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भारतीय संस्कृति के अस्तित्व के लिए अपनी भाषाएँ व बोलियों को रखें जीवित : डॉ. हरिसिंह पाल



नागपुर/विशाखापट्टनम। प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति 'वसुधैव कुटुंबकम' की रही है। अतः भारतीय संस्कृति के अस्तित्व के लिए अपनी भाषाओं व बोलियों को जीवित रखना बहुत जरूरी है। इस आशय का प्रतिपादन नागरी लिपि परिषद, गांधी स्मारक निधि, राजघाट, नई दिल्ली के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल ने किया। नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति (उपक्रम), विशाखापट्टनम एवं नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली द्वारा ‘नागरी लिपि  विवेचन : भारतीय भाषाओं का विकास’ पर आयोजित द्विदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के चतुर्थ सत्र में वे अध्यक्षीय उद्बोधन दे रहे थे। डॉ. हरिसिंह पाल ने आगे कहा कि पूर्वोत्तर की 9 भाषाओं ने नागरी लिपि को स्वीकार किया है। 

भारतीय भाषाओं के विकास में नागरी लिपि महनीय भूमिका निभा सकती है। अपनी भाषाओं का साहित्य अपनी लिपि में लिखें,  लेकिन लेखन जरूरी है। वक्ता श्री प्रभाकर मनोहर दिवेचा, उप महाप्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी), राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड, विशाखापट्टनम, आंध्रप्रदेश ने 'यूनिकोड का विकास एवं उसकी उपयोगिता' विषय पर अपने मंतव्य में कहा कि यूनिकोड से 9 भाषाओं में लिखा जा सकता है। 

भाषा की लिपि नहीं है, तो भाषा को समाप्त होने में समय नहीं लगेगा।  यूनिकोड प्रत्येक अक्षर के लिए एक विशेष नंबर प्रदान करता है। उन्होंने यूनिकोड के निर्माण का इतिहास, विश्व स्तर पर उसके लिए किए गए कार्यों, वैज्ञानिकों के प्रयासों, कोडिंग प्रणाली आदि से लेकर उसके वर्तमान स्वरूप और भारत की अन्य भाषाओं में उसके उपयोग करने का तरीका तथा भविष्य में हो रहे बदलाव के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी। 

तत्पश्चात श्री गोपाल, प्रशासन सहायक (राजभाषा),  राष्ट्रीय इस्पात  निगम लिमिटेड, विशाखापट्टनम ने  'प्रादेशिक लिपियाँ एवं हिंदी के विकास में उनका योगदान'  विषय पर अपने उद्बोधन में कहा कि भाषा और लिपि का निर्माण मनुष्य द्वारा अपनी सुविधाओं के विस्तार हेतु किया गया है। इसमें किसी ईश्वरीय शक्ति का योगदान नहीं है। भारत की सबसे पुरानी लिपि सुमेर पर्वत के लेख से प्राप्त हुई है । सुमेरी लिपि का जन्म लगभग 6000 वर्ष पहले का है। 

फिर भी ब्राह्मी लिपि (प्राचीन धम्म लिपि) ने अपना अस्तित्व बनाए रखा, जो भारत की लगभग सभी भाषाओं में मौजूद है। वास्तव में लेखन का आरंभ चित्र लिपि से हुआ है। अशोक के शासनकाल में ब्राह्मी लिपि की वर्णमाला तैयार हो चुकी थी। नागरी लिपि में आज 125 भाषाएं और बोलियां लिखी जाती हैं। श्री एस.अनंत कृष्णन, चेन्नई,  तमिलनाडु ने तमिलनाडु में हिंदी और नागरी लिपि की स्थिति पर प्रकाश डाला। 

श्री हरिराम पंसारी, राजभाषा अधिकारी (सेवानिवृत्त) नालको, भुवनेश्वर, उड़ीसा ने यूनिकोड और अन्य सॉफ्टवेयरों के बारे में जानकारी दी, जो हिंदी के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। श्री रिजवान पाशा, वरिष्ठ प्रबंधक (राजभाषा), एच.पी.सी.एल ने कहा कि भाषा मात्र भाषा नहीं होती, बल्कि एक स्वाभिमान होता है। हिंदी भाषा किसी भी अन्य भाषा के शब्दों को ज्यों का त्यों आत्मसात कर सकती है। 

जब तक हम अपनी मानसिकता को बदलेंगे नहीं, तब तक हिंदी में काम नहीं कर सकेंगे। इस अवसर पर श्री ललन कुमार, महाप्रबंधक, (राजभाषा) व प्रशासन प्रभारी, राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड, विशाखापट्टनम ने एक सत्र की अध्यक्षता की। खुला मंच की अध्यक्षता प्रो. पूर्ण सिंह डबास, पूर्व आचार्य,  बीजिंग विश्वविद्यालय,  चीन ने की। 

डॉ. श्वेता रानी, दिल्ली पब्लिक स्कूल, उक्कूनगरम, विशाखापट्टनम एवं श्रीमती अपराजिता शर्मा, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने अपने विचार व्यक्त किए। श्री मोहन द्विवेदी, सेवानिवृत्त अभियंता व कवि, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश ने अपने काव्य पाठ में कहा कि, ललुआ इंटर पास हो गया, पूरा गांव उदास हो गया,  बकरी कौन चरायेगा ? 

आभासी पटल से डॉ. राजलक्ष्मी कृष्णन, चेन्नई, तमिलनाडु (वर्तमान में शिकागो, अमेरिका) ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए। समापन समारोह में नागरी लिपि परिषद नई दिल्ली के कार्याध्यक्ष डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने कहा कि वर्तमान में हिंदी तो खूब बोली जा रही है, लेकिन लिखी कम जा रही है। तात्पर्य है कि हम अपनी भाषा का प्रयोग तो कर रहे हैं, परंतु लेखन में रोमन लिपि का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। 

हस्ताक्षर में भी अंग्रेजी की रोमन लिपि का प्रयोग खेदजनक है। सोशल मीडिया में भाषा हमारी होती है, परंतु लिपि रोमन होती है। इस प्रकार का व्यवहार हमारी भाषा, लिपि और संस्कृति के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। डॉ.जे. के. एन. नाथन सहायक (राजभाषा), राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड, विशाखापट्टनम ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किये।
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