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चंदू नाई और सीमा-पार की सीमा


'चंदू नाई' मेरे दैनंदिनी का जैसे एक हिस्सा सा हो गया है। बरसों से हर महीने पहले इतवार को चंदू नाई के केश-कर्तनालय जाना मेरी आदत सी बन गई है। चंदू भी इतवार सुबह 9 बजे अपने दुकान की एक सीट मेरे लिए बिन कहे खाली रखता है। 

चंदू को कटिंग आती हो या न आती हो, वह देश दुनिया की हर एक खबर रखता था।  एक साल पहले उसने भविष्यवाणी की, "देखियो डाक्स्साब,  रसिया उइक्रेन को एक हप्ता मां निपटावेगा, आखिर वो होवे बहुत तागदवार, दस बारा मसाईल ठोक देगा, फिर का, ससुरा उइक्रेन घुटने पे। भला कोई चिंटी हाथी को मार सके का ? "
वही चंदू एक बरस बाद कहने लगा, "मान गवो उइक्रेन को , रसिया को नाक मां दम करी दियो। इत्ता छोटू सा उइक्रेन, कैसा दांव लगाईयो,  रसिया तो चारों ओर चित्त। जल भी पीवन को ना मिले बा । आपको का लागे डाक्स्साब?"

एक इतवार जब मैं केश कर्तन के लिए नहीं पहुंचा,  वह मेरे दवाखाने में हाज़िर हो गया।
"डाक्साब, आज आप काहे न आयो केश कापने?"
"नहीं चंदू, आज एक एमर्जेंसी में मरीज आ गया।" मैंने कहा।
तमाकू से रंगीन हुए अपने काले-पीले दांतों को भींचते हुए उसने कहा "वोई तो मैं  सोच रिया था कि डाक्साब काहे ना आवे ? कहीं डागदर बाबू अपन खुद बिमार ना पड़ी गयो!" ये कह कर चंदू ने ठहाका लगाया,  फिर कहा "मास्साब, बच्चालोग ठीक है ना।" 
सबका कुशलक्षेम पूछ कर वह चलता बना।

इस इतवार जब उसके केश कर्तनालय गया, तो मुझे कोई अलग ही चंदू मिला, बात-बात पर ठहाका लगाने वाला चंदू बिल्कुल चुप मुंह लटकाए हुए था। परेशानी उसके चेहरे पे साफ नजर आ रही थी ।
"क्या हुआ चंदू, चेहरे पे हवाईयां क्यों उड़ रही है आज, न हंसी, न कहानी, ना पॉलिटिक्स की बातें!"

चंदू नाई बोला, "कछू ना पूछीयो डाक्स्साब, घरमां घमासान होई गवा,  लुगाई ने खाना नहीं ना बनाया और तो और, बच्चालोग भी स्कूल ना गयो। अब का करिबा?"

संक्षेप में कहें तो चंदू की बीबी ने नाराज हो कर रसोई नहीं बनाया और बच्चों ने स्कूल जाना बंद कर दिया। और इधर चंदू मुँह लटकाए कटिंग किये जा रहा था।

मुझे डर हुआ,  कहीं चंदू अपनी कैंची उल्टा पुल्टा न चला दे। 
मैंने पूछ लिया "लेकिन हुआ क्या चंदू, तेरी औरत ने खाना क्यूँ नहीं बनाया?"
"इ सब वो डायन सीमा के वास्ते,  साहिब।"
"सीमा! कौन सीमा?" मेरी उत्सुकता बढ़ी।
"वो ई, पाकिस्तान वाली!"
अब बात धीरे धीरे मेरे पल्ले पड़ी। चंदू नाई  पाकिस्तान की सीमा हैदर की बात कर रहा था।  हाल ही में  सीमा-पार की सीमा हिंदोस्तान के सचिन के प्रेम में झूलकर अपने चार बच्चों के साथ नेपाल के रास्ते भारत आ गई। और तो और,  धरम बदलकर सचिन से विवाह भी कर लिया।

उतना तो फिर भी ठीक था, लेकिन इधर इंडिया वाले भला क्यों पीछे रहे! दो बच्चों की मां इंडिया की अंजू ने इधर गुल खिलाया। फेसबुक पे प्यार में पागल होकर वह पाकिस्तान के नसरूल्ला को दिल दे बैठी। और अपने  पतिदेव और दो बच्चों को छोड़ पाकिस्तान चली गई, धरम बदल लिया, निकाह कर लिया।

"सीमा से तेरा वास्ता क्या है चंदू?"
"कछू नाही साब। हमका डर लागे है। हमारी इक ही लुगिया साहिब, वो भी गई, तो लुटिया डूब जावे है।"
"क्यूं जावेगी?" 
"का जानत साब।
हमारी लुगिया रोज के रोज फोन लेकर बैठी रहे,  कल देखन मा आवै कि वो फेस बुक देखत है।"
"तेरी बीबी फेस बुक देखती है तो क्या हुआ चंदू ?"
"ओ ही तो लफड़ा है साहिब। फेस बुक देखी-देखी वो पाकिस्तान वाली सीमा इ पार आई गई, चार बच्चुओं का साथ मां।
"तो क्या हुआ?" 
"और उधर अपना देस की अंजू अपना आदमी और दो बच्चु छोड़ी के लाहौर चली गई बा। इ कलमुंई फेसबुक देख के"
"तो क्या हुआ?" मैंने पूछा।
"का हुआ!  गर हमरी लुगाई भी हमका छोड़के पाकिस्तान जा बसे, तो हमरा का होईबा?"

'हां,  सो तो है।' बात मेरे समझ में आने लगी।
'तो इसलिए हम अपनी लुगाई के फोन छिन लई,  फोन होए तो फेसबुक, फोन ना होवे तो काहे का फेसबुक! कछू दिन नाराज होई बा, फिर बात बन जई है, किंतु  हमका छोड़ पाकिस्तान तो नहीं ना जईबे हमरी लुगाई!'
भोले भाले चंदू ने जवाब दिया।

- डॉ. शिवनारायण आचार्य
नागपुर (महाराष्ट्र)
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