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बरसे बदरिया सावन की



हमारी संस्कृति पर्वों, व्रतों, त्यौहारों, मेलों झूलों, रंगो की संस्कृति है। जहां वर्ष के बारह महिनों का हर दिन, हर पल विशेष होता है, खास होता है। किंतु इन बारह महीनो में पांचवा मास, सावन मास का कुछ विशेष महत्व है, श्रवण नक्षत्र के नाम पर जिसका नाम सावन पडा है।
     
क्यो है इस मास का विशेष महत्व? वर्ष का प्रथम मास  चैत्र अपने साथ गुनगुनी हवा के झोंके लेकर आता है,वैशाख,जेठ माह आते आते गर्मी और रौद्र रूप धारण कर लेती है।तपती गर्मी,लू के थपेड़ों से प्राणिमात्र,पशु पक्षी,धरती,वनस्पति तरस जाते है शीतलता के लिए, टकटकी लगाकर निहारते है नभ की ओर, प्रार्थना करते है बरसने की,शीतलता की।और इस असह्य पीडा के पश्चात जब वर्षा की शीतल बूंदे धरती को चूमती है,नहलाती है, तो समस्त जीव जगत  मे जैसे  चैतन्य जाग उठता है।धरती हरी भरी होकर  धानी चुनर ओढ़कर  नृत्य करने लगती है, पेड़ पौधे उसके साथ  ताल  देकर थिरकने लगते हैं,पौधों पर फूल खिलने लगते हैं,फूलों की सुंदर् सुवास  महकाने लगती है, भौंरे फूलों पर मंडराने लगते है,तितलियां फूलों को चूमने लगती है, नदियां वेग से बहने लगती हैं, गाती हैं, मचलती है, तो धरती पुत्र कृषक नवजीवन रस से संचारित होकर खेत जोतने मे, बीज बोने मे तल्लीन  हो जाते हैं।
  
धरती का लहलहाना,पक्षियों का कलरव, वनस्पति का फलना ,फूलना महकना,कृषक का नव जीवन  रस से संचारित  होना वास्तव में वह सुख है,आनंद की अनुभूति  है जो भीषण गर्मी, तपिश के पश्चात  जीवन में शीतलता, सुख, आनंद, उल्लास लेकर आती है, इसीलिए  जेठ, वैषाख की भीषण तपिश  के पश्चात आने वाले सावन माह का जीवन  मे अति विशिष्ट  महत्व है, संभवतः इसीलिए इस माह को सांस्कृतिक व धार्मिक चेतना की ज्योति किरण कहा गया है,इससे हमारी चेतना जागृत होती है,जीवन में गति,सौहार्द, प्रसन्नता,उर्जा का संचार होता है।
    
इस मास के व्रत, त्यौहार, पर्व, हरियाली अमावस्या हरियाली तीज आदि अपने साथ झूले, गीत, संगीत लेकर आते है। हरी भरी धरती सबको हरा भरा कर देती है, तो कवि ह्रदय भी कहां पीछे हटता है?
भावनाओं की बूंदें, शब्दो के वस्त्र पहनकर बिखर जाती है पन्नो पर! कालिदास का विरही यक्ष प्रियतमा के विरह मे बादलो को संदेश वाहक बनाकर भेजता है,तो तुलसी के राम अपनी प्रिया जानकी के वियोग मे नभ मे छाये घने काले काले बादलों को देखकर डर जाते है,मन गा उठता है।
घन घमंड नभ गर्जत घोरा,
प्रिया हीन डरपत मन मोरा।
दामिनी दमक रहत घन मांही,
खल के बुद्धी जरा थिर नाहीं।
 
तो भक्तों को अपने भगवान का स्मरण हो आता है।आकाश में छाये श्याम घन देखकर मीरा श्याम रंग में रंग कर गा उठती है,
बरसे बदरिया सावन की,
सावन की मन भावन की।
सावन में उमग्यो मेरो मनवा,
भनक सुनी हरि आवन की।
नन्ही नन्ही बूंदे मेघा बरसे,
शीतल पवन सुहावन की।
तो प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन  पंत  लीन हो जाते हैं  पावस ॠतु के प्राकृतिक सौंदर्य में पल पल परिवर्तित प्रकृति वेश मे, गिरि पर्वतो पर छाई हरियाली देख उनका मन गा उठता है,
गिरिवर के उर से उठ उठ कर,
उच्चाकांक्षाओ  के तरुवर।
हैं झांक रहे नीरव नभ पर,
अनिमेष अटल,कुछ चिंतापर।
किंतु इन सबसे भी अधिक सावन मास को महत्वपूर्ण बनाता है देवाधिदेव महादेव का धरती पर अवतरण। मान्यता है कि इसी मास में शिव जी अपनी ससुराल पधारे, जहां अर्घ्य, शीतल जल से  अभिषेक कर उनका स्वागत किया गया।
सावन मास में ही हुए समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को शिवजी ने सबके सुख की खातिर अपने कंठ में धारण किया। और वे नीलकंठ कहलाए। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवों ने शिव का जलाभिषेक किसा, इसीलिए इस मास मे शीतल जल  शिवजी को अर्पित किया जाता व दूर दूर से पैदल चलकर कांवडिये पवित्र नदियों का जल शिव जी को समर्पित करने आते है।
   
इस तरह शिव इस माह के प्रधान देव हो जाते है,जिनका विषपान यह संदेश देता है कि प्राणिमात्र  के कल्याण के लिए जीवन में यदि कड़वे घूंट पीना पदे तो सहर्ष पी लेना चाहिए और प्रकृति भी पीछे नहीं। मौन रहकर गुरु की तरह शिक्षा देती है, जीवन मे ताप सहने के पश्चात जो खुशी मिलती है, आनंद मिलता है, वह अमूल्य होता है अंततः जीवन क्या है? अवसाद से आनंद की यात्रा ही तो!
सावन की बदरिया, रिमझिम फुहारें यही संदेश लेकर आती है। इसीलिए अति विशिष्ट  है सावन  मास!

- प्रभा मेहता
नागपुर
लेख 1795436848108861482
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