प्रेमचंद भारतीय समाज के प्रहरी थे : प्रो. सोमा बंदोपाध्याय
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नागपुर। प्रेमचंद अपने समय के सर्वाधिक साहसी और संवेदनशील रचनाकार थे। उन्होंने समाज की ऐसी विद्रूपताओं को उजागर किया जिनसे न सिर्फ समाज त्रस्त था बल्कि उन्हें बचाए -बनाए रखने के लिए कृत- संकल्पित था। स्त्री जाति से जुड़ी समस्या भी एक ऐसी ही समस्या रही है, प्रेमचंद जिसे देखने की एक नई दृष्टि देते हैं। वे वास्तव में समाज के प्रहरी थे। उक्त विचार बाबा साहब अंबेडकर शिक्षा विश्वविद्यालय, कोलकाता की कुलपति प्रो. सोमा बंदोपाध्याय ने व्यक्त किए। वे हिन्दी विभाग, राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा प्रेमचंद जयंती के प्रसंग पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रही थी।
कार्यक्रम का विषय था - प्रेमचंद: आज के संदर्भ में। प्रो. सोमा ने प्रेमचंद के साहित्य में चित्रित स्त्री के विविध संदर्भों का हवाला देते हुए कहा कि आज के स्त्री विमर्श को प्रेमचंद का लेखन संबल प्रदान करता है। उन्होंने स्त्री जीवन के कमोवेश समस्त पक्षों को न केवल रेखांकित किया बल्कि एक सशक्त पैरोकार के रूप में समाज में उसकी भूमिका को भी अंकित किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज पाण्डेय ने कहा कि प्रेमचंद भारतीय साहित्य के एक ऐसे हस्ताक्षर थे, जिनके लिए लिखना शगल नहीं, बल्कि जिम्मेदारी का एहसास था। उन्होंने भारतीय समाज की समस्याओं को सिर्फ अनावृत्त नहीं किया वरन् उनके सार्थक समाधान की भूमि भी तैयार करने की पहल की।
धन्यवाद ज्ञापित करते हुए विभाग के सहयोगी प्राध्यापक डॉ. संतोष गिरहे ने कहा कि प्रेमचंद हिन्दी के ऐसे रचनाकार थे जिनका महत्व चिरकाल तक बना रहेगा। संचालन डॉ. सुमित सिंह ने किया। इस अवसर पर डॉ. कुंजन लाल लिल्हारे, डॉ. एकादशी जैतवार, प्रा. जागृति सिंह, आयकर विभाग, नागपुर के सहायक निदेशक श्री अनिल त्रिपाठी, डॉ. नीलम विरानी सहित अनेक शोधार्थी, विद्यार्थी जुड़े। कार्यक्रम ब्लैंडेड मोड (आनलाइन+आफलाइन) पर आयोजित था।