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महावीरप्रसाद द्विवेदी ने हिंदी गद्य का संस्कार, परिष्कार व परिमार्जन किया : प्रा. सोनाली हरदास



नागपुर/पुणे। हिंदी कविता को रीतिकालीन प्रवृत्तियों से पूर्णत: मुक्त कर उसे आधुनिक कालीन प्रवृत्तियों से जोड़ने का श्रेय आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी को दिया जाता है। उन्होंने हिंदी गद्य का संस्कार, परिष्कार व परिमार्जन किया। इस आशय का प्रतिपादन श्री साईं बाबा महाविद्यालय, शिरडी, अहमदनगर, महाराष्ट्र की हिंदी विभाग की अध्यक्षा प्रा. सोनाली रामदास हरदास ने किया। 

विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के तत्वावधान में 'द्विवेदी युग: प्र मुख कवि एवं परिचय' विषय पर आयोजित 161 वीं (29) राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी शुक्रवार, 30 जून में वक्ता के रूप में वे अपना उद्बोधन दे रही थीं। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे,महाराष्ट्र ने गोष्ठी की अध्यक्षता की। 

प्रा. सोनाली हरदास ने आगे कहा कि महावीर प्रसाद द्विवेदी ने कविता को जड़ता से प्रगति  और  रूढ़िवादिता से स्वच्छंदता की ओर उन्मुख किया। 'सरस्वती पत्रिका' के रूप में द्विवेदी जी ने हिंदी साहित्य जगत को अनेक रूपों से प्रभावित किया। उन्होंने 'सरस्वती पत्रिका' का कार्य सन् 1903 ई. में संभाला था तथा वे 1920 ई. तक अनवरत रूप से इससे जुड़े रहे।  

इस दीर्घकालावधि में उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए। द्विवेदी जी ने लेखकों को उनकी कमियों से अवगत कराया। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रेरणा से मैथिलीशरण गुप्त, गोपाल शरण सिंह, अयोध्या सिंह उपाध्याय "हरिऔध", रामनरेश त्रिपाठी जैसे कवि द्विवेदी जी के आदर्शों को लेकर आगे बढ़े। 

प्रा. शशि मुरलीधर निघोजकर, अवकाश प्राप्त हिन्दी प्राध्यापक, सर परशुरामभाऊ कॉलेज, पुणे, महाराष्ट्र ने अपने मंतव्य में कहा कि द्विवेदी युग का आरंभ खड़ीबोली हिंदी के परिष्करण से हुआ। द्विवेदी जी ने अपने समय के कवियों का ध्यान आदर्शवाद, नैतिकता, राष्ट्रभक्ति, उपेक्षित नारी पात्रों की वेदना की अभिव्यक्ति, खड़ी बोली को अभिव्यक्ति का माध्यम बनाना जैसे मुद्दों की ओर केंद्रित किया। 

गोष्ठी के आरंभ में विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के सचिव डॉ.गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी ने विषय की प्रस्तावना में कहा कि द्विवेदी युग की सबसे प्रमुख प्रवृत्ति राष्ट्रीयता है। इसमें राजनीतिक चेतना और सांस्कृतिक पुनरुत्थान का व्यापक प्रभाव मिलता है। 

इस युग के कवियों ने अपनी कविताओं में देश भक्ति पर विशेष बल दिया। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज,  उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ.शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने अपने अध्यक्षीय समापन में कहा कि द्विवेदी युग को जागरण सुधार काल भी कहते हैं। 

हिंदी कविता इस युग में श्रृंगार से राष्ट्रीयता की ओर मुड़ी। द्विवेदी युग से पूर्व कविता में श्रृंगार और देशभक्ति दोनों की भावनाएं प्रभावित हो रही थी। इस युग में महावीर प्रसाद द्विवेदी प्रमुख स्तंभ बनकर उभर कर आए। उन्होंने सभी काव्य रूपों को अपनाने, गद्य और पद्य की भाषाओं में समन्वय स्थापित करना तथा विविध शिल्प अपनाने पर विशेष बल दिया।

द्विवेदी युग में सामाजिक कुरीतियों का विरोध भी किया गया। इस युग का काव्य मानवतावादी दृष्टिकोण से संपन्न है। प्रिय प्रवास, साकेत, जयद्रथ वध जैसे काव्य ग्रंथ इस युग में रचे गए। काव्य के इतिहास की दृष्टि से द्विवेदी युग का अपना एक विशिष्ट योगदान है।

गोष्ठी का आरंभ श्रीमती रश्मि लहर, लखनऊ द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ। प्रा. रोहिणी डावरे, अकोले, महाराष्ट्र ने स्वागत भाषण दिया। गोष्ठी का संयोजन श्रीमती पुष्पलता श्रीवास्तव 'शैली', रायबरेली, उत्तर प्रदेश ने किया। 

गोष्ठी का सुंदर व सफल संचालन डॉ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश ने किया तथा डॉ. सरस्वती वर्मा ने आभार ज्ञापन किया। उक्त आभासी गोष्ठी में डॉ. शहनाज अहमद शेख, नांदेड़, प्रा. मधु भंभानी, नागपुर; प्राचार्या डॉ. नजमा बानू मलेक, नवसारी, गुजरात; रतिराम गदेवाल, रायपुर सहित अनेक गणमान्य महानुभावों की गरिमामय उपस्थिति थीं।
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