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रक्षाबंधन की पवित्रता को लगा सोशल मीडिया का ग्रहण!


30 अगस्त रक्षाबंधन के इस पावन दिन पर पता नहीं लोगों के मन में एक विचित्र नकारात्मक ऊर्जा भर दी गई कि आज का पूरा दिन अशुभ है, भद्रा नक्षत्र चल रहा है। जब चन्द्रमा कर्क, सहित, कुम्भ या मीन राशि में होता है तब भद्रा का वास पृथ्वी पर होता है। भद्रा स्‍वभाव से बहुत ही कठोर और उद्दंडी थी  इसलिए ब्रह्माजी ने उन्हें शाप दिया था कि जो भी भद्रा काल में कोई शुभ कार्य करेगा, उसे मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा और उसके अशुभ परिणाम प्राप्‍त होंगे। इसलिए कोई भी शुभ कार्य इस मुहूर्त के दरम्यान सम्पन्न नहीं किया जा सकता। और यह बात आज जंगल में आग की तरह फैल चुकी है। पौराणिक कथाओं में यह भी कहा गया है कि रावण के समूचे कुल के नाश के पीछे भद्रा ही वजह थीं। कथाओं के अनुसार बताया गया है कि रावण की बहन सूर्पनखा ने भद्रा काल में भाई रावण को राखी बांधी थी जो कि उसके विनाश का कारण बना। कहते हैं कि इसी के बाद से एक-एक करके रावण सहित उसके पूरे कुल का नाश हो गया। आज रक्षाबंधन के इस पावन दिन पर मुहूर्त की इतनी चर्चा है कि राखी पर्व की मूल भावना ही धूमिल हो गयी है। इसी संबंध में एक दिलचस्प वाक्या हुआ आज मेरे प्रिय छोटे भाई का फोन आया मैंने पूछा "राखी तो बांध लिए होगे? फोटो नहीं भेजे अब तक?" वे हंसने लगे "अरे! घर में अभी राखी का कोई माहौल नहीं सभी मुहूर्त में बांधने की कह रहे हैं। मैं तो बांधने के लिए तैयार हूं क्योंकि मुझे कोई ऐतराज नहीं आखिर रावण जैसा भाई बनना कोई मामूली बात नहीं वह तो बहन की रक्षा की खातिर भगवान से ही भीड़ गए।" इस बात पर दोनों ठहाके मारके खूब हंसे और त्योहार की खुशी साझा किए। अब अगर सकारात्मक दृष्टिकोण से सोचे तो मेरे भाई ने कुछ गलत नहीं कहा। खैर मानने वाले मानें मैं व्यक्तिगत तौर पर ऐसी रूढ़िवादी विचारधारा की पक्षधर नहीं हूं क्योंकि जब सोशल मीडिया नहीं था तब हमारे मन में ऐसे बेकार के विचार आते ही नहीं थे और न हम ऐसी धारणाओं पर खास विश्लेषण करते थे। जब भाई घर पर आ गए तभी रक्षाबंधन मन जाता है। इस पवित्र बंधन की पवित्रता राखी बांधने के मुहूर्त जैसी सूक्ष्म बातों से प्रभावित हो ही नहीं सकती। मान्यता के अनुसार भी सोचे तो राखी का चलन द्वापर युग से भगवान कृष्ण से शुरू हुआ। रावण सूर्पनखा तो त्रेता युग के थे और क्या सूर्पनखा ने भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास दौरान क्या एक ही बार राखी बांधी होगी? नहीं इसलिए ऐसी बातों में कोई दम नहीं। मन चंगा तो कठौती में गंगा। रक्षाबंधन भाई-बहन के अटूट स्नेह का प्रतीक माना जाता है और उस पवित्र बंधन को सशक्त बनाये रखने के लिए प्रति वर्ष संकल्प पर्व के रूप में पूर्ण श्रद्धा भाव के साथ मनाया जाता है। वास्तव में आध्यात्मिक दृष्टिकोण से यह पर्व वसुधैव कुटुम्बकम व विश्व बंधुत्व की प्रेरणा का संदेश लेकर आता है। पारिवारिक स्तर में प्रेम प्रगाढ़ होने से अच्छा समाज निर्मित होता है और अच्छा समाज एक अच्छा राष्ट्र व विश्व में शांति व सद्भावना स्थापित करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका -निभाते हैं। आजकल न्यूक्लियर फैमिली कल्चर होने के कारण व लिंग समानता को ध्यान में रखते हुए सिर्फ बहन भाई को राखी बांधे ऐसा कोई जरूरी नहीं है, उस रूढ़िवादी मान्यता में आंशिक बदलाव लाते हुए आज दो बहनें भी एक दूसरे को रक्षा सूत्र बांधती हैं, बहने भाभियों को भी लुम्बा बांधती हैं जिसमें मूल भाव भाई-बहनों के बीच प्यार व बंधन में प्रगाढ़ता सुनिश्चित करना व रिश्तों की पवित्रता की रक्षा करने का संकल्प करना है। इन्हीं सकारात्मक भावनाओं के साथ आज व प्रतिदिन अपने सभी भाईयों के लिए  ईश्वर के प्रति अनंत कृतज्ञता अर्पित करती हूँ। मैं किसी को भी भाई या भैया पुकारते हुए इस शब्द को सिर्फ एक औपचारिक बोलचाल में हल्के रूप में न लेते हुए सच्चे भाव से उसकी गरिमा पर जोर देने का स्वसंकल्प धारण करती हूँ व संपूर्ण मानव समाज को भी इस दिव्य भाव का सम्मान बनाये रखने की गुजारिश करती हूँ। इस तरह इन महत्वपूर्ण त्योहारों में निहित सार को आत्मसात करके न केवल परम्पराओं का सम्मान किया जाना चाहिए अपितु व्यक्तिगत उन्नयन के साथ-साथ वृहद दृष्टिकोण से सार्वभौमिक हितकारिता का चिंतन भी किया जाना चाहिए।

रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं!
जय हिंद जय भारत जय ब्रह्मांड

- शशि दीप
विचारक/ द्विभाषी लेखिका, मुंबई
shashidip2001@gmail.com

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