वो हसीन शाम
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दीदार ए इश्क़ उनके हुए,
दिल में बसे उमंग सब,
उफ़न उफ़न ज़ाहिर हुए,
बड़ी हसीन शाम थी,
होठों से होंठ जब मिले,
दिल से दिल जो मिले,
ना पूछो क्या सितम हुए।
होशो हवास गुम हुए
होशो हवास गुम हुए।
उनकी डरी आंखों में
कुछ तो इकरार था,
सकपका रही थीं पर,
दिल को कहां इंकार था,
ना ना करते हुए उसने,
हाथ जो मेरा थाम लिया,
होठों पे ना तो था मगर,
दिले सब्ज़े बाग था।
- डॉ. शिवनारायण आचार्य 'शिव'
नागपुर (महाराष्ट्र)