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युवा पीढ़ी को सफलता के पारंपरिक तरीकों में ही अभ्यस्त करने की आवश्यकता


कुछ दिन पहले फेसबुक फीड में एक भाई साहब साजिद खान इब्राहिमी  ने पोस्ट किया था
'मैने जिन्दगी का एक हिस्सा इतने कठिन परिश्रम का भी जिया है जब रात को बिस्तर पे लेटता था तो हड्डियां चस-चस किया करती थी, नींद आने की बजाय दर्द से उल्टा नींद भाग जाया करती थी ! रील्स वाले नवजवानों तुम क्या जानों परिश्रम...!
आज जिन्दगी के एक झरोखें में झांक कर देखा तो..' जब मैंने उपरोक्त वक्तव्य को पढ़ा तो मेरे अन्दर एक गहन मंथन होने लगा, हालांकि मैंने अपने पिता, भाईयों, पति, मेरे कुछ करीबी मित्रों की जिंदगी के संघर्षों को करीब से देखा है कि खुद को एक अच्छे मुकाम पर खड़ा करने में कितनी मेहनत, लगन, त्याग, तपस्या लगती है। 

घर की अर्थिक हालत को देखते हुए, अनेकों  विकल्पों में से खुद की हैसियत के मुताबिक समझौता करते हुए उस समझौते के साथ चुने गए विकल्प में ही अपना सर्वश्रेष्ठ करना पड़ता है तब कामयाबी मिलने की खुशी भी कई गुना अधिक होती है। मेरे एक मार्गदर्शक हैं जिन्हें मैंने पूरे शरीर में कई तकलीफों के साथ काम पर जाते  देखा है, जो किसी भी साधारण इंसान की रूह को हिला कर दे, अनजान को भी फिक्र में डाल दे।

लेकिन आज की युवा पीढ़ी अपने कम्फर्ट जोन से बाहर ही नहीं आना चाहती। वे मेहनत से ऐसे कतराते हैं जैसे जिंदगी में हर चरण बस एकदम आरामदायक हो। माता-पिता अपने छोटे परिवार के एक दो बच्चों के लिए भरपूर धन अर्जित करते हैं ताकि उनके बच्चे अगर मेहनत नहीं कर सके तब भी उनके पसंद के क्षेत्रों में उन्हें आगे बढ़ाया जा सके, पर ये कोशिश नहीं करते कि बच्चों को कम्फर्ट जोन से बाहर निकालने के लिए प्रोत्साहित किया जाए, उनके रास्तों को इतना भी सरल न बनाया जाए कि वे बस हर चीज़ को सरलता से पाने के आदी हो जाएँ। 

पूर्व राष्ट्रपति मिसाइल मैन भारत रत्न डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम जो बेहद गरीब परिवार से आने के बावजूद भी हालातों से लड़ते हुए अपनी पढ़ाई पूरी किए और बाद में जाकर महान वैज्ञानिक बनें और भारत के राष्ट्रपति भी बने। वे कहते थे "सपने वो नहीं है जो आप नींद में देखे, सपने वो है जो आपको नींद ही नहीं आने दे। महान सपने देखने वालों के महान सपने हमेशा पूरे होते हैं।" मैंने उनके इस कोट को आत्मसात करते कुछ लोगों को प्रत्यक्ष देखा है और मैं खुद भी अपने ध्येय के लिए सतत प्रवाहमय रहते हुए बरसों हो गए 24 घंटों में 8 घंटे नहीं सोयी। पर आज की पीढ़ी मेहनत से भागता  है उसे हर चीज फास्ट चाहिए, बिना मेहनत के चाहिए जैसे आजकल घिनौने रील्स से पैसे कमा रहे लोग। वे टेक्नोलॉजी का दुरूपयोग कर रहे हैं, उनमें नकारात्मक प्रतिस्पर्धा की भावना है, असंतोष है, परिश्रम से भागते हैं। 

देश के राजनीतिज्ञ व प्रमुख पदाधिकारी निज स्वार्थ से ऊपर उठकर देश के विकास की ओर ध्यान केंद्रित कर सुदृढ़ नीतियां बनाने में असमर्थ रहे औऱ देश के युवा जो कल का भारत हैं वे बुरी आदतों में लिप्त हैं, विवेक की कमी, कुंठा से ग्रसित हैं, और कुछ भी जो उन्हें सबसे सरल लगता है कूद पाते हैं। चाहे क्राइम ही क्यों न करना पड़े। हत्याएं, लूटमार, आगजनी, चोरी आदि घटनाओं में वृद्धि हो रही है। ये समस्त गतिविधियां युवा वर्ग की अपरिपक्वता का प्रमाण है जो देश के लिए चिंताजनक है। अतः अभिभावकों को दूरदर्शिता के साथ अपने संतानों की परवरिश करते हुए, उनमें सफलता के पारंपरिक तरीकों में ही अभ्यस्त करने की आवश्यकता है। जय हिंद जय भारत

- शशि दीप
विचारक/ द्विभाषी लेखिका
मुंबई. shashidip2001@gmail.com

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