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सभी भाषाओं में निकटता स्थापित करने में नागरी लिपि ही सक्षम है : डॉ. राजलक्ष्मी कृष्णन्


नागपुर/पुणे। विश्व की सभी भाषाएं नागरी लिपि में लिखी जा सकती है,क्योंकि देवनागरी लिपि सरल, सुगम और वैज्ञानिक है। परिणामत: सभी भाषाओं में निकटता स्थापित करने में नागरी लिपि ही सक्षम है। इसमें लेश मात्र संदेह नहीं। इस आशय का प्रतिपादन डॉ.राजलक्ष्मी कृष्णन्, चेन्नई, प्रभारी, नागरी लिपि परिषद, तमिलनाडु ने किया। आचार्य विनोबा भावे जी की सद्प्रेरणा से स्थापित नागरी लिपि परिषद, गांधी स्मारक निधि, राज घाट, नई दिल्ली एवं अंतर्राष्ट्रीय सखी साहित्य परिवार,असम के संयुक्त तत्वावधान में रविवार 13 अगस्त को आयोजित राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी में वे अपना उद्बोधन दे रही थीं। 

डॉ राजलक्ष्मी कृष्णन् ने आगे कहा कि भारत की सभी भाषाएं महत्वपूर्ण हैं। पर जिन भाषा-बोलियों  की  कोई लिपि नहीं हैं, उनके लिए देवनागरी लिपि सर्वश्रेष्ठ है। दक्षिण की चारों भाषाएं तमिल, तेलुगू, मलयालम और कन्नड़ नागरी लिपि में आसानी से लिखी जा सकती हैं। आजकल कंप्यूटर और मोबाइल के माध्यम से भी नागरी लिपि का प्रचार-प्रसार तेजी से हो रहा है। अत: वैकल्पिक लिपि के रूप में देवनागरी को अपनाने से भारतीय भाषाओं का भविष्य उज्ज़्वल है।

संजय सिंह चंदन, अवकाश प्राप्त महाप्रबंधक-पावर प्लांट तथा राष्ट्रीय संस्थापक सामाजिक-साहित्यिक जागरुकता मंच, मुंबई ने कहा कि देवनागरी लिपि को मुगल काल से लेकर ब्रिटिश काल तक बराबरी का दर्जा मिलता रहा, कभी फारसी (उर्दू) तो कभी अंग्रेजी ने देवनागरी लिपि को दबाने की कोशिश की, लेकिन यह लिपि देवनागरी और उभरती गई। 

आज की डिजिटल दुनिया में मोबाइल, लैपटॉप और कंप्यूटर में भी देवनागरी शब्दों का प्रयोग अमेरिका ने शुरू किया है। आज हम पूरी दुनिया में धड़ल्ले से देवनागरी - हिंदी का खुल कर प्रयोग कर रहे हैं। इसका भविष्य 2050 तक पूरे विश्व में बोले, जाने, लिखे व संवाद के रूप में प्रयुक्त होगा। चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने यह भी कहा आज की युवा पीढ़ी नागरी वर्ण और शब्दों से दूर होती  जा रही  हैं। 

भारत भूषण वर्मा, असंध, करनाल, हरियाणा ने कहा कि देवनागरी लिपि भारतीय भाषाओं के संरक्षण का आधार है। नागरी लिपि में ध्वनि और वर्ण में सुंदर सामंजस्य है। विभिन्न भारतीय भाषाओं में रचा गया साहित्य देवनागरी लिपि के माध्यम से नागरी लिपि के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। 

डॉ नूरजहां रहमातुल्लाह, कॉटन विश्वविद्यालय, गुवाहाटी, असम ने अपने मंतव्य में कहा कि, देवनागरी भारतवर्ष की प्रधान लिपि है। प्राचीनतम राष्ट्रीय लिपि ब्राह्मी से समस्त आधुनिक भारतीय लिपियां विकसित हुई। आज रोमन लिपि का प्रचलन तेजी से बढ़ता जा रहा है, यहां तक कि गांवों तक रोमन लिपि धड़ल्ले के साथ पहुंच चुकी है। देवनागरी अपने लचीलेपन व उदारता के कारण भारतीय भाषाओं के मध्य समीपता और आत्मीयता स्थापित कर सकती है। क्योंकि भारतीय भाषाएँ परस्पर विरोधी कदापि नहीं है। 

मुख्य अतिथि डॉ. हरिसिंह पाल, महामंत्री, नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली ने अपनी अभिव्यक्ति में कहा कि देवनागरी लिपि ने समस्त भारतीय भाषाओं को विस्तारित किया हैं। एक समय अपनी लिपि के कारण उर्दू भाषा संकट में थी। परंतु जब से उर्दू ने नागरी लिपि का भी अंगीकार किया तब कहीं संकट का समाधान हुआ। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने की बात कही गई है। आज सभी भारतीय भाषाएं संकट से ग्रस्त हैं। 125 भाषा-बलियों के लिए प्रयोग में कार्यान्वित नागरी लिपि सभी भारतीय भाषाओं के विकास में सहायक है। 

मुख्य वक्ता तथा नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के कार्याध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारतीय जनभाषाओं की समस्या भाषाओं की है ही नहीं, यह समस्या लिपियों की है। इस समस्या का हल मात्र देवनागरी ही है। अंग्रेजी वर्चस्ववाद से निपटने के लिए भारतीय भाषाओं को एक दूसरे के निकट लाने की  परम आवश्यकता  है। सह लिपि के रूप में नागरी का प्रयोग करने से भारतीय भाषाओं की आपसी समझदारी और साझेदारी में वृद्धि होगी। 

सभी भाषाओं के बीच परस्पर सौहार्द्र और आदान-प्रदान बढ़ेगा, जिससे राष्ट्र की सामाजिक संस्कृति का विकास होगा और राष्ट्रीय भावना सुदृढ़ होगी। गोष्ठी का आरंभ डॉ संगीता पाल, कच्छ, गुजरात की सरस्वती वंदना से हुआ। गोष्ठी की संयोजिका एवं सखी साहित्य परिवार, असम की अध्यक्ष डॉ. दीपिका सुतोदिया, बरपथार, असम ने स्वागत भाषण देते हुए कहा कि, हिंदी में बात करें, हिंद का रखें मान। भाषा है अच्छी बड़ी, सब मिल बांटे ज्ञान। 

गोष्ठी का सुंदर, सफल संचालन व नियंत्रण करते हुए डॉ. मुक्ता  कान्हा कौशिक, ग्रेसियस शिक्षा महाविद्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने नागरी लिपि का महत्व प्रतिपादित करते हुए कहा कि, आओ सब मिलकर करें, नागरी लिपि का सम्मान, तभी बनेगा देश महान्।

इस आभासी गोष्ठी में प्राचार्या उपमा आर्य, दीनबंधु आर्य, लखनऊ, प्रा. लता जोशी मुंबई; श्वेता मिश्र, पुणे; राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी, उज्जैन; केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली के पूर्व उपनिदेशक डॉ. भगवती प्रसाद निदारिया, रतिराम गढेवाल, राजश्री भारद्वाज, रायपुर ; 

फरहत उन्नीसा खान, विदिशा, मध्य प्रदेश ; प्रा. मधु भंभानी, नागपुर, महाराष्ट्र; जयवीर सिंह, पुणे; पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी, मेघालय, शिलांग के निदेशक डॉ. रघुनाथ पांडेय, डॉ मोहन बहुगुणा, नई दिल्ली; डॉ सैफुल इस्लाम, असम; डॉ. अब्दुल वहाब  शेख, कोपरगांव, महाराष्ट्र ; डॉ अनंत कृष्णन, चेन्नई सहित अनेक मान्यवर उपस्थित रहे। श्रीमती अपराजिता शर्मा, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने सभी के प्रति हार्दिक आभार प्रकट किए।
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