ
नागपुर। हरिशंकर परसाई जी ने शब्दों से व्यंग्य पैदा करने की कोशिश नहीं की, बल्कि सीधे मुद्दे की बात की। बड़े-बड़े साहित्यकारों में यह माद्दा नहीं है। यह बात वरिष्ठ व्यंग्यकार-कथाकार डॉ गोविंद प्रसाद उपाध्याय ने कही।
हिंदी व्यंग्य के पुरोधा हरिशंकर परसाई जी के जन्मशती समारोह के अवसर पर उनसे जुड़े संस्मरण और उनके व्यंग्यों के पठन का आयोजन लोहिया अध्ययन केंद्र, नागपुर की ओर से लोहिया भवन के मधु लिमये स्मृति सभागृह में किया गया। इस अवसर पर बतौर मुख्य वक्ता डॉ. उपाध्याय बोल रहे थे।
अध्यक्षता केंद्र के अध्यक्ष असित सिन्हा ने की। अन्य मुख्य वक्ता वरिष्ठ व्यंग्यकार-कवि डॉ राजेंद्र पटोरिया उपस्थित थे। इस अवसर पर हरिशंकर परसाई जी के व्यंग्यों का पठन टीकाराम साहू 'आजाद', डॉ शशिकांत शर्मा, डॉ जयप्रकाश, तेजवीर सिंह, नरेंद्र परिहार व अनिल त्रिपाठी ने किया। जीवन गौरव पुरस्कार प्राप्त होने पर डॉ उपाध्याय का सत्कार किया गया।
डॉ. गोविंद प्रसाद उपाध्याय ने कहा कि परसाई जी के प्रेरणास्रोत कबीर थे, जिन्होंने सभी को धोया। कबीर की प्रेरणा से सुनो भाई साधो स्तंभ नियमित लिखते थे। वे फक्कड़ आदमी थे। सीधे-सपाट बात करते थे। परसाई जी ने कहानी के रूप में कई व्यंग्य लिखे हैं।
डॉ उपाध्याय ने एक संस्मरण सुनाया कि कैसे परसाई जी भीड़ के साथ नहीं रहते थे और चरण स्पर्श करने वाले पसंद नहीं थे। सन 1974-75 में मैं जबलपुर में अपनीे बुआ के घर रहा। एक बार मैं बुआ के लड़के के साथ परसाई जी के घर गया। घर आने का कारण पूछे जाने पर बुआ के लड़के ने बताया कि आपका दर्शन करने आए हैं, तो उन्होंने तपाक से कहा-दर्शनीय उधर रहते हैं।
उनके व्यंग्य हंसाते नहीं, आनंदित करते थे। महाराष्ट्र राज्य साहित्य अकादमी से पुरस्कृत अपना व्यंग्यसंग्रह 'बिन पेंदी का लोटा' मैंने परसाई जी को समर्पित किया है। डॉ उपाध्याय ने कहा कि व्यंग्य लिखने के लिए कलेजा चाहिए। लक्ष्य तय कर लिखने से निखार आएगा, धार बढ़ेगी।
जनसामान्य का लेखक : पटोरिया
डॉ राजेंद्र पटोरिया ने परसाई जी को जनसामान्य का लेखक बताते हुए कहा कि उनका व्यक्तित्व और कृतित्व सबसे अलग था। उन्होंने व्यंग्य विधा को स्थापित करने का प्रयास किया। वे बड़े कार्यक्रमों को मना कर देते थे, लेकिन छोटे कार्यक्रमों में जाते थे। छिंदवाड़ा में उनसे कई बार मुलाकात हुई।
परसाई जी के मित्र उन्हें स्टडी सर्कल में बुलाते थे। इसके अलावा नागपुर, जबलपुर, लखनऊ, सागर में आयोजित अनेक कार्यक्रमों में मुलाकात हुई। नागपुर आगमन पर वे मोर भवन में प्रबंधक रेवाशंकर परसाई जी से मिलने जरूर आते थे। जबलपुर में परसाई जी से मिलने के बाद ओशो से मिलने जाता था। परसाई जी कहते थे-ओशो से कहना मैंने उन्हें पाखंडी कहा है। ओशो के पास पहुंचने पर वे भी यही पूछते थे परसाई जी ने क्या कहा है।
मुस्कुरा कर कड़वी बात : सिन्हा
अध्यक्षीय वक्तव्य में असित सिन्हा ने कहा कि परसाई जी मुस्कुरा कर कड़वी बात कहते थे। सच बोलते और लिखते थे, लेकिन आज सच बोलने और लिखने से भी लोगों को डर लगता है। व्यंग्य लेखन एक क्रांतिकारी कदम है।
संस्मरण के पूर्व टीकाराम साहू 'आजाद' ने परसाई जी के व्यंग्य 'मेरी जन्मशती इस तरह ही मनाना', डॉ शशिकांत शर्मा ने 'सदाचार का तावीज', डॉ जय प्रकाश ने 'हनुमान जी अदालत में', तेजवीर सिंह ने 'प्रेमचंद के फटे जूते', नरेंद्र परिहार ने 'एक अशुद्ध बेवकूफ' तथा अनिल त्रिपाठी ने 'मुंडन' किया।
संचालन टीकाराम साहू 'आजाद' व आभार प्रदर्शन चौधरी युवराज सिंह 'राज' ने किया।
कार्यक्रम में केंद्र के महासचिव सुनील पाटील, सदस्य संतोष कुमार दुबे, वरिष्ठ व्यंग्य कवि अनिल मालोकर, राष्ट्रपत्रिका के संपादक कृष्ण नागपाल, वरिष्ठ पत्रकार अनिल वासनिक, मिलिंद कीर्ति, शायर भोला सरवर, संतोष पांडेय 'बादल', देवव्रत शाही, अशोक अग्रवाल 'अश्क', डॉ अनूप सिंह (सौंसर), पूर्णचन्द्र बाहमणिया, डॉ सपना तिवारी, विजय कुमार श्रीवास्तव, प्रकाश काशिव, नरेश निमजे, अनूपचंद जैन, रवि मोहारे, रमेश मौंदेकर सहित बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।