अनुशासन मानव की प्रगति का मूल मंत्र है : डॉ. ओमप्रकाश त्रिपाठी
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नागपुर/पुणे। समाज के निर्माण में अनुशासन की महत्वपूर्ण भूमिका है। अनुशासन की सीमा में ही मनुष्य का जीवन यापन सही होता है। अनुशासन मानव जीवन की प्रगति का मूल मंत्र है। ये विचार विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के उपाध्यक्ष एवं किशोर न्यायालय के सदस्य डॉ. ओम प्रकाश त्रिपाठी, सोनभद्र, उत्तर प्रदेश ने व्यक्त किए। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के तत्वावधान में शनिवार, 15 जुलाई को ‘संस्थान, परिवार व कार्यालयों में अनुशासन क्यों जरूरी ?’ विषय पर आयोजित 163 वीं (22) राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी में वे विशिष्ट वक्ता के रूप में अपना उद्बोधन दे रहे थे।
डॉ. त्रिपाठी ने आगे कहा कि, अनुशासन जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यक है। अनुशासन के कुछ प्रकार होते हैं - दंडात्मक अनुशासन, प्रभावात्मक अनुशासन और स्वानुशासन आदि। अनुशासन के कुछ सिद्धांत भी है। अनुशासनहीनता के कई कारण हैं, जैसे नैतिक मूल्य और सदाचार की कमी, पारिवारिक विघटन, शैक्षिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, मनोवैज्ञानिक कारण भी अनुशासन को प्रभावित करते हैं।
मानव जीवन की 14 मूल प्रवृत्तियों का अभिवर्ध्दन और सरंक्षण की परिधि में अनुशासन सहयोगी होता है। संयुक्त परिवार की सफलता अनुशासन पर ही निर्भर होती है। अतः अनुशासन एक संजीवनी है, जो जीवन को ऊर्जावान करता है। लोकतंत्र की सफलता भी अनुशासन पर निर्भर है। अनुशासन केवल व्यक्ति ही नहीं, वरन पशु-पक्षी, चिड़िया, कीट, पतंग, पेड़ ,पौधे, प्रकृति सभी के लिए आवश्यक हैं।
श्रीमती उपमा आर्य, लखनऊ ने कहा कि अनुशासन शब्द लैटिन भाषा से संबंधित है। जिसका अर्थ है-सीखना या आज्ञा पालन करना। अनुशासन एक ऐसी क्रिया है, जिससे सभी जगह, हम सभी अनचाहे ही प्रभावित होते हैं। अनुशासित रहना व्यवस्थित ढंग से कार्य करने का तरीका है। बाह्य अनुशासन हो या स्वानुशासन जिंदगी को बेहतरीन तरीके से जीने के लिए, अपने कार्य को उचित रूप से करन के लिए स्वानुशासन अनिवार्य पहलू है।
परिवार हो, संस्था हो या कार्यालय हो,जहां स्वस्थ वातावरण निर्मिति के लिए अनुशासन जरूरी है। श्री अतुल शुक्ला, रायबरेली, उत्तर प्रदेश ने अपनी अभिव्यक्ति में कहा कि, अनुशासन एक संगठित और कार्यक्षम संस्थान की स्थापना करने में मदद करता है। यह निरंतरता, समय प्रबंधन और उत्पादकता के मानकों को स्थापित करता है। अनुशासन की कमी वाले परिवारों में बच्चों तथा युवाओं के अस्तित्व में समस्या हो सकती है।
अनुशासन का पालन न करने पर आनंद तो मिलेगा पर दीर्घकालीन लाभ से सदा के लिए वंचित होना पड़ेगा। प्रारंभ में संस्थान के सचिव डॉ गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी ने प्रास्तविक उद्बोधन में कहा कि अनुशासन का अर्थ नियमों के अनुसार जीवन यापन करना है। जीवन की पहली पाठशाला परिवार है। अनुशासन में रहने वाले जीवन में महान बनते हैं। असंभव को संभव में परिवर्तित करने की प्रक्रिया अनुशासन है। अनुशासन को जो जानता और अमल में लाता है, वही सही मायने में प्रगति करता है।
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज़ मोहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने अध्यक्षीय समापन में कहा कि मानव जीवन एवं अनुशासन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अतः संस्था हो, परिवार हो या कार्यालय सभी जगह अनुशासन की महत्ता है। अनुशासन से ही विकास एवं प्रगति की राह प्रशस्त होती है। अनुशासन ही मनुष्य के जीवन को व्यवस्थित एवं गतिशील बनाता है। अनुशासन के बिना मनुष्य का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। चाहे वह परिवार में हो, संस्थान में हो, या कार्यालय में हो।
निरंतर अनुशासन में रहने से अनुशासन धीरे-धीरे आदत के रूप में विकसित हो जाता है, जिससे आगे चलकर कड़ा से कड़ा अनुशासन का पालन करने में कोई कठिनाई नहीं होती। वास्तव में अनुशासन एक तंत्र है, जिसमें सामंजस्य, निष्पक्षता व न्याय की भावना होनी चाहिए। अनुशासन में पूर्वागृह के लिए कोई स्थान नहीं होता। गोष्ठी का आरंभ डॉ. संगीता पाल, कच्छ, गुजरात की सरस्वती वंदना से हुआ। श्रीमती अपराजिता शर्मा, रायपुर छतीसगढ़ ने स्वागत भाषण दिया।
गोष्ठी का सुंदर, सफल व उत्तम संचालन करते हुए संस्थान की छतीसगढ़ प्रभारी व हिन्दी सांसद डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, छतीसगढ़ ने कहा कि अनुशासन में सकारात्मकता होनी चाहिए। क्योंकि सकारात्मक अनुशासन ही परिवार, संस्था और कार्यालय के विकास में सहायक सिद्ध होता है। श्रीमती सीमा निगम,रायपुर छतीसगढ़ ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया।
इस गोष्ठी में श्री गोपाल, प्रशासन सहायक (राजभाषा) राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड, विशाखापट्टनम, आंध्रप्रदेश; प्राचार्या नजमा बानो मलेक, नवसारी, गुजरात; डॉ. शोभना जैन, व्यारा, गुजरात; श्रीमती पुष्पलता श्रीवास्तव, ’शैली’, रायबरेली; श्री जयवीर सिंह, पुणे; प्रा. मधु भंभानी, नागपुर; डॉ. सैफ़ूल इस्लाम, असम; डॉ. वंदना चराटे, इंदौर; श्री. रतिराम गढेवाल, रायपुर; लक्ष्मीकांत वैष्णव, शक्ति, छत्तीसगढ़ सहित अन्य गणमान्यों की गरिमामयी उपस्थिति थीं।