Loading...

पौराणिक चरित्रों पर व्यंग्य चुनौतीपूर्ण है : सुधीर कुमार चौधरी


व्यंग्यधारा समूह की 158वीं ऑनलाइन वीडियो एकल व्यंग्य रचना पाठ गोष्ठी

नागपुर। पौराणिक चरित्रों पर व्यंग्य चुनौतीपूर्ण है।यह उद्बबोधन सुधीर कुमार चौधरी ने व्यंग्यधारा समूह की ओर से 158वीं ऑनलाइन वीडियो एकल व्यंग्य रचना पाठ गोष्ठी में व्यक्त  किया । 

इसमें श्री मनमोहन सिंह यादव (बीकानेर) ने अपनी तीन व्यंग्य रचनाओं का पाठ किया। अतिथि वक्ता व्यंग्यकार परवेश जैन (लखनऊ), व्यंग्यकार सिलविया डिक्रूजा (आसनसोल), वरिष्ठ व्यंग्यकार सुधीर कुमार चौधरी (इंदौर) ने श्री मनमोहन सिंह यादव की तीन व्यंग्य रचनाओं 'आवारावर्गीय कुत्ते का अवसान', 'कर्महीन संवेदना का तांडव' और 'स्वर्गलोक का नवीनीकरण' की समीक्षा की।

वरिष्ठ व्यंग्यकार सुधीर कुमार चौधरी (इंदौर)) ने 'स्वर्गलोक का नवीनीकरण' व्यंग्य पर दृष्टिपात करते हुए आगे कहते हैं कि पौराणिक चरित्रों पर व्यंग्य-लेखन चुनौतीपूर्ण है। व्यंग्य की भाषा गंभीर और प्रभावपूर्ण है। राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था पर चुटकी ली गई है, लेकिन व्यंग्य की तीखी धार का अभाव है।

गोष्ठी की शुरुआत करते हुए अतिथि वक्ता-व्यंग्यकार परवेश जैन (लखनऊ) ने 'आवारावर्गीय कुत्ते का अवसान' व्यंग्य की समीक्षा करते हुए कहा कि इस व्यंग्य में और विस्तार तथा ट्विस्ट की जरूरत है। शब्द सीमा से ऊपर उठने पर रचना और प्रभावशाली बनेगी। व्यंग्य की विषय वस्तु प्रभावी और रचनात्मक है।

गोष्ठी के आरंभ में भूमिका रखते हुए वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री रमेश सैनी (जबलपुर) ने छोटे व्यंग्य लेखन पर चिंता जताते हुए कहा कि रचना को बोनसाई न बनने दें। उन्होंने कहा कि व्यंग्य में कोई चीज वर्जित नहीं है। विसंगतियों से ही व्यंग्य उभरता है।

व्यंग्यकार सिल्विया डिक्रूजा (आसनसोल) ने 'कर्महीन संवेदना का तांडव व्यंग्य की पड़ताल की। उन्होंने कहा कि व्यंग्य कहीं हल्का और कहीं प्रभावशाली है। समाज की विसंगतियों पर प्रहार करने में सफल है। हमारी संवेदनशीलता को रेखांकित किया है।
डा. वेद प्रकाश भारद्वाज (गाजियाबाद)) ने कहा कि सिर्फ विवरण या कथात्मक शैली से व्यंग्य नहीं बनता, व्यंग्य तत्व भी जरूरी है।

वरिष्ठ व्यंग्यकार राजेंद्र वर्मा (लखनऊ) ने कहा कि रचना में व्यंग्य बहुत कम है। भाषा का उठान अच्छा है। व्यवस्था के सरोकार की कमी है। सरकार पोषित पाखंड पर प्रहार जरूरी है।
वरिष्ठ व्यंग्यकार डॉ. सेवाराम त्रिपाठी (रीवा) ने कहा कि व्यंग्य को किसी सीमा रेखा में नहीं बांधा जाना चाहिए। व्यंग्यकार जो समाज में देखता है उसे लिखता है। वह इतिहास और वेद से भी आएगा। 

युवा व्यंग्यकार भंवरलाल जाट (नागौर) ने कहा कि श्री यादव जी के व्यंग्यों की एक-एक पंक्ति में तंज है। प्रस्तुतिकरण लाजवाब रहा।  व्यंग्यकार डॉ. किशोर अग्रवाल (रायपुर)) ने कहा कि विसंगतियों पर प्रहार करें, लेकिन आस्था आहत न हो इसका ध्यान रखा जाना चाहिए। शब्द और भाषा संयमित हो।

गोष्ठी का संचालन श्री रमेश सैनी ने किया। संचालन सहभागिता प्रखर व्यंग्य समालोचक डॉ. रमेश तिवारी (दिल्ली) और व्यंग्यकार अभिजित कुमार दुबे (दुर्गापुर) की रही। आभार टीकाराम साहू 'आजाद' ने माना।

गोष्ठी में सर्वश्री डॉ ब्रजेश त्रिपाठी, शांतिलाल जैन, विवेक रंजन श्रीवास्तव, रामस्वरूप दीक्षित, हनुमान प्रसाद मिश्र, गौरव सक्सेना, ललिता जोशी मीनाक्षी विवेक रंजन श्रीवास्तव लोकेश मुंडेल आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
व्यंग 4144677212438251187
मुख्यपृष्ठ item

ADS

Popular Posts

Random Posts

3/random/post-list

Flickr Photo

3/Sports/post-list