दो और दो पांच
https://www.zeromilepress.com/2023/07/blog-post_44.html
फिर क्या था, चमचों ने कहा, 'वाह, वाह, क्या लॉजिक है, वाकई, दो और दो पांच ही होते हैं, हम सब अब तक गलत ही सोच रहे थे, भाई, दो और दो होते हैं पांच।'
बस फिर क्या था, शिक्षा मंत्री ने बैठक बुलाई, कह दिया, 'नेताजी ने कहा है, दो और दो पांच, यानी पांच।' सचिव ने आदेश जारी कर दी, दो और दो पांच।
सभी पाठ्य पुस्तकों में सुधार किया गया, दो और दो पांच।
एक गणित शिक्षक ने हिम्मत कर बोल दिया 'दो और दो अगर पांच होवे है तो दो और तीन मिले तो भी तो पांच ही होवे।'
फिर क्या था, उसी दिन शाम को प्रधान अध्यापक का बुलावा आ गया, 'सुना है आपने दो और तीन मिलाकर पांच कह दिया, आपको मालूम नहीं कि दो और दो पांच होवे है?'
गणित शिक्षक नये नये आए थे, कह दिया 'नहीं तो सर, हमने तो दो और दो यानी च...'
प्रधान अध्यापक ने गणित शिक्षक को एक लिफाफा हाथ में थमा दिया, 'आप अपना रास्ता नाप लें गुरुजी, दो और दो पांच होते हैं, इतना भी न मालूम आपको',
गणित शिक्षक ने तुरंत हामी भरी, 'सर जी गलती हो गई, दो और दो पांच ही होते हैं।'
बर्खास्त होते होते बच गए।
फिर भी खुसर पुसर होने लगी, दो और दो पांच कब से होने लगे, हमने तो सुना था, हम दो, हमारे दो, यानी चार लोगों का परिवार । यह पांच तो गड़बड़ लगे है। आस पड़ोस में लोग चुपके चुपके कहने लगे, ये क्या है भाई, दो और दो पांच कैसे?
बातें इस तरह फैल गई कि चमचों के कानों तक बात पहुंची, यह तो बहुत बेहयापन हुआ, नेताजी ने कह दिया, दो और दो पांच, यानी पांच। बस बात ख़त्म। जो न मानें, जरूर कुछ विदेशी ताकतों के हाथ खेल रहे, माओवादी हैं जरूर, कई लोग जेल भेज दिए गए।
सोशल बॉयकॉट हो गया। कुछ लोग हिम्मत कर मोर्चा लेकर निकले, लाठी चार्ज हुई, आंसू गैस छोड़े गए, भीड़ तीतर बीतर हो गई ।
सब जगह शांति छा गई, सबने मान लिया, दो और दो पांच।
आग बुझ चुकी थी, लेकिन चिंगारी तो बुझी राख में अब भी सुलग रही है, सच को दबाया जा सकता है कुछ समय के लिए, झूठ को सच में बदला नहीं जा सकता।
कहते हैं ना, सांच को आंच नहीं।
- डॉ. शिवनारायण आचार्य
नागपुर (महाराष्ट्र)