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देवनागरी-हिंदी मानकीकरण की प्रक्रिया चलती रहेगी : डॉ. प्रेमचंद पातंजलि


नागपुर/नई दिल्ली। भारतीय संविधान सम्मत राष्ट्र लिपि देवनागरी के बिना भारतीय भाषाओं का विकास कदापि संभव नहीं है। अतः देवनागरी-हिंदी मानकीकरण की प्रक्रिया निरंतर चलती रहेगी। इस आशय का प्रतिपादन आचार्य विनोबा भावे जी की सद्प्रेरणा से स्थापित नागरी लिपि परिषद, राजघाट, नई दिल्ली के अध्यक्ष तथा  पूर्व कुलपति डॉ प्रेमचंद पातंजली ने किया। 

नागरी लिपि परिषद, गांधी स्मारक निधि, राज घाट, नई दिल्ली (पंजीकृत) के तत्वावधान में शनिवार 29 जुलाई को 'नागरी लिपि-हिंदी मानकीकरण का वैज्ञानिक पहलू' विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय आभासी गोष्ठी में वे अपना अध्यक्षीय उद्बोधन दे रहे थे। 

डॉ प्रेमचंद पातंजलि ने आगे कहा कि, हिंदी के लेखन में सार्वदेशिक स्तर पर एकरूपता की दृष्टि से केंद्रीय हिंदी निदेशालय, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार,नई दिल्ली समय-समय पर हिंदी मानकीकरण को संशोधित रूप देता रहा है। 

मानकीकरण की यह प्रक्रिया आगे भी चलती रहेगी|  वक्ता के रूप में डॉ. उमाकांत खुबालकर, पूर्व सहायक निदेशक, वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग, शिक्षा मंत्रालय, नई दिल्ली ने नागरी लिपि परिषद की स्थापना, वर्ष और उद्देश्य तथा प्रगति पर प्रकाश डालते हुए संस्थानिक रूप से नागरी के पक्ष में गतिविधियों की भी चर्चा की। 

प्रोफेसर डॉ. वी. रा. जगन्नाथन्, प्रख्यात भाषा वैज्ञानिक और केंद्रीय हिंदी संस्थान के पूर्व प्रोफेसर ने मुख्य वक्ता के रूप में अपनी अभिव्यक्ति में कहा कि मानकीकरण की प्रक्रिया सहज व सरल होनी चाहिए। सारी भाषाएं मानकीकृत है। क्योंकि समय के साथ लिपि में परिवर्तन होता है। अतः समस्या का समाधान धैर्य पूर्वक करना चाहिए। 

मानकीकरण के लिए हिंदी के एक अधिकरण स्थापित करने की आवश्यकता उन्होंने प्रतिपादित की। डॉ. जगन्नाथन् जी ने तमिल, तेलुगू, मलयालम आदि भाषाओं और बोलियों से हिंदी-देवनागरी की तुलना करते हुए महत्वपूर्ण तथ्यों की ओर ध्यान आकृष्ट किया। 

अनुस्वार, पंचम वर्ण, अनुनासिक्य ध्वनि, संयुक्त व्यंजन के प्रयोग संबंधी भ्रांतियों का निराकरण करते हुए उन्होंने कहा कि बिना मानक स्वरूप स्थापित किए हिंदी वर्तनी और व्याकरण की सही जांच नहीं की जा सकती। उन्होंने यह भी कहा कि देवनागरी, हिंदी सहित अनेक भाषाओं की लिपि है। इसलिए हिंदी के मानकीकरण के समय समस्त भारतीय भाषाओं की ध्वनियों और विशेषताओं को ध्यान में रखना होगा। हिंदी अन्य भारतीय भाषाओं की प्रतिद्वंदी नहीं, सहचारिणी है।

नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के कार्याध्यक्ष डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे,महाराष्ट्र ने कहा कि केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली ने देवनागरी-हिंदी के मानकीकरण के निर्धारण का कार्य भाषाविदो  के सहयोग से सन् 60 के दशक में ही आरंभ किया था। देवनागरी लिपि का प्रत्येक वर्ण एक शक्तिशाली मंत्र है। विश्व की किसी भी अन्य लिपि में ऐसा नहीं है। 

हिंदी और देवनागरी के विभिन्न प्रयासों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि, अंग्रेजी की रोमन लिपि में अब तक 26 के 26  वर्ण  बने हुए हैं। जबकि नागरी लिपि में निरंतर सुधार व परिष्कार होता रहा है। उन्होंने हिंदी का रोमनीकरण होने से बचाने का अनुरोध भी किया क्योंकि देवनागरी लिपि भारतीय सभ्यता व संस्कृति की राष्ट्रीय लिपि है। 

नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के महामंत्री तथा संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार की हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य डॉ. हरिसिंह पाल ने कहा कि आजादी के पूर्व भी मानकीकरण की बात चल रही थी। मानकीकरण आज जितना आवश्यक है, उतना ही नागरी लिपि के प्रयोग बढ़ाने की भी नितांत आवश्यकता है। 

आचार्य विनोबा भावे जी दर्जन से अधिक भाषाओं के ज्ञाता थे । उन्होंने ये सभी भाषाएं नागरी लिपि के माध्यम से सीखी थीं। वर्तमान में 75 भाषाएं और 125 बोलियां नागरी लिपि में लिखी जा रही हैं  । सभी भारतीय भाषाएं सरल होने के बावजूद देश के अधिकांश भागों में अंग्रेजी माध्यम के स्कूल बड़ी संख्या में खुल रहे हैं।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 समस्त भारतीय भाषाओं और उनकी नीतियों को संरक्षण देने की बात करती है । प्रश्न-सत्र में भाषाविदों द्वारा प्रश्न कर्ताओं के प्रश्नों के बड़ी बेबाकी से उत्तर दिए गए । आभासी गोष्ठी का सफल व सुंदर नियंत्रण व संचालन डॉ मोहन बहुगुणा, राष्ट्रीय सुरक्षा बल  के कमांडर (राजभाषा) नई दिल्ली ने किया तथा श्री अरुण पासवान, कार्यालय मंत्री, नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली ने सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किए।  

इस गोष्ठी के लिए श्री सुरेश चंद्र शुक्ल, ओस्लो , नार्वे ;  डॉ. राजलक्ष्मी कृष्णन, शिकागो, अमेरिका ;  डॉ मीरा सिंह, फिलडेल्फिया ;डॉ. आरती गोयल, दुबई; उर्मिला चौधरी, शारजहा ; डॉ. रामहित यादव ; डॉ. पूर्णिमा पांडे, नवी मुंबई ; डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, छत्तीसगढ़;  प्रा. मधु भंभानी, नागपुर, महाराष्ट्र ; श्री रतिराम गढेवाल, रायपुर;  फरहत  उन्नीसा खान, विदिशा, मध्य प्रदेश ;पल्लवी पाटील, 

लातूर, महाराष्ट्र; श्री हरीराम पंसारी, भुवनेश्वर,उड़ीसा; डॉ रघुनाथ पांडे, शिलाँग ; डॉ गंगाधर वानोडे, हैदराबाद, तेलंगाना; डॉ शोभना जैन, व्यारा, गुजरात; डॉ नंदिता राजबंशी, डॉ नूरजहां रहमातुल्लाह, गुवाहाटी, असम; डॉ एम अनंत कृष्णन, चैनई, तमिलनाडु ; डॉ  दीपक पांडे, सहायक निदेशक, केंद्रीय हिंदी  निदेशालय, नई दिल्ली; डॉ दिनेश सिंह,सहायक निदेशक,(राजभाषा),गृह मंत्रालय, नई दिल्ली सहित अधिकांश विद्वानों की गरिमामयी उपस्थिति थी।
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